तीर्थराज कहे जाने वाले प्रयागराज में चल रहा महाकुंभ अब अपने समापन की तरफ बढ़ रहा है। बदनाम करने की तमाम वामपंथी साजिशों के बावजूद इस महापर्व से दुंनिया भर में हिन्दुओ की एकजुटता और समरसता का संदेश गया है। इस महाकुंभ में 29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या के पर्व पर एक हादसा हुआ था जिसे कुछ लोगों ने भगदड़ का भी नाम दिया है। आधिकारिक आंकड़ों में मृतकों की तादाद 30 बताई गई है। हालाँकि इस आधिकारिक आँकड़े के इतर जा कर सपा सांसद अवधेश प्रसाद जैसे नेता मृतकों की तादाद हजारों में बता कर नकारत्मक माहौल बनाते रहे। धर्मकार्य में भी डर फैलाने की इस साजिश में कई छपरी कहे जाने वाले सुपारी पत्रकार भी शामिल रहे।
कौन है वायरल हुई बच्ची को बचाने वाला अधिकारी
TFI की टीम ने महाकुंभ से जुड़ी अपनी पिछली ग्राउंड रिपोर्ट में बताया था कि कैसे बेहद कम समय के लिए बिगड़े हालातों को सुरक्षा बलों ने बेहद तत्परता दिखते हुए संभाल लिया था। इसी सक्रियता के चलते बड़ी जनहानि टल गई। फ़ौरन ही भीड़ को काबू करने में उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ घटनास्थल संगम नोज पर तैनात रैपिड एक्शन फ़ोर्स (RAF) का योगदान बेहद अहम रहा। इस आपाधापी के काबू होने के बाद कई फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए। इनमें RAF के एक स्टाफ द्वारा छोटी सी बच्ची को गोद में उठा कर भीड़ से बचा कर दूर ले जाने वाली तस्वीर सबसे अहम रही।
महाकुंभ में हुए हादसे की वायरल तस्वीर में एक बच्ची जोर-जोर से रो रही है। रैपिड एक्शन फ़ोर्स का वह स्टाफ बच्ची को अपनी गोद में ले कर भीड़ से दूर ले जाता दिखाई दे रहा है। पीछे काफी भीड़ दिख रही है। सोशल मीडिया पर यह चित्र देख कर भावुक हुए लोगो ने RAF कर्मी को देवदूत, मसीहा, वर्दी वाला रक्षक जैसी कई संज्ञाएँ दे डाली हैं। TFI ने इस वायरल वर्दी वाले की पड़ताल की तो उनकी पहचान मयंक तिवारी के तौर पर हुई। मयंक तिवारी वर्तमान समय में RAF की 91वीं बटालियन में 2 IC (द्वितीय कमान अधिकारी) के पद पर हैं। उनकी मूल तैनाती लखनऊ मुख्यालय में है जो फिलहाल के तौर पर अपनी बटालियन के साथ महाकुंभ में तैनात हैं।
RAF की 91वीं बटालियन का अस्थाई तौर पर बेस कैम्प फिलहाल के तौर पर महाकुंभ के परेड ग्राउंड में बना हुआ है। तीव्र चौकस माने जाने वाले इस बल को तैनाती महाकुंभ के सबसे संवेदनशील स्थांनों पर दी गई है। इसी के साथ यह बल उन स्थानों पर लगातार मूवमेंट भी करता है जहाँ पर स्थितियाँ गंभीर हो जाती हैं। जब हमने मयंक तिवारी से घटना के बारे में बात करनी चाही तो उन्होंने नियमों का हवाला देते हुए इंकार कर दिया। हालाँकि उनका व्यवहार काफी मिलनसार और निजी तौर पर काफी सहयोगात्मक था।
सक्रियता ने टाला बड़े नुकसान को
TFI द्वारा अपने सूत्रों से जुटाई गई जानकरी से पता चला कि 29 जनवरी को संगम नोज की तरफ भीड़ का दबाव तेजी से बढ़ा। रास्ते के तमाम स्थानों पर पुलिस ने माइक से उनको आगे न जाने और नजदीकी घाटों पर ही स्नान करने की हिदायत दी। कुछ जगहों पर बैरिकेड भी तोड़ दिए गए जिस से भीड़ अलग-अलग दिशाओं में बिखर गई थी। इसी दौरान जमीन में सो रहे कुछ लोग कुचल गए। ऐसे में संगम नोज पर मौजूद बल की मदद के लिए रैपिड एक्शन फ़ोर्स बेहद कम समय में पहुँची। इस बल का नेतृत्व द्वितीय कमान अधिकारी मयंक तिवारी कर रहे थे।
आगे हुई दुर्घटना से बेखबर पीछे से आ रहा जनसैलाब संगम नोज तक पहुँचने की जद्दोजहद कर रहा था। ऐसे में उनको रोकना बेहद जरूरी था जिस से ज्यादा जनहानि न होने पाए। भीड़ की संख्या करोड़ों में थी जबकि उनको संभालने के लिए सुरक्षा बल मुट्ठी एक सीमित संख्या में। इसके बावजूद RAF और ने वहाँ मौजूद UP पुलिस के साथ बेहद कम समय में योजना को अमली जामा पहनाया। जवानों ने खुद को भीड़ के आगे कर दिया जिस से पीछे अन्य कई लोग कुचलने से बच गए। इसी के साथ पूरे कुंभ क्षेत्र के सुरक्षा बल सक्रिय हुए और एक ही तरफ बढ़ रही भीड़ को अलग-अलग घाटों की तरफ डायवर्ट कर दिया गया।
