आज अयोध्या के राम मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ है, तिल रखने तक की जगह नहीं है। एक वक्त ऐसा भी आया जब मंदिर प्रशासन को यहां तक कहना पड़ा कि अब लोग राम मंदिर में ना आएं। कई लोगों को लगता होगा कि यह मंदिर एक दिन अदालत के एक फैसला के बाद बन गया। लेकिन असल में इस मंदिर के लिए बड़ी संख्या में हिंदुओं ने अपना सर्वस्व खपा दिया है। ऐसे अनगिनत लोग हैं जिन्होंने अपना जीवन राम के नाम पर अर्पित कर दिया है। इन्हीं लोगों में शामिल थे ‘काला बच्चा सोनकर’।
बहुत हद तक संभव है कि आज की पीढ़ी के कई युवक ‘काला बच्चा सोनकर’ के नाम से परिचित न हों। लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब उत्तर प्रदेश कानपुर में इन्हें ‘हिंदूवादी भौकाल’ के नाम से जाना जाता था। जब अयोध्या में विवादित ढाचे को गिराया गया तो उसके बाद काला बच्चा पर 76 केस दर्ज किए गए थे, वो भी एक ही दिन में। इस राम भक्त का आतताइयों में खौफ ऐसा था कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI को उनकी हत्या करानी पड़ी। काला बच्चा के बेटे और बीजेपी के विधायक राहुल बच्चा सोनकर ने अपने पिता की पुण्यतिथि (9 फरवरी) पर उन्हें याद किया है।
राम मंदिर आंदोलन और एक दिन में 76 केस
‘काला बच्चा’ का असली में नाम ‘मुन्ना सोनकर’ था, रंग सांवला था तो लोगों ने काला बच्चा कहना शुरू कर दिया। फिर यह सिलसिला कभी रुका ही नहीं और यही नाम मुन्ना सोनकर की पहचान बन गया। कानपुर के बिल्हौर के रहने वाले काला बच्चा सोनकर खटीक समुदाय से आते थे। गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले काला बच्चा के पिता सूअर पालन का काम करते थे और मां सब्ज़ी बेचने का काम करती थीं। काला बच्चा ने भी कई कामों में हाथ आजमाया और अंत में वह भी पिता के काम में उतर आए।
शुरु से ही वे हिंदू-मुस्लिम संघर्षों में आगे रहते थे और राजनीति में सक्रिय थे। 1992 के दौर में राम मंदिर को लेकर देशभर में आंदोलन अपने चरम पर था। 6 दिसंबर 1992 को जब अयोध्या में विवादित ढांचे को गिरा दिया गया तो देशभर में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। इस आंदोलन में काला बच्चा सोनकर हिंदुओं के रक्षक बनकर सामने आए थे। 1993 में कानपुर के DIG रहे आलोक लाल ने बताया कि जब 1992 में कानपुर में दंगे भड़के थे तो उसमें काला बच्चा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा, “काला बच्चा को वहां हिंदुओं के रक्षक के तौर पर देखा गया था।”
1993 में कानपुर के DIG रहे आलोक लाल उस दौरान पिता जी अमर शहीद काला बच्चा के बारे में बताते हुए,
बाबरी विध्वंस के बाद काला बच्चा 1992 के हिन्दू-मुस्लिम दंगों में हिन्दुओं का रक्षक थे,
पिता जी की हत्या के बाद श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी मेरे परिवार से मिलने कानपुर आए थे, लेकिन… pic.twitter.com/67U00GbtcT
— MLA Rahul Bachcha Sonkar (@RahulBachchaBJP) November 15, 2023
विवादित ढांचे को गिराए जाने के बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। कानपुर में ढांचा गिराए जाने के विरोध में 7 दिसंबर को निकाले गए मार्च के बाद हिंसा भड़की और इसमें हिंदुओं की रक्षा करने वाले काला बच्चा के खिलाफ एक ही दिन में (7 दिसंबर) 76 केस दर्ज किए गए थे। काला बच्चा पर लूटपाट और एक वर्ग विशेष के लोगों की हत्या तक करवाने के आरोप लगाए गए थे। इसके बाद भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और राम व राष्ट्र के काम में जुटे रहे।
सम्मान से नहीं मिल सकी अंतिम विदाई
1992 में काला बच्चा सोनकर के खिलाफ 76 केस दर्ज कर लिए गए लेकिन उनकी ख्याति देश भर में फैल चुकी थी। 1993 आते-आते बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में उन्हें बिल्हौर सीट से टिकट दिया था लेकिन आखिरी दौर में अपने प्रतिद्वंद्वी सपा के उम्मीदवार शिव कुमार से 682 वोटों से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। चुनाव के करीब डेढ महीने बाद 9 फरवरी 1994 को काला बच्चा स्कूटर से अपने बहनोई के साथ जा रहे थे और इसी दौरान उन पर बम से हमला किया गया। बताया जाता है कि बम का प्रभाव इतना ज्यादा था कि उनके शरीर में केवल धड़ बचा था, बाकी शरीर के चिथड़े उड़ गए थे।
