अंग्रेज़ों के खिलाफ वीरता से लड़ने वालीं रानी लक्ष्मीबाई के बारे में सारा देश जानता है। ऐसी ही एक रानी तमिलनाडु में थीं, जिन्होंने अंग्रेज़ों पर नकेल कस दी थी। कर्नाटक के शिवगंगा की इस रानी का नाम रानी वेलु नचियार था। रानी वेलु नचियार भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ लड़ने वाली पहली रानी थीं। उन्हें तमिल लोग वीरमंगई के नाम से जानते हैं।
रानी वेलु नचियार का जन्म 3 जनवरी 1730 को हुआ था। वह रामनाथपुरम की राजकुमारी थीं और रामनाद साम्राज्य के राजा चेल्लामुथु विजयरघुनाथ सेतुपति और रानी सकंधीमुथल की एकमात्र संतान थीं। राजा सेतुपति को बेटा नहीं हुआ। इसके बावजूद वे निराश नहीं हुए। उन्होंने अपनी बेटी को भी बेटे की तरह युद्ध कौशल एवं अन्य विद्या की शिक्षा दिलाने का प्रण लिया। राजा सेतुपति ने राजकुमारी वेलु का पालन-पोषण एक राजकुमार की तरह शुरू किया। उन्हें युद्ध में हथियारों के इस्तेमाल, वल्लारी (दरांती फेंकना), सिलंबम (लाठी से लड़ना), घुड़सवारी, तीरंदाजी और मार्शल आर्ट जैसे युद्ध कौशलों का प्रशिक्षण दिलवाया गया। इतना ही नहीं, वह कई भाषाओं की विद्वान भी थीं। रानी वेलु नचियार को तमिल के साथ-साथ फ्रेंच, अंग्रेज़ी और उर्दू जैसी भाषाओं में भी महारत हासिल थी।
समय के साथ राजकुमारी बड़ी हुईं तो 16 साल की उम्र में उनका मृत पति का चेहरा तक नहीं देख पाई, अंग्रेजों को हराने वाली पहली रानी: कहानी वेलु नचियार और उनकी ‘महिला सेना’ कीविवाह शिवगंगा के राजा मुथु वदुग्नाथ पेरियाउदय थेवर से हो गया। शादी के बाद उन्हें एक बेटी हुई। राजा मुथु और रानी वेलु नचियार ने 1750 से 1772 यानी दो दशकों से अधिक समय तक शिवगंगा पर राज किया। ये वो दौर था, जब भारत में अंग्रेज़ सारी रियासतों पर कब्जा करने के लिए बेचैन थे। अंग्रेज़ों के सहयोगी अरकोट या आरकाट के नवाब मोहम्मद अली खान ने शिवगंगा राज्य से कर की माँग की, जिसे राजा मुथु इनकार कर दिया था।
इसके बाद 25 जून 1772 को मोहम्मद अली खान ने अंग्रेज़ों के साथ मिलकर शिवगंगा पर हमला कर दिया। नवाब और अंग्रेज़ों की संयुक्त सेना के खिलाफ युद्ध करते हुए रानी वेलु नचियार के पति ‘कलयार कोयिल युद्ध’ में वीरगति को प्राप्त हो गए। अंग्रेज़ों ने उनकी और उनकी बेटी की भी हत्या करने की कोशिश की लेकिन हमले के समय रानी वेलु नचियार अपनी नन्हीं बेटी के साथ मंदिर गई थीं। इसके कारण तमिलनाडु के इतिहास में सबसे विध्वंसक युद्धों में से एक ‘कलयार कोयिल युद्ध’ से रानी वेलु बच गईं और अपनी बेटी को लेकर वहाँ से निकलने में कामयाब रहीं।
रानी वेलु नचियार को उनके पति मुथु के साथ लड़ने वाले उनके वफ़ादार मारुथु (मरुधु) भाइयों – वेल्लई और चित्रा वहाँ से निकालकर सुरक्षित जगह ले गए। रानी वेलु अपने मृत पति को भी नहीं देख पाईं और ना ही उनका शव मिल सका। इस दौरान नवाब की फौज को रोकने के लिए रानी वेलु नचियार की भरोसेमंद अंगरक्षक उडयाल और उनकी दूसरी महिला सेनानी पीछे रह गईं। नवाब के सैनिकों ने उडयाल को पकड़ लिया और उनसे रानी वेलु का पता पूछा। जब उडयाल ने पता नहीं बताया तो नवाब ने हर तरह से उन पर जुल्म ढाकर आखिर में उनका सिर कटवा दिया। इसके बाद शिवगंगा का नाम नवाब मोहम्मद अली खान ने बदलकर हुसैन नगर कर दिया।