सुरक्षा बलों के सामूहिक प्रयासों से ही भीड़ का दबाव संगम नोज से कम हुआ और बहुत बड़ी घटना का दायरा सीमित हुआ। इसके बाद मयंक तिवारी ने टीम के साथ घायलों को संभालना शुरू किया। उनको जल्द अस्पताल पहुँचाने के लिए इन्ही सुरक्षा बलों ने एम्बुलेंस के लिए रास्ता बनवाया। कई लोगों को समय रहते एम्बुलेंस तक पहुँचाया गया जिस से उनकी जान बच पाई। घटना के चश्मदीद कृष्ण प्रताप सिंह TFI को बताते हैं कि RAF की वह टीम जैसे साक्षात भगवान् ने भेजी रही हो। कृष्ण प्रताप का कहना है कि सुरक्षा बल महिलाओं, वृद्धों और बच्चो को अपनी पहली प्राथमिकता के तौर पर ले रहे थे।
BSF जवान की बेटी है वायरल बच्ची
सोशल मीडिया की वायरल तस्वीर में जो बच्ची मयंक तिवारी की गोद में दिख रही है TFI ने उसकी ही पड़ताल की। हमारी पड़ताल में पता चला कि वह बच्ची सीमा सुरक्षा बल (BSF) के एक कांस्टेबल की बेटी थी। बच्ची अपने माता-पिता के साथ संगम में स्नान करने आई थी। यहीं पर वह भीड़ में अभिभावकों के साथ फँस गई थी। बच्ची का पिता भीड़ से निकलने की जद्दोजहद में लगा था पर भारी दबाव में वह असफल हो रहा था। लड़की की माँ की चीखें सुन कर मयंक तिवारी भीड़ के अंदर गए। उन्होंने हाथ से छूट चुकी बच्ची को जैसे-तैसे बाहर निकाला।
इस बीच भीड़ बच्ची के माता-पिता को घसीटते हुए और आगे बढ़ गई। माँ-बाप से अलग हो चुकी बच्ची की चीखों से द्रवित हो कर और लोगों की रक्षा को ही अपना कर्तव्य मान कर मयंक तिवारी ने बच्ची को सुरक्षित स्थान पर बिठाया और फिर से उस भीड़ में अपने कुछ हमराहों के साथ घुसे। उन्होंने बारी-बारी से बच्ची के माता और पिता को भी बाहर निकाल लिया। उन्हें आई चोटों का इलाज करवाया गया और बाद में तीनों को उनके गंतव्य की तरफ सुरक्षित भेज दिया गया। बचाए गए परिवार के BSF में होने की जानकारी RAF कर्मियों को बाद में हुई।
अमूमन सुरक्षा बलों के विषय में एक आम धारणा बनाई गई है कि उनके अधिकारी ज्यादातर अधीनस्थों को आदेश दे कर हालातों को उन पर ही डाल देते हैं। इस मिथक को भी मयंक तिवारी ने गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन तट पर तोडा। उन्होंने आगे बढ़ कर अपने समूह के नेतृत्व एक कुशल सेनापति के तौर पर किया। उनके द्वारा ही भरे गए जोश से बाकी जवानों ने अतिरिक्त उत्साह दिखाया और हालात सामान्य होने तक भूखे-प्यासे मौके पर डटे रहे। भीड़ का दबाव RAF और पुलिसकर्मियों पर भी बाकी लोगों की तरह पड़ रहा था लेकिन उनको मिला विशेष प्रशिक्षण और लोगों की सेवा की भावना उस दिन जनहित में बहुत काम आई।
पिता से मिले हैं देश पर मर मिटने के संस्कार
हमने मयंक तिवारी के निजी जीवन की भी पड़ताल की। मयंक की माता सरकारी स्कूल में शिक्षिका थीं जबकि उनके पिता भारतीय सेना में रह कर देश की सेवा कर चुके हैं। मयंक तिवारी की शुरुआती शिक्षा लखीमपुर खीरी में हुई थी। बाद में उनका परिवार लखनऊ में आ कर बस गया। फौजी पिता से मिले देश सेवा के संस्कार और टीचर माँ से मिला पढ़ाई का माहौल। इन दोनों को साथ ले कर चलने वाले मयंक तिवारी CRPF में अधिकरी बने। वो पूरे में कश्मीर जैसे आतंकवाद प्रभावित और बिहार के नक्सल से जूझते इलाकों में रह कर राष्ट्र की सेवा और देश के शत्रुओ का प्रतिकार कर चुके हैं।
मयंक तिवारी की पूर्व की तैनाती वाले स्थानों में आम जनमानस आज ही उनको याद करता है। उन्होंने अपने मृदु व्यवहार से आम लोगों और सुरक्षा बलों के बीच की दूरी को काफी कम किया। हालाँकि असामाजिक तत्वों और राष्ट्र विरोधी ताकतों में उनका खौफ भी बरकरार रहा। यह ठीक श्रीमदभागवत गीता के ‘परित्राणाय साधूना, विनाशय च दुष्कृताम’ के सिद्धांतों का पालन करने जैसा है। अपने अधीनस्थों के प्रति व्यवहार में भी मयंक की नजीर दी जाती है। फिलहाल वह वसंत पंचमी के स्नान के बाद लखनऊ हेडऑफिस शिफ्ट हो चुके है।