अपने अंतिम स्नान महाशिवरात्रि की तरफ बढ़ चुके महाकुंभ ने देश और दुनिया को विविध रंगों से परिचित करवाया है। दुनिया के हर हिस्से से आए लोगों ने अपने अलग-अलग अनुभव यहाँ बयान किए। इन्हीं में से एक हैं तेलंगाना के हैदराबाद में गोशामहल विधानसभा सीट से भाजपा विधायक टी राजा सिंह। टी राजा सिंह सोशल मीडिया और युवाओं के बीच टाइगर राजा सिंह नाम से भी प्रसिद्ध हैं। टाइगर राजा सिंह ने महाकुंभ से माँग उठाई है कि लगभग 25 वर्षों से ओडिशा की जेल में बंद रविंदर पाल उर्फ़ दारा सिंह को जेल से रिहा किया जाए।
टी राजा सिंह ने यह माँग कथावाचक देवकीनंदन द्वारा आयोजित एक धर्म सभा में उठाई है। यह धर्म सभा सनातन बोर्ड के गठन हेतु आयोजित की गई थी जिसमें हजारों लोगों के साथ सैकड़ों साधु-संत मौजूद थे। टाइगर राजा सिंह ने इन सभी के बीच कहा कि उत्तर प्रदेश के जिला औरैया के रहने वाले दारा सिंह 2 दशक से अधिक समय से जेल काट रहे हैं। उनका कसूर यही था कि उन्होंने विदेशी ताकतों के इशारे पर हो रहे ईसाई धर्मान्तरण का हिंसक प्रतिकार किया था। राजा सिंह की माँग को आम जनमानस और मौजूद श्रद्धालुओं ने जय श्री राम के उद्घोष के साथ समर्थन दिया।
इसी सभा में टी राजा सिंह ने दारा सिंह के साथ उन कारसेवकों को भी याद किया जो 1990 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान मुलायम सिंह यादव सरकार में गोलियों से भून दिए गए थे। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि आज उन बलिदानियों को पूछने वाला कोई भी नहीं बचा है। राजा सिंह का मानना है कि अगर सनातन बोर्ड का गठन होता है तो ऐसे परिवारों की सुध ली जाएगी जिन्होने धर्म या देश के हित में स्वयं को स्वाहा कर दिया हो। इस सुध में विभिन्न केसों में फँसाए गए हिन्दुओं को कानूनी मदद देना भी शामिल है।
कौन है दारा सिंह उर्फ़ रविंदर पाल
अब लगभग 60 वर्ष की उम्र के हो चुके रविंदर पाल उर्फ़ दारा सिंह मूलतः उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के निवासी हैं। उनका घर फंफूंद जंक्शन के पास है। युवावस्था में दारा सिंह नौकरी की तलाश में नोएडा गए थे। यहीं पर उनको ओडिशा का एक युवक मिला और उसके साथ दारा सिंह ओडिशा चले गए। यहाँ वो हिन्दू संगठनों के साथ मिल कर धर्म जागरण का काम करने लगे। उस समय ओडिशा के जनजातीय लोग सामूहिक तौर पर धर्मान्तरण के शिकार बनाए जा रहे थे। तब मूलतः ऑस्ट्रेलिया का रहने वाला ग्राहम स्टेंस ओडिशा के सबसे बड़े पादरियों में शुमार किया जाता था।
23 जनवरी 1999 में ओडिशा के क्योंझर जिले में एक भीड़ ने ग्राहम स्टेंस को उसकी जीप के अंदर बंद कर के जला दिया। इसी आगजनी में ग्राहम स्टेंस के 2 नाबालिग बेटे फिलिप और टिमोथी भी जल कर मर गए थे। कालांतर में अरुल दास नाम के एक अन्य पादरी और शेख रहमान नाम के एक कथित व्यापारी की भी हत्या हुई थी। शेख रहमान को तब कुछ लोग गौहत्या के सिंडिकेट को संचालित करने वाला आरोपित मानते थे। ग्राहम स्टेंस के साथ अरुल दास और शेख रहमान की हत्याओं में ओडिशा पुलिस ने दारा सिंह को आरोपित किया था।
आखिरकार 1999 में ही ओडिशा पुलिस ने दारा सिंह की गिरफ्तारी दिखाई। दारा सिंह के परिजनों का दावा है कि अपने भाई को पुलिस की अवैध कस्टडी से बचाने के लिए उन्होंने पुलिस के आगे खुद ही सरेंडर किया था। पुलिस द्वारा उनकी गिरफ्तारी की कहानी इनाम की राशि हड़पने की साजिश मानी जाती है जो बाद में कामयाब भी नहीं हो पाई थी। सेशन और हाईकोर्ट से दारा सिंह को फाँसी की सजा सुनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट में यह सजा उम्रकैद में बदली गई। दारा सिंह के पूरे मामले का एक-एक बिंदु बताते हुए हम जल्द ही एक अलग से स्टोरी TFI के दर्शकों के आगे रखेंगे।