इधर रानी शिवगंगा से निकल जंगलों का खाक छानती रहीं। रानी वेलु नचियार लगभग आठ साल तक डिंडीगुल के आसपास रहीं। डिंडीगुल के राजा पलयाकारर कोपाला नायक्कर ने उन्हें संरक्षण दिया। उनके मन में नवाब एवं अंग्रेज़ों के खिलाफ बदले की ज्वाला धधकती रही। इस संकट की घड़ी में मारुथु भाइयों ने अपने वफादारों की एक सेना तैयार करनी शुरू कर दी। हालाँकि, बिना धन के नवाब और अंग्रेज़ों से लड़ने के लिए यह सेना काफी नहीं थी। उधर पड़ोस के मैसूर के शासक हैदर अली का भी अंग्रेज़ों और आरकाट के नवाब से छत्तीस का आँकड़ा था। वे दोनों हैदर अली को नहीं सुहाते थे। ऐसे में हैदर अली को पता चला कि रानी वेलु नचियार को मदद की ज़रूरत है तो उसने रानी की सेना तैयार करने में मदद की। इतिहासकार मणिकंदन के अनुसार, हैदर अली ने रानी वेलु नचियार को हर महीने 400 पाउंड और हथियारों के साथ-साथ सैयद करकी के नेतृत्व में 5,000 पैदल सैनिकों और घुड़सवार दस्ते की मदद दी।
इतिहासकारों के अनुसार, इस फौज को लेकर रानी वेलु ने शिवगंगा के विभिन्न क्षेत्रों पर हमले करके धीरे-धीरे उन्हें जीतना शुरू कर दिया। सन 1781 में ऐसा समय आया, जब वह अंग्रेज़ों के कब्जे वाले तिरुचिरापल्ली किले तक पहुँच गईं। उडयाल के बलिदान की याद में रानी वेलु ने उनके नाम पर महिलाओं की एक सेना बनाई थी। इस सेना की कमांडर कोयिली ने किले के दरवाज़े खोलने की एक योजना बताई। कोयिली ने रानी वेलु को बताया कि विजयादशमी का त्योहार नज़दीक है। उस दिन आसपास के गाँव की महिलाएँ मंदिर जाएँगी। उन्हीं महिलाओं में रानी वेलु के महिला दस्ते की कुछ सैनिक हथियारों के साथ शामिल हो जाएँगी और किले में घुस जाएगी। उसके बाद किले का द्वार अंदर से खोल देंगी। रानी वेलु को यह विचार बहुत पसंद आया। इसकी ज़िम्मेदारी रानी वेलु ने कोयिली को दी।
विजयादशमी के दिन कोयिली के नेतृत्व में कुछ महिलाएँ देहात से मंदिर जाने वाली महिलाओं के समूह में शामिल हो गईं और किले में प्रवेश कर गईं। कोयिली का संकेत पाते ही महिला सेनानियों ने अंग्रेज़ों पर हमले शुरू कर दिए। वह किले के मुख्य दरवाज़े की ओर बढ़ीं और वहाँ रखी मशाल को उठाकर गोला-बारूद के भंडार में घुस गईं। कुछ ही देर में विस्फोट के बाद किले का द्वार खुल गया। दरअसल, कोयिली ने किले का द्वार खोलने के लिए आत्म-बलिदान दे दिया था। इसके बाद यह संदेश रानी वेलु तक पहुँचाई गया कि किले का द्वार खुल गया है और अंग्रेज़ों का गोला-बारूद भी नष्ट हो गया है। इसके बाद रानी वेलु ने किले पर हमले का आदेश दे दिया। किले के अंदर कर्नल विलियम्स फ़्लार्टन था। ब्रिटिश सेना के पास रसद और गोला-बारूद की कमी हो चुकी थी। रानी वेलु की सेना किले अंदर घुसी और अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ा दिए। आखिरकार अगस्त 1781 में वेलु नचियार की सेना ने किले पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
इस तरह अंग्रेज़ों के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई लड़ने और जीतने वाली वेलु नचियार पहली रानी बन गईं। इस दौरान रानी वेलु ने हैदर अली के उपकार का भी बदला चुकाया। जेएच राइस ने ‘द मैसूर स्टेट गज़ेटियर’ में लिखा है कि मैसूर के दूसरे युद्ध में ब्रिटिश सेना के खिलाफ वेलु नचियार ने हैदर अली के लिए अपनी सेना भेजकर मदद की थी। किला जीतने के बाद रानी वेलु नचियार ने अगले 10 सालों तक शिवगंगा पर शासन किया और आखिर में अपनी बेटी वेल्लाची को सत्ता सौंप दीं। वेल्लाची ने 1790 से 1793 तक शासन किया। आखिरकार इस महान वीरांगना वेलु नचियार का 1796 ईस्वी में शिवगंगा में निधन हो गया।