दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए कल (5 फरवरी) वोटिंग होनी है। इस चुनाव में दिल्ली की सत्ता पर कब्जा करने की कोशिश कर रही बीजेपी और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) के बीच तगड़ा मुकाबला देखने को मिला है। पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली में बीजेपी ने सातों सीटें जीती थीं और बीजेपी 25 साल बाद दिल्ली विधानसभा में वापसी की राह तलाश रही है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या बीजेपी अपने चुनावी प्रबंधन के दम पर दिल्ली विधानसभा में वापसी कर पाएगी या मुफ्त की रेवड़ी की राजनीति से केजरीवाल एक बार फिर मतदाताओं पर जादू चलाने में कामयाब हो पाएंगे?
मुफ्त की रेवड़ियां के भरोसे पार्टियां
दिल्ली विधानसभा चुनाव इस बार ‘मेरी रेवड़ी बनाम तेरी रेवड़ी’ के बीच सिमटता दिखाई दे रहा है। आम आदमी पार्टी के द्वारा दी जा रही मुफ्त योजनाओं, जैसे मुफ्त बिजली, पानी ने उसे दिल्ली की सत्ता में बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। दूसरी तरफ, बीजेपी ने इन योजनाओं को नए वादों के साथ जारी रखने का आश्वासन दिया है। साथ ही, कांग्रेस ने भी मुफ्त की रेवडियां बांटने का वादा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। दिल्ली की महिलाओं को हर महीने पैसे देने से लेकर इन पार्टियों ने तमाम चीज़ों के वादे किए हैं। यहां तक कि बीजेपी के बड़े-बड़े नेता भी दिल्ली में चल रहीं मुफ्त की योजनाओं को जारी करने का आश्वासन दिया है।
AAP-कांग्रेस की लड़ाई से दिल्ली जीतेगी BJP!
इस चुनाव में बीजेपी की अपनी मजबूत तैयारी के साथ-साथ यह भी कोशिश रही है कि दिल्ली का चुनाव त्रिकोणीय हो। चुनाव प्रचार की शुरुआत में धीमी चाल से चल रही कांग्रेस ने चुनाव प्रचार का अंत आते-आते अपनी ताकत झोंक दी थी। राहुल गांधी भी केजरीवाल पर सीधे-सीधे हमला करते नज़र आए। ऐसे शायद कम ही चुनाव हों जिनमें बीजेपी यह उम्मीद करे कि कांग्रेस पूरी ताकत से लड़े और उसे वोट मिलें। क्योंकि बीजेपी की सीधी कैलकुलेशन कहती है कि अगर कांग्रेस 2013 की तरह 20 प्रतिशत से ज्यादा वोट पाने में सफल रही तो फिर आम आदमी पार्टी को सत्ता से हटाया जा सकता है।
दिल्ली में बीजेपी का बढ़ता वोट प्रतिशत
दिल्ली में पिछले कुछ चुनावों में सीटों की संख्या के मामले में बेशक बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर ना रहा हो लेकिन उसका वोट बैंक कमोबेश बढ़ा ही है। हालांकि, इस बीच कांग्रेस और बीएसपी जैसी पार्टियों का पूरा वोट आम आदमी पार्टी में शिफ्ट हो गया, इससे बीजेपी और ‘आप’ के बीच अंतर इतना बढ़ गया कि पिछले चुनाव में बीजेपी करीब चालीस प्रतिशत वोट लाने के बाद भी सिर्फ 8 सीट ही जीत सकी थी। 2013 में कांग्रेस को 24.6 प्रतिशत वोट और आठ सीट मिली थीं जबकि बीजेपी को 33 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 32 सीटें मिली थीं। वहीं, आम आदमी पार्टी को 29.5 प्रतिशत वोट के साथ 28 सीटें मिली थीं। इन चुनावों में मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को भी करीब 5% वोट मिला था।
2015 के चुनाव में कांग्रेस और बसपा का वोट भी आम आदमी पार्टी में शिफ्ट हो गया और आप सीधा 20 प्रतिशत वोटों की छलाँग लगा कर 54.5 प्रतिशत के आंकड़े तक पहुँच गई। नतीजा ये रहा कि उसे 70 में 67 सीटें हासिल हुईं, हालांकि गौर करने लायक़ बात ये है कि बीजेपी का वोट बैंक तब भी 32.3 प्रतिशत ही रहा। इस चुनाव में कांग्रेस के वोटों में 14 प्रतिशत की कमी आई यानी कांग्रेस पार्टी 23 से 9.7 प्रतिशत तक पहुंच गई। ज़ाहिर है ये 14 प्रतिशत और बीएसपी के 5 प्रतिशत वोट भी आम आदमी पार्टी के खाते में ही जुड़े थे।
2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 1 या 2 नहीं बल्कि 6.21 प्रतिशत वोट बढ़ाने में कामयाब रही और इन चुनावों में पार्टी को करीब 38.5 प्रतिशत वोट मिले थे। हालांकि, इन चुनावों में भी बीजेपी को निराशा ही हाथ लगी और उसके खाते में सिर्फ 8 सीटें आईं। इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि ‘आप’ ने कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा दी थी। कांग्रेस का वोट शेयर 9 प्रतिशत से और घटकर 4 प्रतिशत तक पहुंच गया था। इन चुनावों में कांग्रेस का वोट शेयर 5.44 प्रतिशत गिरा और ‘आप’ की चुनावी जीत पर ज़्यादा फर्क नहीं पड़ा था।