इसके बाद शहर में खूब हंगामा हुआ, बीजेपी के बड़े नेता उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए कानपुर पहुंचे और प्रशासन ने तय किया कि अगले दिन बीजेपी के दफ्तर से काला बच्चा की शव यात्रा निकाली जाएगी। बीजेपी के नेताओं ने रातों-रात इसकी तैयारी की और अगली सुबह अंतिम यात्रा निकाले के लिए तैयार हो गए। इसी बीच तड़के करीब 4 बजे काला बच्चा की मौसी हांफते हुए बीजेपी दफ्तर पहुंची और वहां मौजूद नेताओं को बताया कि काला बच्चा के शव को जला दिया गया है। तत्कालीन मुलायम सिंह की सरकार ने एक राम भक्त को सम्मान की अंतिम यात्रा भी नसीब नहीं होने दी थी। और तो और उनके अंतिम संस्कार तक में परिवार के लोगों को शामिल नहीं होने दिया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, केवल 7 परिजन की मौजूदगी में उनकी अंतिम संस्कार किया गया था।
अंतिम संस्कार के समय काला बच्चा की मां को पीटा गया
पुलिस ने ना केवल काला बच्चा के शव के साथ बदसलूकी की बल्कि अंतिम संस्कार के दौरान उनकी मां के साथ भी दुर्व्यवहार किया गया था। उस समय की मीडिया रिपोर्ट्स में इसका ज़िक्र मिलता है। काला बच्चा की मां रामरती ने अपने साथ हुई बदसलूकी को लेकर तब बताया था, “जब हमने अपने बच्चे की मिट्टी मांगी तो पुलिसवालों ने मुझे धक्का दे दिया और जब मैं चिल्लाने लगी तो मुझे मारा गया। मेरे सिर पर चोट लगी चोट और हाथ में खरोचे आई हैं।” उन्होंने बताया था कि जब उनकी बेटी ने शव को जलाने का विरोध किया तो उन्हें भी गालियां दी गईं। रामरती के मुताबिक, काला बच्चा की शव जलाने से पहले प्रशासन के लोगों ने उससे किसी कागज पर अंगूठा लगवाने की कोशिश की थी, जब उन्होंने अंगूठा जब नहीं लगाया तो उन्हें डराया और धमकाया गया था।
अस्थियों से निकले लोहे के 40 टुकड़े
काला बच्चा के ऊपर इतने ताकतवर बम से हमला किया गया था कि उनके आधे शरीर के चिथड़े उड़ गए थे। जब काला बच्चा के अंतिम संस्कार के बाद उनकी अस्थियां चुनने के लिए परिवार पहुंचा तो वहां बमों से निकले लोहे के करीब 40 टुकड़े मिले थे। परिवार जब अस्थियां चुनने लगा तो लोहे के ये टुकड़े उनको हाथों में आने लगे और कुछ टुकड़ों की मोटाई को उंगली जितनी थी। इससे स्पष्ट अंदाजा लगाया जा सकता है कि बम कितने ताकतवर रहे होंगे।
हत्या में ISI का था हाथ!
काला बच्चा के बेटे राहुल बच्चा ने उनकी हत्या के बाद की एक वीडियो शेयर कर लिखा था, “पूरे कानपुर में हिन्दुओं का खून खौल उठा था, लोग सड़कों पर थे, और दमनकारी सपा सरकार हिंदुओं पर लाठियां बरसा रही थी।”
1994 में पिता #काला_बच्चा की हत्या के बाद कानपुर में कर्फ्यू का दृश्य, पूरे कानपुर में हिन्दुओं का खून खौल उठा था, लोग सड़कों पर थे, और दमनकारी सपा सरकार हिन्दुओं पर लाठियां बरसा रही थी,
ये वीडियो देखकर माहौल का अंदाजा लगाया जा सकता है ।#काला_बच्चा_अमर_रहें pic.twitter.com/kN3ICDstC8
— MLA Rahul Bachcha Sonkar (@RahulBachchaBJP) February 10, 2021
इस हत्या के बाद कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था। हत्या के बाद पकड़े गए कुछ आरोपियों ने बताया कि काला बच्चा की हत्या के लिए मुंबई से 10 लाख रुपए की सुपारी दी गई थी जिसमें से 4 लाख रुपए हत्यारों को दिए गए थे। इस हत्या में अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम के गैंग और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के होने की भी चर्चा सामने आई थी। यहां तक दावा किया गया था कि ISI ने बीजेपी के कई नेताओं की हत्या की साज़िश रची है और काला बच्चा की हत्या इस कड़ी की शुरुआत भर है।
काला बच्चा सोनकर की कहानी एक विचार के प्रति खुद को समर्पित करने की कहनी है। उनकी हत्या के बाद भी आज तक उन्हें याद किया जाता है। कट्टरपंथी ताकतों ने जिस नाम को बम के शोर से खामोश करने की कोशिश की उसका बलिदान आज भी लोगों को प्रेरणा देता है।