भारत की राजनीति में खुलकर हिंदुत्ववाद की राजनीति करने के लिए बालासाहेब ठाकरे का नाम हमेशा सम्मान के साथ लिया जाएगा। आजादी के बाद उन्हें पहला ‘हिंदू हृदय सम्राट’ कहलाने का गौरव हासिल हुआ था। वे जब तक जीवित रहे, उन्होंने हिंदुत्व के साथ कोई समझौता नहीं किया। उनके आलोचक उन्हें कट्टर हिंदुवाद की राजनीति करने वाले व्यक्ति के रूप में याद करते हैं। उन्हें राजनेता इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि राजनीति फायदा और मौका का खेल होता है। इसमें मौका मिलने पर राजनेता उसे भुनाने से नहीं चुकते। बाला साहब ठाकरे इस मामले में सबसे अलग थे। उन्होंने हिंदुत्व के लिए राजनीति को तिलांजलि दे दी थी। उन्हें किंग नहीं, बल्कि किंगमेकर कहा जाता था। हालाँकि, उनकी विरासत को लेकर चलने का दावा करने वाले उनके बेटे उद्धव ठाकरे, उनके सिद्धांतों के आसपास भी नजर नहीं आते।
शिवसेना की स्थापना
बालासाहब ठाकरे लगभग 46 साल तक सार्वजनिक जीवन में रहे। उन्होंने शिवसेना की स्थापना की, लेकिन अपने पूरे सार्वजनिक जीवन के दौरान उन्होंने ना तो कभी चुनाव लड़ा और ना ही कोई राजनीतिक पद स्वीकार किया। यहाँ तक कि उन्हें आधिकारिक रूप से कभी शिवसेना का अध्यक्ष भी नहीं चुना गया था। इन सबके बावजूद वे महाराष्ट्र की राजनीति के प्रमुख स्तंभ थे। कहा जाता है कि मुंबई और आसपास में उनकी इजाजत के बिना पत्ता भी खड़कता था। इसे आतंक के तौर पर नहीं, बल्कि सम्मान के तौर कहा जाता है। पेशेवर कार्टूनिस्ट से राजनीति तक का सफर तय करने वाले इस शख्स का जीवन अपने आप में अनोखा था।
बाल ठाकरे का जन्म 23 जनवरी 1926 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। उनका असली नाम बाल केशव ठाकरे था। उनके पिता केशव सीताराम ठाकरे लेखक थे। वे ‘प्रबोधन’ नाम की एक पत्रिका भी निकालते थे। लेखक और संपादक होने के अलावा केशव सीताराम ठाकरे मराठी भाषी लोगों के लिए अलग राज्य की माँग करने वाले प्रमुख लोगों में शामिल थे। उन्होंने ‘संयुक्त महाराष्ट्र मूवमेंट’ के तहत गुजरातियों, मारवाड़ियों और उत्तर भारतीयों के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ आंदोलन चलाया था। बाल ठाकरे अपने माता-पिता के चार संतानों में एक थे। उन्हें विद्रोही तेवर अपने पिता से विरासत में मिला था।
बाला साहब ठाकरे ने अपने करियर की शुरुआत मुंबई के अंग्रेजी अखबार फ्री प्रेस जर्नल में कार्टूनिस्ट के रूप में की। उनके साथ ही प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण भी काम करते थे। वे कुछ दिन संडे इंडिया में भी रहे। सन 1960 के दशक में उन्होंने ‘मार्मिक’ नामक एक राजनीतिक पत्रिका शुरू की। इसमें उन्होंने अपने पिता की तरह ही मराठी मानुष का मुद्दा उठाया। धीरे-धीरे मराठी लोगों में उनका प्रभाव बढ़ने लगा।
इसके बाद 19 जून 1966 को उन्होंने शिवसेना की स्थापना की। शिवसेना मराठी मानुस के नाम पर राजनीति करने लगी और उसे इसमें सफलता भी मिली। वे कहते थे कि दक्षिण भारतीय लोग मराठियों की नौकरियाँ छीन रहे हैं। इसके बाद महाराष्ट्र के युवाओं में शिवसेना का प्रभाव बढ़ने लगा।धीरे-धीरे मुंबई म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में उनकी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर होने लगा। उनका प्रभाव मुंबई और और आसपास के इलाकों तक ही सीमित था। उसके बाद उन्होंने 80 के दशक में हिंदुत्व पर खुलकर स्टैंड लिया। सन 1987 में उन्होंने नारा दिया- ‘गर्व से कहो हम हिंदू हैं’। उन्होंने हिंदू और हिंदुत्व के नाम पर वोट माँगने शुरू किए।
बाबरी विध्वंस
इसी बीच 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद मुंबई में दंगे फैल गए। लगभग सप्ताह पर चले इन दंगों में कुल 900 लोग मारे गए थे। सैंकड़ों लोगों ने मुंबई छोड़ दी। इन दंगों में शिवसेना और बाल ठाकरे का नाम बार-बार लिया गया। बालासाहेब ठाकरे ऐसे शख्स थे, जिन्होंने अयोध्या में बाबरी ढाँचे को गिराने का खुला समर्थन किया था। जिस समय में ढाँचे को गिराने को लेकर कल्याण सिंह को लेकर कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं, उस दौर में बाला ठाकरे ने इसकी जबरदस्त वकालत की। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया था, “हमारे लोगों ने बाबरी ढाँचे को गिराया है और मुझे उसका अभिमान है।” इसके बाद बाल ठाकरे निशाने पर आ गए। साल 1993 में बाल ठाकरे ने कहा, “अगर मुझे गिरफ्तार किया गया तो पूरा देश उठ खड़ा होगा। अगर मेरी वजह से एक पवित्र युद्ध होता है तो फिर इसे होने दें।”
