आज उत्तर प्रदेश विधानसभा में समाजवादी पार्टी के विधायकों ने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के अभिभाषण के दौरान लगातार नारे लगाए, शोर शराबा किया। इस दौरान कुछ विधायक पैरों में बेड़ियां और जंजीर बांधकर आए थे और वे इस बात का विरोध जता रहे थे कि अमेरिका से भारत के नागरिकों को हथकड़ी लगाकर भेजा गया है। पहले एक हवाई जहाज आया, दूसरा भी आ गया उसमें भी हथकड़ी लगाकर ही लोग आए हैं, भारत सरकार क्या कर रही थी? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब डोनाल्ड ट्रंप से मिले थे अमेरिका गए थे तो इस पर बात क्यों नहीं की? भारत की कोई इज्जत है या नहीं है? इसके अलावा समाजवादी पार्टी की ओर से वहां उर्दू की भी बात हुई है उस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बयान भी दिया है कि समाजवादी पार्टी के नेता अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम में पढ़ते हैं लेकिन चाहते हैं कि मुसलमान उर्दू पढ़ें और केवल उनका वोट बना रहे। वे आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के संदर्भ में ना आ पाएं क्योंकि उन्हें केवल मुसलमानों का वोट चाहिए। कई विषय आज उठे हैं ।
अमेरिका से जब भारतीयों का पहला दल अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरा तो पूरे देश में इस बात को लेकर थोड़ा नाराज़गी थी कि हथकड़ी लगाकर क्यों भेज रहे हैं। लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने से पहले ही कहा था कि जितने भी हमारे यहां ‘इलीगल इमीग्रेंट’ हैं, जिनको सभ्य भाषा में अवैध अप्रवासी कहते हैं और हम सामान्य भाषा में करें तो गैर कानूनी रूप से घुसपैठ करने वाले यानी घुसपैठिए कह सकते हैं, उनको अमेरिका से हम सीधे वापस भेजेंगे, हथकड़ी डालकर भगा देंगे। उन्होंने इसकी शुरुआत की कोलंबिया से, वहां के राष्ट्रपति वामपंथी है, उन्होंने थोड़ा विरोध किया कि यह तो हमारे राज्य की संप्रभुता का अतिक्रमण है, संप्रभुता पर हमला है लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने कड़ा रुख किया और उनकी सामग्रियों पर टैक्स बढ़ाया, फिर उनको झुकना पड़ा उन्होंने अपना हवाई जहाज भेज कर लोगों को वापस बुलाया।
दुनिया भर में ताकतवर होते मानव तस्करी के तंत्र
अब इस समय की स्थिति यह है कि अमेरिका में एक करोड़ से ज्यादा अवैध अप्रवासी या गैर कानूनी घुसपैठिए हो चुके हैं, कोई भी देश अगर उसके यहां इतनी भारी संख्या में घुसपैठिए हों तो उनके प्रतिपालन पर, उनकी व्यवस्था पर बहुत ज्यादा खर्च होता है। उनमें से बहुत सारे लोग वहां नौकरी भी करते हैं जो दूसरे का रोजगार मारते हैं। हालांकि, किसी अन्य देश में वैध रूप से किसी को मान्य नौकरी नहीं मिल सकती है लेकिन आजकल दुनिया में ह्यूमन ट्रैफिकिंग में ऐसे तंत्र खड़े हो गए जो किसी ने किसी प्रकार से कोई कार्ड बनवाकर या कोई न कोई रास्ता निकाल कर, फ़ेक वीजा बनाकर, नौकरी दिलवा देना, एडमिशन दिलवा देना यह सब कर लेते हैं। जब संसद का अधिवेशन चल रहा था तब भी विपक्ष की पार्टियों ने इसे लेकर हंगामा किया और फिर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बयान दिया कि यह कोई पहली बार नहीं है, लगातार वहां से हर वर्ष जो भारतीय हैं, जो ‘इलीगल इमीग्रेंट’ हैं उनको वापस किया गया है, उन्होंने आंकड़े भी दिए लेकिन पहली बार ऐसा किया गया है जब हथकड़ी लगाकर भेजा गया हो। इस पर उन्होंने कहा कि अमेरिका से बात की गई है और आगे भी बात की जाएगी।
कैसा होता है ‘डंकी रूट’?
