वैसे तो राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप कोई नयी बात नहीं, लेकिन जब आरोप थोपने वाला अपने ही परिवार का हो तो बात ख़ास हो जाती है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव चारा चोरी के मामलों में सजायाफ्ता अपराधी हैं और फ़िलहाल स्वास्थ्य कारण बताकर जमानत पर बाहर हैं। ये अलग बात है कि जिन तथाकथित स्वास्थ्य कारणों से वो जेल में नहीं रह सकते, वो स्वास्थ्य कारण न तो उनके घूमने फिरने या पुस्तकों के विमोचन में जाने में बाधा डालते हैं, न ही इन स्वास्थ्य कारणों से उनकी राजनैतिक गतिविधियों पर कोई असर पड़ा है। असल में तो जब वो रांची में जेल में थे, उस समय भी जेल में नहीं बल्कि सिविल सर्जन के आवास को जेल बनाकर उसमें रखे गए थे। लालू यादव अब राजनीति में सक्रिय नहीं, राजद की कमान भी उन्होंने अपने बेटे को थमा दी है, लेकिन सोशल मीडिया जैसे मंचों पर अब भी एक जाति विशेष के लोग उनपर सिद्ध हो चुके चारा चोरी के अपराधों का बचाव करते हुए दिख जाते हैं।
लालू यादव और उनके कुनबे को जाति के कारण मिल रहे संरक्षण को इस सप्ताह एक बड़ी चोट पड़ गयी जब उनके ही साले (बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के भाई) सुभाष यादव ने एक के बाद एक कई खुलासे कर दिए। अदालत जिस दौर को ‘जंगलराज’ बताती थी, उसके कई कारनामे लोगों ने भोग रखे हैं, लेकिन नयी पीढ़ियों को जब वो किस्से सुनाये जाते थे, तो उनके लिए एक बार इन पर विश्वास करना कठिन होता था। बिहार की करीब 40 प्रतिशत से अधिक आबादी पच्चीस वर्ष या उससे कम के युवाओं की है, इसलिए उन्होंने प्रत्यक्ष ‘जंगलराज’ देखा भी नहीं, तो उनके लिए ये विश्वास करना कठिन होता था कि मुख्यमंत्री की बेटी की शादी में शोरूम से गाड़ियाँ जबरन उठाई जा सकती हैं। सुभाष यादव ने अपने बयानों में खुलासा कर दिया कि टाटा के शोरूम से आजाद गाँधी और बच्चा राय (यादव) ने दस-पंद्रह गाड़ियाँ ‘उठा’ ली थीं। इस घटना के बाद टाटा ने बिहार में अपने शोरूम लम्बे समय तक बंद रखे। बाद में नीतीश कुमार की सरकार आने के बाद पटना में फिर से टाटा के शोरूम खुलने लगे।
सुभाष यादव का दूसरा बड़ा खुलासा राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री बनने से भी जुड़ा हुआ था। उन्होंने बातों-बातों में बताया कि उस समय राजद के पास 34 ही विधायक थे। ये संख्या बहुमत से बहुत दूर थी। कांग्रेस आदि दलों ने तो समर्थन दिया था, लेकिन इसमें भी उन्होंने आगे जोड़ा कि पता नहीं किसके दस्तखत करके किसने तब के राज्यपाल किदवई के पास कागज़ जमा किये और राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बन गयीं। उन्होंने कहा कि ये तो अलग जांच का विषय है कि किसने दस्तखत किये थे। जब ये पूछा गया कि जंगलराज के दौर के अपराधों में तो उनका और साधु यादव का ही नाम आता है तो उन्होंने कहा कि लोगों ने फंसा दिया और परिवार के लोगों यानी लालू-राबड़ी ने सोचा कि साधु-सुभाष को बदनाम करके अपनी अगली पीढ़ी यानी मीसा भारती और तेजस्वी-तेज प्रताप को आगे बढ़ाने का मौका मिल जायेगा। इसलिए सारे मामलों में उन्हें बदनाम किया गया और असली दोषी लालू यादव पाक-साफ बने रहे।
लालू यादव के अपराधों पर एक बड़ा खुलासा करते हुए उन्होंने ये भी बता दिया कि तब लालू यादव, प्रेमचंद गुप्ता और शहाबुद्दीन मिलकर अपहरण के कुटीर उद्योग को कैसे प्रश्रय देते थे। पूर्व सांसद सुभाष चंद्रा के एक रिश्तेदार गोयल का उस दौर में अपहरण हो गया था। लोग मानते हैं कि इस अपहरण में जाकिर हुसैन का हाथ था, जो कि सुभाष यादव का करीबी था। असल में इस अपहरण के बाद फिरौती की रकम के लिए मुख्यमंत्री आवास में ही बैठकर लालू, प्रेमचंद गुप्ता और शहाबुद्दीन ने अपराधियों और पीड़ित परिवार के बीच दलाली की थी। सुभाष यादव के इस खुलासे के बाद लोगों के लिए अपहरण जैसी फिल्मों में दिखाई गयी घटनाओं की याद ताजा हो गयी। अपराधियों को सत्ता का कैसा संरक्षण मिला हुआ था, अपराध करना कैसे शान की बात होती थी और लोग गर्व से बताते थे कि उनका रिश्तेदार अपराधी है, ये सब कुछ पुराने लोगों को तो याद आया ही, साथ ही जिन नए लोगों को इनपर विश्वास नहीं होता था, उनके लिए भी सुभाष यादव का खुलासा एक नया सबक होगा।
राजनीति के दूसरे कारणों की बात करें तो सुभाष यादव का खुलासा ऐसे समय आया है जिस वर्ष बिहार में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इन चुनावों पर भी सुभाष यादव ने टिप्पणी की है और कहा है कि एनडीए के गठबंधन वाले दलों यानी भाजपा, जद (यू), चिराग पासवान आदि को मिला दिया जाए तो कुल मतों का करीब सत्तर प्रतिशत इनको जाता है और राजद के जीतने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है। भाजपा के लिए ये एक सुनहरे अवसर की तरह आया और भाजपा के राज्य प्रभारी दिलीप जायसवाल ने इस मुद्दे पर कहा कि साधु-सुभाष उस वक्त लालू-राबड़ी के करीबी थे और जब वो पोल खोल रहे हैं तो जनता तक उनकी बातें पहुंचनी ही चाहिए। जद (यू) के नीरज बबलू ने भी कहा है कि इतने दिनों से जिस जंगलराज की हम लोग सिर्फ बातें करते थे, उसकी पोल अब राजद के नेताओं के रिश्तेदारों ने ही खोल दी है।
विधानसभा चुनावों वाले साल बिहार की राजनीति गर्मानी अभी शुरू ही हुई है। अख़बारों से लेकर मीडिया तक, लोग ऐसे बयानों और ऐसी ही घटनाओं के इन्तजार में होंगे। इन सबके बीच एक बड़ा सवाल ये है कि पिछले विधानसभा चुनावों में जंगलराज लाने वाली पार्टी राजद को जनता ने सबसे अधिक सीटें दी थी। क्या ऐसे अपराधियों से जनता का मोहभंग होगा?