ताहिर हुसैन को बेल, दारा सिंह को ही जेल
टी राजा सिंह ने रविंदर पाल उर्फ़ दारा सिंह का मुद्दा ऐसे समय में उठाया है जब आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद और दिल्ली दंगों में कई हिन्दुओं के नरसंहार के गुनहगार ताहिर हुसैन को चुनाव प्रचार के लिए पेरोल मिला था। ताहिर हुसैन जेल से निकल कर दिल्ली के कई हिस्सों में घूमा और अपने लिए वोट माँगे। उसकी जमानत अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट के अहसानुद्दीन अमानुल्लाह नाम के न्यायाधीश ने तो यहाँ तक कह दिया था कि वो कई सालों से घर नहीं गया। पुलिस द्वारा पेश सबूत और गवाह को जस्टिस अमानुल्लाह ने महज आरोप करार दिया था। हालाँकि इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट के ही दूसरे न्यायाधीश पंकज मिथल ने उसी अर्जी को ख़ारिज कर दिया था।
वहीं, 25 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बावजूद दारा सिंह को कभी भी एक मिनट का भी पेरोल नहीं मिल पाया है। जेल में ही रहते हुए एक-एक कर के दारा सिंह के माता-पिता का देहांत हुआ लेकिन उनको मुखाग्नि देने के लिए भी पेरोल नहीं मिला। दोनों दिवंगतों की अस्थियाँ लम्बे समय तक खेतों में दबा कर इस उम्मीद में रखी गई थीं कि दारा सिंह ही आकर उनको गंगा नदी में प्रवाहित करेंगे। लगभग 20 साल के इंतजार के बाद भी ऐसा नहीं हो पाया और ये काम दारा सिंह के छोटे भाई को करना पड़ा।
दारा सिंह की भतीजी का विवाह भी हुआ। इसमें भी तमाम प्रयासों के बावजूद उनको पेरोल नहीं मिला। इसकी तमाम वजहों में प्रशासन द्वारा भी कई बार दारा सिंह के परिवार के प्रति नकारात्मक रुख अपनाना रहा है। दारा सिंह का भतीजा भी विवाह योग्य हो चुका है। उसका कहना है कि वह शादी तब ही करेगा जब उसके चाचा जेल से छूट कर आ जाएँगे। दारा सिंह के घर में आज भी हिन्दू धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा है।
‘हजारों दारा सिंह जेलों में बंद, जो हिन्दू होने के नाते भुलाए गए’
TFI ने इस पूरे मामले में भाजपा MLA टी राजा सिंह से बात की। राजा सिंह ने हमें बताया कि दारा सिंह तो महज हिन्दुओं की दुर्दशा दिखाने के एक प्रतीक मात्र हैं। उन्होंने दावा किया कि वे ऐसे हजारों लोगों को जानते हैं जो समय से अधिक समय तक जेल सिर्फ इसलिए काट रहे हैं क्योंकि वो हिन्दू हैं और उन्हें कानूनी या आर्थिक मदद करने वाला कोई भी नहीं है। अपना खुद का उदाहरण देते हुए राजा सिंह ने बताया कि किसी समय वो महज कुछ हजार रुपए कम पड़ जाने की वजह से महीनों तक मजबूरन जेल काटने पर मजबूर हुए थे।
टी राजा सिंह ने खुल कर कहा कि दारा सिंह अब अनदेखी और अन्याय के शिकार हो रहे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही उनकी रिहाई सुनिश्चित होगी। दारा सिंह के अलावा धर्म के लिए बलिदान देने वाले कारसेवकों सहित कई अन्य लोगों के परिवारों के बारे में भी उन्होंने हिन्दू समाज से सोचने और उनके लिए कुछ करने की अपील की है। इसी के साथ राजा सिंह ने महाकुंभ में योगी सरकार की व्यवस्थाओं की तारीफ करते हुए पुरानी सरकारों पर हिन्दू आस्थाओं के दमन का आरोप लगाया। राजा सिंह ने यह भी आशा जताई कि तेलंगाना में भाजपा सरकार आते ही तुष्टिकरण जैसी बीमारी जड़ से खत्म कर दी जाएगी।