तथाकथित मुख्यधारा यानी प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अधिकांश संस्थानों पर कितना भरोसा बचा है ये हिमंता बिस्वा सरमा के एक्स पोस्ट से पता चलता है। थोड़े समय पहले तक ऐसे मामलों को जनता के सामने लाने के लिए प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की जाती थी। हिमंता बिस्वा सरमा ने एक लम्बा एक्स पोस्ट किया है। उन्होंने लिखा कि एक IFS अफसर से सिंगापुर में बातचीत के दौरान उन्हें पता चला कि भारतीय विदेश सेवा में काम करने वाले लोग भारत सरकार से पूर्वानुमति लिए बिना किसी विदेशी से विवाह नही कर सकते। अगर अनुमति मिल भी गयी तो जिससे विवाह किया है उसे छह महीने के अन्दर भारतीय नागरिकता लेनी होगी। जो कार्यपालिका पर लागू है, वो नियम विधायिका पर आश्चर्यजनक रूप से लागू ही नहीं होता। उन्होंने आगे जोड़ा कि कानून बनाने वालों का विदेशी नागरिक से विवाह करना और उसमें भी जिससे विवाह किया है, वो 12 वर्ष तक भी भारत की नागरिकता न ले, ये तो उचित नहीं। इस पूरी पोस्ट में किसी का नाम नहीं लिया गया था, लेकिन स्पष्ट ही था कि कांग्रेसी सांसद गौरव गोगोई की बात की जा रही है। गौरव गोगोई ने 2013 में एलिजाबेथ कोलबर्न से शादी की थी। शादी के बारह वर्ष बाद भी एलिजाबेथ कोलबर्न ब्रिटिश पासपोर्ट का ही प्रयोग कर रही है।
गौरव गोगोई की पत्नी के ISI से संबंध?
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के आरोप यहीं समाप्त नहीं होते। यहाँ से केवल शुरुआत हुई थी। गौरव गोगोई की विदेशी पत्नी एलिजाबेथ के बारे में बताया जाता है कि वो ‘ऑक्सफ़ोर्ड पालिसी मैनेजमेंट’ नाम की संस्था में काम करती हैं और ये संस्था पर्यावरण के मुद्दों पर काम करती है। इसके अलावा वो ‘क्लाइमेट एंड डेवलपमेंट नॉलेज नेटवर्क’ (CDKN) नाम की दिल्ली की एक संस्था में प्रोजेक्ट मैनेजर भी हैं। सोशल मीडिया के जरिये आ रहे आरोपों की तरफ भी हिमंता बिस्वा सरमा इशारा कर चुके हैं। इन आरोपों में बताया जाता है कि एलिजाबेथ के सम्बन्ध ISI (पाकिस्तानी जासूसी संगठन) से अली तौकीर शेख के जरिये हैं। अली तौकीर शेख उसी CDKN के एशिया क्षेत्र के क्षेत्रीय निदेशक हैं जिसमें एलिजाबेथ कोलबर्न प्रोजेक्ट मैनेजर है। अली तौकीर शेख इससे पहले पाकिस्तान के प्लानिंग कमीशन में थे। कहा जाता है कि एलिजाबेथ पाकिस्तान में भी अली तौकीर के साथ काम कर चुकी है और एलिजाबेथ के पीएचडी गाइड भी वही थे। हिमंता बिस्वा सरमा ने सांसद पर युवाओं को पाकिस्तानी दूतावास ले जाने और युवाओं का ब्रेनवाश करने के आरोप भी लगाए हैं।
BSF के खिलाफ गोगोई ने लिखे लेख!
आरोपों की झड़ी इतने पर ही नहीं रुकी है। असम के मुख्यमंत्री का आरोप है कि पाकिस्तानी राजदूत मुहम्मद अब्दुल बासित (जिनका कार्यकाल 2014 से 2017 के बीच था), से मिलने के बाद सांसद ने सदन में ऐसे सवाल उठाये जिनके उत्तर से देश की नाभिकीय शक्ति और परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों के बारे में गोपनीय जानकारी सार्वजनिक होने की संभावना थी। उन्होंने कहा है कि प्रश्नों की संवेदनशीलता को देखते हुए जिस समय ये पूछे गए, वो समय भी महत्वपूर्ण हो जाता है। उन्होंने ये भी जोड़ा कि जबसे भारत ने अब्दुल बासित के काम-काज पर संदेह व्यक्त किया तभी से आश्चर्यजनक रूप से सांसद गोगोई की रक्षा और परमाणु ऊर्जा सम्बन्धी जिज्ञासा भी कम हो गयी, ये भी देखने लायक है। अपने लेखों में सांसद गोगोई बीएसएफ द्वारा कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात करते दिखाई देते हैं। ये लेख भी लगभग उसी समय प्रकाशित हुआ था जब सांसद गोगोई युवाओं को पाकिस्तानी दूतावास घुमाने ले गए थे। हिमंता बिस्वा सरमा ने सवाल किया कि क्या ये पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा को सही साबित करने की कोशिश नहीं है? इस मुद्दे को असम के मुख्यमंत्री विधानसभा में भी उठाने की योजना बना रहे हैं, यानी मामला सिर्फ एक्स पोस्ट पर रुकने वाला भी नहीं।
पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा थे गोगोई के लेख?
सांसद गौरव गोगोई ने एक लेख पोस्ट कर रखा है, जिसे देखना इस पूरे सन्दर्भ में महत्वपूर्ण हो जाता है। ये लेख भारत-बांग्लादेश की सीमाओं और बीएसएफ के बारे में है। लेख के शुरुआत में ही लेखक स्वयं ये आंकड़े देते हैं कि 2002-03 के दौर में ही 4000 किलोमीटर की इस सीमा से 500 मिलियन डॉलर का अवैध व्यापार चलता है। इसके बाद आगे बढ़ते ही गौरव गोगोई सारा आरोप बीएसएफ पर मढ़ना शुरू करते हैं। गौरव गोगोई मानवाधिकारों के हनन के मामले गिनवाने शुरू करते हैं और हर मामले में बीएसएफ ही कैसे दोषी है और घुसपैठियों के सारे मानवाधिकार होते हैं, ये बताना शुरू करते हैं। जनवरी 2011 में फेलानी खातून नाम की एक अवैध घुसपैठ की कोशिश में मारी गयी लड़की की तस्वीरें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उछाल कर भारत को दोषी घोषित करने की कोशिशें हुई थी। गौरव गोगोई भी इस घटना का जिक्र करने से नहीं चूकते। पूरा लेख ही आगे पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा बन जाता है। यहाँ से समझ में आता है कि हिमंता बिस्वा सरमा के आरोप पूरी तरह बेबुनियाद तो नहीं ही हैं।
भारत ने हाल के वर्षों में, मोदी जी के कार्यकाल में, कई बेकार हो चुके फिरंगी दौर के कानूनों को समाप्त किया है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हम लोग 1961 के दौर के गुट-निरपेक्ष आन्दोलन वाले दौर से बहुत आगे निकल चुके हैं। ऐसे में जिन कानूनों से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और विदेशियों को भारत से छेड़-छाड़ करने की छूट मिलती हो, उनमें भी बदलाव की जरुरत है। उत्तर पूर्वी और अन्य सीमा पर के राज्यों पर असर डालने वाले कानूनों को भी हमें फिर से जांचना ही होगा। ऐसे में सांसद गौरव गोगोई पर आरोपों से जो बात शुरू हुई है, उसके भी लम्बे खींचने की संभावना तो बनती ही है।