उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में इन दिनों महाकुंभ की रौनक छाई हुई है और अगले कुछ दिनों में महाकुंभ की शुरुआत हो जाएगी। दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में आम लोगों के साथ-साथ बड़ी संख्या में साधु-संतों का जमावड़ा लगता है। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कुंभ को और भव्य बनाने के लिए इस क्षेत्र को नया ज़िला ही घोषित कर दिया है और उसमें नागा साधु भी नज़र आने लगे हैं। कुंभ में आने वाले यूँ तो कई साधु रहस्यमयी होते हैं लेकिन जिन्हें लेकर सबसे अधिक चर्चा होती है नागा साधु हैं।
हालांकि, नागा साधु तो कुंभ के अवसर पर सामान्यत: नज़र आ जाते हैं लेकिन नागा साध्वियां इसमें भी कभी-कभार ही दिखती हैं और उनका जीवन सबसे अधिक रहस्यमयी होता है। महाकुंभ मेला 2025 में भी नागा साधु और साध्वियों के लिए व्यवस्था की जा चुकी है। इस लेख में हम जानेंगे कि महिला नागा साधुओं की परंपरा और उनके रहस्यमयी जीवन की कहानी क्या असल में क्या है।
कैसे बनती हैं नागा साध्वियां?
नागा साधुओं और साध्वियों का जीवन पूरी तरह से त्याग और तपस्या पर ही आधारित होता है। इनका मुख्य उद्देश्य संसारिक मोह-माया से ऊपर उठकर आत्मज्ञान की प्राप्ति करना ही इनका उद्देश्य होता है। बताया जाता है कि प्रकृति से साथ खुद को एक करने और जीवन की मौलिक ज़रूरत को भी छोड़ने के उद्देश्य से ये साधु वस्त्रों का त्याग कर देते हैं। महिलाओं का नागा साधु बनने के लिए कई तरह की कठिन परीक्षाओं का भी सामना करना पड़ता है।
कहा जाता है कि खुद को पूरी तरह ईश्वर को समर्पित करने के उद्देश्य से ये साध्वियां 6-12 वर्षों तक के कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं। ये साध्वियां जीवित रखते हुए ही खुद का पिंडदान कर देती हैं। इसके बाद इनके सिर से बालों को काट दिया जाता है और फिर स्नान के बाद महिलाएं विधि-विधान से महिला नागा साधु बन जाती हैं। ये अपना पूरी जीवन ईश्वर को समर्पित कर देती हैं और ईश्वर की साधना में लीन रहती हैं।
नागा साध्वियों के कपड़ों को लेकर क्या हैं नियम?
नागा साधु आमतौर पर नग्न ही रहते हैं लेकिन भारतीय परंपरा में महिलाओं के नग्न रहने को संस्कृति के खिलाफ माना जाता है। इसलिए महिला साध्वियां पुरुषों की तरह नग्न रहने के बजाय अपने शरीर पर एक वस्त्र लपेटे रहती हैं। यह वस्त्र आम तौर पर गेरुए रंग का होता है। बताया जाता है कि बिना कपड़ों के शाही स्नान में नहाना प्रतिबंधित होता है और इसलिए ये साध्वियां गेरुआ वस्त्र धारणकर ही स्नान करती हैं। अखाड़े भी महिलाओं के नग्न रहने को संस्कृति के खिलाफ ही मानते हैं। यह वस्त्र आमतौर पर सिला हुआ नहीं रहता है और इस कपड़े को ‘गंटी’ कहा जाता है। इसके अलावा ये साध्वियां हमेशा माथे पर तिलक लगाए रहती हैं और इनके शरीर पर भस्म लगा रहता है।
नागा साध्वियों का कैसा होता है जीवन?
महिला नागा साधु तपस्वी और भक्ति मार्ग पर चलने वाली महिलाएँ होती हैं और ये अपने पूरे जीवन को धार्मिक साधना, तपस्या, और भगवान की भक्ति में समर्पित कर देती हैं। ये साध्वियां दुनिया से अलग अपना समय जंगलों, गुफाओं, पहाड़ों या अन्य निर्जन स्थानों पर बिताती हैं। यहां, वे शारीरिक और मानसिक शुद्धि की प्रक्रिया से गुजरती हैं। महिला नागा साधुओं को हिंदू धर्म में विशेष सम्मान प्राप्त है और इन्हें ‘माता’ के नाम से संबोधित किया जाता है। कुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों पर, जब सभी साधु और भक्त एकत्र होते हैं, तब महिला नागा साधु भी नज़र आती हैं। ये साध्वियां आध्यात्म के उच्चतम स्तर और ईश्वर को प्राप्त करने के लिए तपस्वी का जीवन जीती हैं।
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम इन सभी दावों की पुष्टि नहीं करते हैं।)