इसके बाद बालासाहेब ठाकरे का किरदार राष्ट्रीय पटल पर जीवंत हो उठा। पक्ष का नेता हो या विपक्ष का, हर कोई उनसे मिलना चाहता था। चाँदी के सिंहासन पर बाघ की विभिन्न मुद्राओं वाली तस्वीरों के साथ बाला साहब ठाकरे हिंदुत्व के नए चेहरे बनकर उभरे थे। इससे दक्षिणपंथी समूहों में एक नया उत्साह पैदा हुआ था। उनके कट्टर हिंदुत्व और पाकिस्तान के खिलाफ अपनाए रवैये को जबरदस्त समर्थन मिला। पाकिस्तान के साथ क्रिकेट हो या व्यापार, वे हमेशा उसकी मुखालफत करते रहे। इसका परिणाम ये हुआ कि बाला साहब ठाकरे की शिवसेना और भाजपा ने इसके तीन साल बाद ही यानी 1995 में महाराष्ट्र में सरकार का गठन कर लिया। यह सरकार बाला साहब ठाकरे के साए में चलती रही।
राज्य में सरकार बनने के बाद भी उन्होंने कभी कोई पद नहीं लिया और ना ही कभी चुनाव लड़ा। इसके बावजूद उनसे मिलने के लिए विधायक, सांसद, मंत्रियों का ताँता लगा रहता था। यह सब उनके करिश्माई नेतृत्व एवं वाकपटुता का कमाल था। जब वे बोलते थे तो जनता मंत्रमुग्ध होकर उनकी बातें सुनती थी और एक अनजाने डोर से खुद को बाला साहब से बँधा हुआ पाती थी। यही कारण था उनके एक इशारे पर मुंबई में शांति छा जाती है। बालासाहेब ठाकरे से मिलने के लिए सिर्फ शिवसेना के लोग ही नहीं, बल्कि विरोध दल के बड़े-बड़े नेता मिलने के लिए आया करते थे।
जब शिवसेना और भाजपा गठबंधन की सरकार बनी तो कहा जाता है कि सरकार के कोई भी निर्णय उनसे पूछे बिना नहीं लिए जाते थे। वे जब तक जीवित रहे महाराष्ट्र की सत्ता ही नहीं, व्यापार हो, मीडिया या फिल्म इंडस्ट्री उनके आसपास ही घूमती रही। कहा जाता है कि फिल्मों की रीलीज भी उनसे पूछकर होती थी। महाराष्ट्र में कोई भी बाल ठाकरे के सामने सिर उठाने की जुर्रत नहीं करता था। शिवसेना के सदस्य, जिसे शिवसैनिक कहा जाता था, इसे बर्दाश्त नहीं करते थे। वे हिंसा में विश्वास करते थे और इसी तरीके को अपनाते थे। यही कारण की कभी अंडरवर्ल्ड के साए में रही मुंबई भी के बड़े-बड़े माफिया शिवसेना और बाल ठाकरे के नाम से काँपते थे।
इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ गरजे बालासाहेब
बाल ठाकरे हिंदुत्व को लेकर इतने बेबाक थे कि कई बार दक्षिणपंथी भी असहज हो जाते थे। हालाँकि, अपने बयानों के लिए उन्होंने कभी भी खेद नहीं जताया। उनके बयानों को लेकर चुनाव आयोग ने दिसंबर 1999 में अगले 6 साल के लिए उन पर प्रतिबंध लगा दिया। इस दौरान ना ही वो मतदान कर सकते थे और ना ही चुनाव लड़ सकते थे। इसी बीच साल 2002 में उन्होंने कहा ‘हिंदू अब मार नहीं खाएँगे, हम उन्हीं की भाषा में जवाब देंगे’। उन्होंने कहा कि इस्लामी आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए हिंदुओं को भी आत्मघाती दस्ते बनाने चाहिए, तभी आतंकवाद का मुकाबला हो सकेगा। उन्होंने मुस्लिम समुदाय को कैंसर तक बता दिया था। इस तरह के बयानों को लेकर उन्होंने कभी खेद नहीं जताया। उन्होंने मुंबई को पूरे देश के लोगों का स्थान बताने पर सचिन तेंदुलकर को भी आड़े हाथों लिया था। वे हिंदू और हिंदुत्व और भारतीय संस्कृति का खुलकर पक्ष लेते थे। ऐसे कई मौके भी आए जब उन्होंने पाकिस्तानियों का विरोध किया। इनमें पाकिस्तान के विख्यात गजल गायक गुलाम अली का मामला सबसे प्रमुख है।
बाल ठाकरे का व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि उनको लेकर तमाम तरह की कहानियाँ प्रचलित हो गई हैं।कहा जाता है कि उन्हें जर्मनी के तानाशाह रहा हिटलर बेहद पसंद था। वे हिटलर के प्रशंसक थे। साल 2007 में इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि हिटलर क्रूर था, लेकिन वह कलाकार था, वह साहसी था। वह लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में माहिर था। बालासाहेब ठाकरे को ब्रिटेन के कार्टूनिस्ट डेविड लो बहुत पसंद थे। दूसरे विश्व युद्ध पर डेविड लो के कार्टून काफी लोकप्रिय हुए थे।