नया साल नई चुनौतियां साथ लेकर आता है। देश की राजनीति के लिए भी 2025 खास होने वाला है। खासतौर से सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह साल कई मायनों में अहम साबित हो सकता है। ऐसे में सीएम योगी आदित्यनाथ के सामने इस साल कई चुनौतियां भी होंगी।
साल 2022 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा ने उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी की थी। एक तरह से यूपी में ‘योगी लहर’ चलती हुई नजर आई थी। लेकिन 2 साल बाद ही साल 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से योगी आदित्यनाथ को उम्मीद के हिसाब से परिणाम नहीं मिले थे। हालांकि विधानसभा उपचुनाव में एक बार फिर योगी का रंग देखने को मिला था। बेशक विधानसभा चुनाव में अभी 2 साल का वक्त बाकी है। लेकिन फिर भी 2025 काफी महत्वपूर्ण होने वाला है। ऐसे में इस साल योगी आदित्यनाथ को नई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा।
1.) महाकुंभ है पहली चुनौती:
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन होने जा रहा है। इसकी तैयारियां जोरों पर हैं। महाकुंभ में श्रद्धालुओं के आने का रिकॉर्ड टूटना तो तय है। लेकिन कितने श्रद्धालु आएंगे, इसका अनुमान लगा पाना बेहद मुश्किल है। ऐसे में अफवाह या अन्य कारणों के चलते भगदड़ होने की आशंका भी बढ़ जाती है। साथ ही, ठंड के चलते पंडालों के आस-पास अलाव के चलते आगजनी से अनहोनी की भी आशंका रहती है। इसके अलावा व्यवस्था और तैयारियों से लेकर सुरक्षा के अन्य पहलुओं का भी ध्यान रखना होगा।
इसके अलावा, अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के समय विपक्ष राजनीति करने में जुट गया था। इस बार भी अखिलेश यादव ने महाकुंभ के आमंत्रण को लेकर बयान देकर राजनीति की शुरुआत कर दी है। ऐसे में योगी आदित्यनाथ को महाकुंभ को राजनीति में फँसने से भी बचाना होगा। वास्तव में यदि सरकार महाकुंभ में किसी भी प्रकार से फेल हुई तो विपक्ष उसे अगले चुनाव तक मुद्दा बनाकर उछालता रहेगा।
2.) दंगाई भी हैं समस्या:
उत्तर प्रदेश में यूं तो बीते 7 साल में कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ है। लेकिन फिर भी बहराइच और संभल जैसे मामले सामने आते रहे हैं। प्रत्येक दंगे में जनहानि के साथ ही सार्वजनिक संपत्ति का भी नुकसान होता है। बेशक दोषियों की संपत्ति नीलाम कर वसूली करने की बात होती रही है। लेकिन इसके बाद भी इसमें सरकारी नुकसान तो होता ही है। इसके अलावा, हिंसा के बाद आमतौर पर पलायन की घटनाएं भी सामने आती हैं। इससे सीधे तौर पर सरकार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठते हैं।
पहले कार्यकाल यानी 2017 से लेकर अब तक योगी सरकार दंगाइयों से निपटने मे काफी हद तक कामयाब रही है। इसके अलावा अपराध पर भी अभूतपूर्व तरीके से लगाम देखने को मिली है। ऐसे में सीएम योगी को उत्तर प्रदेश को पूरी तरह से अपराध और भय मुक्त बनाने का काम करना होगा।
3.) हिंदू मंदिर हिंदुओं के:
देशभर के कई हिंदू मंदिरों में कट्टरपंथियों का कब्जा है। कई मंदिर दशकों से बंद पड़े हुए हैं। इसमें से कई मंदिर उत्तर प्रदेश में भी हैं। प्रशासन बंद पड़े मंदिरों को खुलवाने के प्रयास में लगा हुआ है। हालांकि यह इतना आसान होने वाला नहीं है। सिर्फ अगर विवादित ढांचे के एएसआई सर्वे के दौरान हिंसा भड़क सकती है, ऐसे में सभी विवादित मंदिरों को खुलवाने या उनका कब्जा वापस लेने में तो हजारों समस्याएं सामने आ सकती हैं।
बेशक कई मंदिरों के मुद्दे कोर्ट में हैं और नए मुकदमों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है। लेकिन जिन मुद्दों पर कट्टरपंथियों का कब्जा है या दंगों के बाद जिन मंदिरों को बंद कर दिया गया था, वे मंदिर तो खुलवाए ही जा सकते हैं। उदाहरण के लिए कानपुर मेयर प्रमिला पांडेय ने मुस्लिम बाहुल्य इलाके में दशकों से बंद 5 मंदिरों को खोलने की पहल की थी। इसी तरह मुरादाबाद में भी पुराने बंद खुलवाए गए हैं। इन सब मंदिरों को खुलवाकर यहां पूजा-पाठ शुरू कराना और इन सबके बीच सांप्रदायिक हिंसा न हो, सीएम योगी को इसका ध्यान रखना होगा। सीधे शब्दों में कहें तो हिंदू मंदिर हिंदुओं का दिलाना और सूबे को हिंसा से बचाना योगी के लिए बड़ी चुनौती है।
4.) राजनीति का भी रखना होगा ध्यान:
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सूबे को विकास की एक नई राह में ले जाने के प्रयास में लगे हैं। इस कड़ी में विदेशी निवेशकों से लेकर पर्यटकों को लुभाने के भी कार्य किए जा रहे हैं। लेकिन 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी कमर कसनी होगी। लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को 33 और समाजवादी पार्टी को 37 सीटें मिली थीं। इस चुनाव परिणाम के बाद, सीएम योगी पार्टी के अंदर ही निशाने पर आ गए थे।
उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इशारों में ही कहा था कि संगठन हमेशा सरकार से बड़ा होता है। वहीं दूसरे उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक को लेकर भी ऐसी ही खबरें थीं। हालांकि सीएम योगी ने इन तमाम बातों को नजरअंदाज करते हुए उपचुनाव में भाजपा को एक तरफा जीत दिलाकर अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी थी। साल 2025 में भी ऐसी ही चुनौतियां होती सामने आ सकती हैं। ऐसे में, योगी के सामने विकास के मुद्दे में आगे बढ़ने के साथ ही राजनीति और राजनीतिक प्रतिद्वंदी दोनों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ने का चुनौती होगी।
5.) विकास मॉडल: योगी आदित्यनाथ
प्रधानमंत्री मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटने के 11 साल बाद भी देश में विकास के लिए गुजरात मॉडल की चर्चा होती है। यहां तक कि केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह के विकास कार्यों के चलते मध्य प्रदेश का भी नाम चर्चा में रहता है। लेकिन यूपी में हो रहे विकास को विकास मॉडल की तरह अब पेश नहीं किया जा सका है। यहां तक कि काशी विश्वनाथ कॉरीडोर और मथुरा वृंदावन कॉरीडोर समेत पूरे यूपी में सड़कों के जाल की चर्चा सार्वजनिक पटलों पर काफी कम होती है।
ऐसे में इस साल सीएम योगी को यूपी का विकास मॉडल बनाने का प्रयास करना होगा। वास्तव में देखें तो कई राजनतिक पंडित योगी आदित्यनाथ को पीएम मोदी का उत्तराधिकारी मानते हैं। राजनीतिक हल्के से बाहर देश की आम जनता का एक वर्ग भी उन्हें पीएम की कुर्सी में देखना चाहता है। ऐसे में यदि उन्हें लखनऊ से दिल्ली का सफर तय करना है तो यूपी का एक विकास मॉडल देश के सामने पेश करना होगा।