कहते हैं कि किसी राज्य की व्यवस्था वहाँ के शासक पर निर्भर करती है। अगर शासक दृढ़, दूरदर्शी और प्रजावत्सल हो तो आम लोगों को किसी तरह का भय नहीं रहता। देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासन में ऐसा ही विश्वास और श्रद्धा दिख रही है। कुंभ मेले में आतंकियों द्वारा बम धमाके की धमकी देने के बावजूद लोगों में किसी तरह का डर नहीं है। यह सरकार के इकबाल का ही कमाल है। सरकार के इकबाल एवं लोगों के विश्वास को समझने के लिए उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा की गई प्रयागराज महाकुंभ 2025 की तैयारियों में दिख रहा है। इस बार का महाकुंभ ना सिर्फ अपने आप में भव्य एवं दिव्य दिख रहा है, बल्कि प्रबंधन के स्तर पर भी शानदार है।
हालाँकि, विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव इसमें खामियाँ निकालने के लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वे तार्किक खामी निकालने में अभी तक नाकाम रहे हैं। कुंभ में भाग लेने वाले साधु-संत भी एक महंत एवं संत मुख्यमंत्री द्वारा किए गए प्रयास एवं व्यवस्था से गदगद हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद कुंभ की तैयारियों का जायजा लेने के लिए प्रयागराज गए थे। बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वहाँ गए और व्यवस्था पर प्रसन्नता व्यक्त की थी। हालाँकि, अखिलेश यादव को राजनीति के लिए कोई ना कोई कमी निकालनी ही हैं, ताकि उनके मुख्यमंत्रित्व काल में साल 2013 के कुंभ में हुई भगदड़ एवं 42 लोगों की मौत पर से लोगों का ध्यान हट जाए।
यह बात सन 2013 की है। उस दौरान प्रयागराज (तब इलाहाबाद नाम था) में कुंभ का आयोजन होने वाला था। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव थे। उनकी ही सरकार में एक ‘कद्दावर’ मंत्री आज़म खान भी थे। राज्य के तत्कालीन शहरी विकास मंत्री आज़म खान मुस्लिम पक्ष के साथ अपने झुकाव को समय-समय पर दिखाते रहते थे। उस समय मुस्लिम तुष्टिकरण में आकंठ डूबी समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव की सरकार ने कुंभ मेले के आयोजन का सारा प्रबंध आज़म खान को दे दिया। आज़म खान को हिंदू धार्मिक आयोजनों के प्रबंधन का अनुभव तो दूर, इसके बारे में उनकी जानकारी भी शून्य थी। इसके बावजूद उन्हें कुंभ आयोजन समिति का अध्यक्ष बनाया गया। इसका परिणाम ये हुआ कि आज़म खान ने कुंभ क्षेत्र में कोई व्यवस्था नहीं की और यह कुप्रबंधन एक त्रासदी में बदल गई।
साल 2013 के प्रयागराज पूर्ण कुंभ मेले में 10 करोड़ लोगों के आने की उम्मीद थी। 10 फरवरी दिन रविवार को मौनी अमावस्या थी। कुंभ में उसे सबसे शुभ दिन माना जाता है। उस दिन प्रयागराज स्टेशन पर करीब 20 लाख से ज्यादा लोग आ गए, जबकि प्रयागराज जंक्शन पर 24 घंटों में सिर्फ 250 ट्रेनें ही मौजूद थीं। इसको देखते हुए अखिलेश यादव की सरकार ने कोई विशेष प्रबंध नहीं किया था। इतनी भीड़ के आने से पुलिस और प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था चरमरा गई। आने-जाने को लेकर आज़म खान ने कोई खास प्रबंधन नहीं किया। स्टेशन पर अचानक भगदड़ मच गई। आखिरकार 26 महिलाओं और एक बच्चा तथा 9 पुरुष सहित 42 लोगों ने अपनी जान गँवा दी। इतना ही नहीं, शाही स्नान के दौरान भी मेले में अफरा-तफरी मच गई और आखिरकार कुव्यवस्था के कारण पुलिस ने श्रद्धालुओं पर लाठी चार्ज कर दिया।