यह प्रश्न उठता है कि जिन लोगों को लेकर विपक्ष छाती पीट रहा है क्या वह पासपोर्ट के साथ, दिल्ली स्थित अमेरिका के दूतावास से वीजा लेकर, किसी फ्लाइट में टिकट कटाकर गए थे। क्या उनको मेहमान की तरह ले जाया गया था? इन्हें ले जाने वाले जो बेइमान एजेंट्स हैं उन्हें इन लोगों ने ज़मीन बेचकर, किसी ने किसी और तरह से लाखों रुपए दिए हैं। और यहां से डंकी रूट के रास्ते, जहां ना खाने की व्यवस्था, ना पानी की व्यवस्था ना रहने की व्यवस्था, ठहरने की उचित व्यवस्था नहीं है। इन लोगों को जाने में कितने कष्ट हुए होंगे, जंगलों से होकर, पहाड़ों से होकर जाने में। कुछ लोग बता रहे हैं कि मेक्सिको सीमा में ले जाकर धकेल दिया गया और वहां तुरंत उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। कुछ लोगों के बटुए, डॉलर भी ले लिए, कुछ लोगों के मोबाइल तक छीन लिए, कुछ लड़कियों के आभूषण ले लिए। कोई पूछने वाला है नहीं, जहां शिकायत करेंगे, बात करेंगे वहीं अरेस्ट हो जाएंगे। पता नहीं और क्या-क्या दुराचार हुआ होगा, बहुत कुछ तो लोग बताते भी नहीं है, लड़कियां तो बहुत कुछ अपने बारे में बता भी नहीं सकती हैं कि उनके साथ इस प्रकार के दुर्व्यवहार हुए हैं।
₹50 लाख देकर अवैध रूप से अमेरिका जा रहे लोग
जो लोग अभी छाती पीट रहे हैं उन लोगों को पूछना चाहिए भाई आप लोगों को आप लोग जो बता रहे हैं कि यहां तो बहुत बेरोज़गारी है। 1 अरब 40 करोड़ का देश है और इसमें जाने वाले कितने लोग हैं? अभी अमेरिका में अवैध भारतीयों की संख्या 18,000 के आसपास है। जो लोग इस रूप में बाहर जाते हैं वे भारत का, अपने देश का अपमान करते हैं, अपना अपमान करते हैं। पूरे देश का सिर गिराते हैं और भारत के नेताओं को दूतावास के अधिकारियों के सामने कोई उत्तर देते नहीं बनता है। आखिर अगर हम अवैध घुसपैठ का समर्थन करेंगे किसी के यहां कि अवैध लोगों को मान्यता दीजिए, उनका सम्मान करिए, तो हमारे देश में भी जो अवैध घुसपैठिए आएंगे उनके साथ भी हमें ऐसा ही करना पड़ेगा। जो लोग छाती पीट रहे हैं आखिर उनका इरादा क्या है, क्या वे चाहते हैं कि भारतीय दूसरी जगह जाकर ऐसा ही करें और जो लोग बता रहे हैं कि वे बेरोजगार हैं, तो ऐसे लोग 45 लाख से 50 लाख रुपए तक देकर जा रहे हैं। 45-50 लाख रुपए में भारत में कोई साधारण बिजनेस शुरू कर सकते थे, बहुत सारे काम हो सकते थे लेकिन वह नहीं किया गया है।
कोई गरीब परिवार का लड़का अगर छटपटाहट में भागकर गया हो तो समझ भी आता है। जो दो लोग वापस आए हैं, उन पर तो आपराधिक मुकदमे थे तो खुद बचने के लिए उन्होंने पैसे खर्च किए और देश के बाहर भाग गए और बुरी तरह फंस गए। छाती पीटने के बजाय, विपक्ष और सत्ता पक्ष के लोग इन्हें समझाएं कि यह अपराध है, इसके लिए वहां उन्हें जेल में भी डाला जा सकता है। कंसंट्रेशन कैंप में रखा जा सकता है, अगर भारत लेने के लिए तैयार नहीं होगा तो उन्हें कहां भेजा जाएगा? किसी पर ड्रग को लेकर मुकदमा किया जा सकता है कि हमारे देश में ड्रग्स लेने आया था। देह व्यापार के मामले में फंसा सकते हैं, आपसे कोई गुलामी करवा सकता है तो ऐसे में वहां क्या करेंगे आप? वहां आप तो कहीं मुकदमा भी नहीं कर सकते हैं। बिना सोचे समझे छाती पीटना उचित नहीं है।
अवैध रूप से जाने वालों के लिए कितनी मुश्किलें?