दिल्ली विधानसभा चुनाव और आंकड़ों का खेल
दिल्ली चुनाव में इस बार दो बार की एंटी एन्कंबेंसी और पार्टी नेताओं की भ्रष्टाचार वाली छवि के साथ ‘आप’ मैदान में उतरी है। चुनाव जीतने के लिए इसका कैलकुलेशन थोड़ा अलग है। मौजूदा परिस्थितियों में ‘आप’ के पास 53.57% वोट शेयर के साथ 62 सीटें हैं जबकि बीजेपी के पास 38.51% वोट शेयर हैं और 8 सीटें हैं। वहीं, कांग्रेस के पास 4.26 प्रतिशत वोट हैं लेकिन पार्टी की एक भी सीट नहीं है। दिल्ली में लोअर मिडिल और मिडिल क्लास का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि केजरीवाल की पूरी राजनीति फ्री बी यानी मुफ्त की रेवड़ियों के इर्द गिर्द ही रही और पीने के पानी, प्रदूषण, साफ़ सफ़ाई या दूसरे बुनियादी मुद्दों को लेकर कुछ ख़ास नहीं किया गया है।
पिछले दिनों केंद्रीय बजट में मिडिल क्लास को दी गई टैक्स में बंपर छूट का असर भी दिल्ली के चुनावों पर पड़ना तय है। बीजेपी की सबसे ज़्यादा उम्मीद मिडिल क्लास से हैं और बीजेपी को सबसे ज्यादा उम्मीद इसी क्लास से है। अगर बीजेपी यहां से 5% प्रतिशत वोट और बढ़ाने में कामयाब होती है तो उसके पास करीब 44 प्रतिशत वोट होंगे। इसके अलावा अगर बीजेपी मुफ्त बिजली-पानी, नक़द सम्मान राशि जैसी योजनाओं से महिलाओं के भी कुछ वोट खींच लाती है और ये आंकड़ा 45 प्रतिशत तक भी पहुंच सकता है। इन चुनावों में केजरीवाल को झुग्गी झोपड़ियों के वोटरों की तरफ से भी बड़ा झटका लग सकता है। ऐसे में अगर बीजेपी 5 से 6 प्रतिशत वोट ज्यादा लाती है और केजरीवाल के वोट इतने ही घट जाते हैं, तो बीजेपी के पास होंगे 44-45 प्रतिशत वोट और आम आदमी पार्टी के पास 46-47 प्रतिशत वोट लेकिन यहीं पर कांग्रेस का रोल आता है।
बीजेपी के चुनाव जीतने का फॉर्मूला क्या है?
कांग्रेस इस समय में मुस्लिम मतदाताओं के बीच सकारात्मक छवि के चलते अपने वोट बैंक में बढ़ोतरी करने की स्थिति में नज़र आ रही है। दिल्ली में करीब 13 फीसदी मुस्लिम मतदाता है और 22 सीटों पर मुस्लिम मतदाता प्रभावी हैं। इसमें भी 5 से 8 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम मतदाता ही हार जीत का फैसला तय करते हैं। सीलमपुर, मुस्तफाबाद, मटिया महल, बल्लीमारान और ओखला जैसी सीटों से मुस्लिम उम्मीदवार ही चुनाव जीतते रहे हैं। और पिछले दो चुनावों में मुस्लिम मतदाता पूरी तरह से आम आदमी पार्टी के साथ रहे हैं और कांग्रेस की ज़्यादातर मुस्लिम बहुल सीटों में ज़मानत तक नहीं बची थी।
मुस्लिम वोटरों को लेकर सामान्य धारणा ये है कि वो बीजेपी को हराने के लिए वोटिंग करते हैं। दिल्ली में ‘आप’ की नज़रों में कांग्रेस न तीन में है न तेरह में, ऐसे में आम आदमी पार्टी का कैलकुलेशन यह है कि मुस्लिम वोटर मजबूरी में ‘आप’ को ही वोट करेंगे। शायद यही वजह रही है कि केजरीवाल इस बार मुस्लिम बहुल सीटों पर प्रचार के लिए भी नहीं पहुंचे है जिससे बीजेपी को ध्रुवीकरण का मौका ना मिले। ग्राउंड रिपोर्ट्स की मानें तो इस बार मुस्लिम वोटर्स ‘आप’ और कांग्रेस को लेकर असमंजस में हैं।साथ ही, ओखला और मटियामहल जैसी सीट पर असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM भी मैदान में है। ऐसे में अगर यहां थोड़ा भी वोट बंटा, तो बीजेपी का चुनाव जीतना काफी आसान हो सकता है।
‘आप’ को टक्कर देने के लिए बीजेपी के पास मौजूद दो मजबूत विकल्पों में पहला तो ये कि कांग्रेस कम से कम 10 प्रतिशत वोट हासिल करे और दूसरा ये कि बीजेपी अपने दम पर 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट लाए यानी क़रीब 10-11 प्रतिशत ज्यादा वैसे बीजेपी के लिए ये आंकड़ा असंभव तो बिल्कुल नहीं है। क्योंकि अगर लोकसभा चुनावों के आंकड़ों से इसकी तुलना करें तो पता चलता है कि कुछ महीने पहले हुए आम चुनावों में बीजेपी को करीब 54.35 प्रतिशत वोट मिले थे और ये वो लोग हैं जो बीजेपी के वोटर तो रहे ही हैं। बस विधानसभा और लोकसभा को लेकर उनकी प्राथमिकताएं बदलती रही हैं और अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी के लिए दिल्ली फ़तह का सपना साकार हो सकता है।