ये वही अखिलेश यादव हैं, जो पीएम मोदी की सरकार द्वारा प्रस्तावित वक्फ संशोधन विधेयक में वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का प्रावधान किया है। इस प्रावधान पर अखिलेश यादव को आपत्ति है और उनका कहना है कि एक मुस्लिम संस्था के बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने की क्या आवश्यकता है। अखिलेश यादव का यह विचार कुंभ मेले में के दौरान नहीं जागा था, जब एक कट्टर मुस्लिम को हिंदुओं के सबसे बड़े आयोजन का प्रभारी बनाया था।
कुंभ में जब श्रद्धालुओं की जान गई तो मीडिया ने आज़म खान से कई सवाल किए, लेकिन उन्होंने इसका कोई तार्किक जवाब नहीं दिया था। उस समय संघ से संबंधित पत्रिका ‘ऑर्गनाइजर’ ने भी आज़म खान पर सवाल उठाया था। उस समय ‘ऑर्गनाइजर’ ने अपने संपादकीय में लिखा था, “उत्तर प्रदेश में करोड़ों रुपए का राजस्व कमाने वाले कुंभ का प्रभारी ऐसे व्यक्ति को बनाया गया, जो मुस्लिम है। ऐसा नहीं है कि अगर हिंदू मंत्री प्रभारी होता तो वह त्रासदी नहीं होती, लेकिन सरकार इतना तो कर सकती थी कि किसी बेहतर प्रतिनिधि को यह जिम्मेदारी सौंपती। कुंभ का प्रभारी ऐसा व्यक्ति होना चाहिए था, जो हिंदू तीर्थयात्रा को लेकर पूरी तरह समर्पित होता।”
जब हर तरफ से आलोचना हुई तो दिखावा करने के लिए आज़म खान ने कुंभ मेला आयोजन समिति के अध्यक्ष से जरूर इस्तीफा दे दिया, लेकिन उस इस्तीफे को भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नामंजूर कर दिया था। अखिलेश यादव ने तब कहा था कि आज़म खान ने कुंभ मेले की व्यवस्था के अपने दायित्वों का पूरी ईमानदारी, मेहनत और लगन से निर्वहन किया था। तब मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव ने कहा था कि आज़म खान के प्रयासों के चलते कुंभ मेला सुव्यवस्थित और सुचारू रुप से चल रहा है। इसलिए आयोजन समिति के अध्यक्ष पद से उनका इस्तीफा स्वीकार करने का प्रश्न ही नहीं उठता। बाद में तो आज़म खान ने उस त्रासदी से अपना पल्ला ही झाड़ लिया और इसके लिए मीडिया को दोषी ठहरा दिया था। उनकी नजर में 42 लोगों की मौत छोटी घटना था। एक कार्यक्रम में 13 फरवरी 2013 को आज़म खान ने कहा था कि चैनल वाले छोटी सी बात का बतंगड़ बना देते है।
साल 2014 में भारत के नियंत्रक एवं महालेखाकार परीक्षक (CAG) ने साल 2013 के इलाहाबाद कुंभ मेले के कुप्रबंधन को उजागर किया था। CAG ने अपनी रिपोर्ट में आज़म खान और उनके द्वारा चुने गए नौकरशाहों एवं प्रशासकों की टीम की भारी विसंगतियों, कुप्रबंधन और विभिन्न विभागों के बीच समन्वय की कमी के लिए तीखी आलोचना की थी। कुंभ के दौरान संगम पर उमड़ने वाले लाखों श्रद्धालुओं को बुनियादी सुविधाएँ भी मुहैया कराने में सरकार विफल रही थी। CAG की ही रिपोर्ट बताती है कि यहाँ इन 12 करोड़ श्रद्धालुओं को संभालने के लिए मात्र 5 गोताखोर की नियुक्ति हुई थी। इतना ही नहीं, CAG ने इसमें वित्तीय अनियमितताओं का मामला भी उठाया था।