यह विषय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पत्रकार वार्ता में भी उठा था, पत्रकार ने प्रश्न किया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वीकार किया कि हम अपने लोगों को लेने के लिए तैयार हैं। और उसमें हमें कोई समस्या नहीं है। मानव तस्करी दुनिया भर में एक बड़ा विषय है, भोले-भाले लोगों को या कई बार समझदार लोगों को भी बहला-फुसला कर ले जाने के तंत्र खड़े हो गए हैं। उन्हें एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता है, उनके अंगों के व्यापार किए जाते हैं, उनकी हत्या भी की जाती है, उनके लीवर बेचे जाते हैं, उनकी आंखें बेची जाती हैं। बहुत सारे अलग-अलग धंधे उनसे करवाए जाते हैं। विश्व भर में बहुत सारे वेश्यालय हैं, जो ऐसी ही लड़कियों के द्वारा चलाए जाते हैं। भारत में भी ऐसी लड़कियां हैं, बार-बार उनका भी पकड़ा जाता है और उनको छुड़ाया जाता है, दुनिया भर में ऐसी स्थिति चल रही है और यह एक बड़ा विषय है।
भारत इस समय विश्व की उभरती हुई शक्ति है और आज भारत के अंदर इतनी क्षमता है कि कोई व्यक्ति अगर अति महत्वाकांक्षी नहीं है, उसको एक सामान्य जीवन जीना है तो उसके लायक भारत में हर कुछ उपलब्ध है। आप यहां शांति से दो रोटी खाकर, एक सामान्य घर में रहकर, अपने परिवार का पालन पोषण करके जीवित रह सकते हैं, सम्मान के साथ रह सकते हैं, जहां आपको प्यार भी मिलेगा। लेकिन अगर यह लालच है कि हम ज्यादा धनवान बन जाएं, अधिक से अधिक संपत्ति हो जाए, थोड़ा समाज में रौब रहे और यहां अगर आपको किसी अच्छी जगह एडमिशन नहीं मिलता है तो कोई एजेंट बताता है कि हम विश्व में कहीं करा देंगे वहां बढ़िया है, कोई कहेगा कि कनाडा में अच्छा है और उसमें अभिभावक को प्रभाव में लाकर जमीन बिकवाते हैं, संपत्ति बिकवाते हैं। यह सब लोग दुर्भाग्यशाली हैं, अभागे हैं और इससे पूरे देश का सम्मान गिरता है।
अवैध प्रवासन और अमेरिका की नीति
विपक्ष अगर इस प्रकार का बर्ताव करेगा तो वह स्वीकार नहीं हो सकता है, यह सीधे-सीधे उन लोगों को जो हमारे देश से विदेश भागना चाहते हैं उनको प्रोत्साहित करना है। अगर आप उनके लिए लड़ाई लड़ेंगे तो वे सोचेंगे कि भागते हैं और देखेंगे कि क्या होता है। ये बात सही है कि हथकड़ी लगाकर नहीं भेजना चाहिए मनुष्य की अपनी एक गरिमा होती है लेकिन दोनों तरफ देखना पड़ेगा। मुझे नहीं लगता है कि सैन्य विमान से डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन विश्व भर में एक करोड़ लोगों को वापस भेज देगा या भारत के 18000 लोगों को वापस भेजेगा। आप सोचिए की अगर एक प्लेन से 100 लोगों को लाया जा रहा है तो आपको 18,000 लोगों को लाने के लिए कम से कम 180 ऐसे प्लान चाहिए होंगे तभी आप लोगों को ला पाएंगे। जाहिर है कि यह इतना आसान नहीं है, अगर 180 फ्लाइट्स को एक-दो दिन के अंतराल पर भी भेजेंगे, तब भी एक वर्ष से अधिक लग जाएगा और उसमें खर्चा भी बहुत अधिक आएगा। डोनाल्ड ट्रंप ऐसा नहीं कर सकते, लेकिन दुनिया में दबाव बढ़ाने के लिए कि हमारे देश में आने वाले लोग ऐसे ना घुसे और वे देश अपने लोगों को वापस लें, इसलिए वे ऐसा कर रहे हैं। क्योंकि एक करोड़ लोगों को ऐसे भेजना संभव नहीं है।
शरणार्थियों के लिए बदल रही दुनिया
अब यह समझ लेना चाहिए कि दुनिया का कोई भी देश अब शरणार्थियों को लेने के लिए तैयार नहीं है। एक समय था, जब शरणार्थियों को अलग-अलग देशों ने शरण दी थी, उसके लिए कानून बनाए लेकिन अब समय बदल रहा है। अब एक उल्टा दौर शुरू हो गया है, सब देश खुद में सिमट रहे हैं, सबको अपनी आर्थिक स्थिति की चिंता है, रक्षा खर्च भी घटाया जा रहा है। इसलिए अपने देश के अंदर जितने संसाधन हैं, लोग उसमें जीना और काम करना सीखें। वैध रूप से बड़ी डिग्री प्राप्त करके, अगर किसी देश में आपको वीज़ा मिलता है, वहां जाने का प्रस्ताव मिलता है। पढ़ाई में कोई आपको स्कॉलरशिप मिली है, कहीं आपका एडमिशन हो जाता है तो उसमें कहीं जाने में हर्ज नहीं है। लेकिन अब पहले जैसी परिस्थिति नहीं है कि आप कहीं जाएंगे और आपका स्वागत होगा क्योंकि वहां लोगों की कमी है। उन देशों में भी बेरोज़गारी बढ़ रही है, खासकर अवैध रूप से जाना आपके लिए तो खतरनाक है ही, यह आपको परिवार और देश के लिए भी खतरनाक है और इसका किसी भी तरह से समर्थन नहीं किया जा सकता है।