कुंभ मेले में 59 प्रतिशत निर्माण कार्य और 19 प्रतिशत आपूर्ति अधूरी रह गई थी। कुल स्वीकृत 111 निर्माण कार्यों में से 81 तकनीकी जाँच के बिना ही किए गए थे। मेले में वित्तीय अनियमितता के तहत गैर-जरूरी उपकरणों की खरीद भी की गई। उदाहरण के लिए कुंभ के लिए खरीदे गए लोहे के ठेले मार्च 2013 के आखिर तक बिना इस्तेमाल के ही खुले में पड़े रहे। इसके अलावा टेंडर, तकनीकी बोलियाँ, काम की मंजूरी, इस्तेमाल की गई सामग्री, कोट की गईं दरें और भुगतान में बड़े पैमाने पर अनियमितताएँ पाई गईं। कुंभ के लिए योजना बनाने और विभिन्न विभागों के बीच समन्वय स्थापित करने में कोई वैज्ञानिक मापदंड नहीं अपनाया गया था। इससे भी बड़ी बात ये थी कि कुंभ मेले के आयोजन के लिए कोई विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तक तैयार नहीं की गई थी।
खराब मानव शक्ति प्रबंधन के कारण कुंभ क्षेत्र में तैनात यातायात पुलिस, अग्निशमन सेवाओं और नदी गश्ती पुलिस में 10 से 100 प्रतिशत की कमी थी। अग्निशमन उपकरणों की उपलब्धता सिर्फ 23 प्रतिशत थी। एम्बुलेंस में 60 प्रतिशत और कुंभ के दौरान आवश्यक आपातकालीन रोशनी में 100 प्रतिशत की कमी थी। इसका नतीजा यह हुआ कि यूपी सरकार ने महाकुंभ के पूरे खर्च का सिर्फ एक फीसदी ही खर्च किया था, जबकि केंद्र सरकार का हिस्सा 99 फीसदी तक इस्तेमाल किया गया। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि राज्य ने पहले से चल रहे कामों के लिए अतिरिक्त केंद्रीय कोष से 800 करोड़ रुपए खर्च किए, जबकि इस कुंभ के लिए कुल 1152 करोड़ रुपए का बजट बना था, जिसमें केंद्र सरकार ने 1141 करोड़ रुपए दिए थे। यानी अखिलेश सरकार ने अपनी तरफ से कोई खास इंतजाम नहीं किया था। केंद्र सरकार के पैसे ही कुंभ के लिए आधी-अधूरी तैयारी की थी।
अब अखिलेश यादव सरकार अपनी सीएम योगी की सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि कुंभ की व्यवस्थित तैयारी नहीं की गई है। हालाँकि, इस बार का महाकुंभ तो अभी शुरू होने वाला ही है, लेकिन भाजपा सरकार की हिंदू त्योहारियों की तैयारियों की बानगी साल 2019 और साल 2022 के अर्ध कुंभ मेले में ही मिल गई थी। साल 2019 का मेला साल 2013 के पूर्ण कुंभ मेले से वृहद एवं भव्य था। इसके बाद साल 2022 के कुंभ मेला पिछले मेले से भव्य एवं व्यवस्थित था। इस मेले में 24 करोड़ से अधिक लोगों ने भाग लिया। उनके पर्याप्त और उचित प्रबंध किए थे। इसकी चर्चा दुनिया भर में हुई और योगी आदित्यनाथ की वाह-वाही भी खूब हुई थी। इस बार की महाकुंभ की तैयारियाँ भी कुछ ऐसी ही हैं। योगी सरकार ने महाकुंभ को भव्य और यादगार बनाने के लिए हर छोटी-से-छोटी चीज पर ध्यान दिया है। इस कुंभ की तैयारी उन्होंने साल 2022 में शुरू कर दी थी। तब से वे लगातार इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं। हर तैयारी समय से पूर्ण एवं भव्य है।