भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है। क्यों कहा जाता है, यह बताने की जरूरत नहीं है। देश में मंदिरों की संख्या को लेकर कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं है। फिर भी यह संख्या 7 लाख के आसपास बताई जाती है। भारत के लगभग सभी गांवों में कोई न कोई मंदिर अवश्य होगा। हर मंदिर से जुड़ी एक अलग मान्यता भी होती है। मध्य प्रदेश के आगर-मालवा जिले के नलखेड़ा में स्थित मां बगलामुखी का प्राचीन मंदिर तांत्रिकों के लिए सिद्ध स्थान माना जाता है। इसके अतिरिक्त चुनाव जीतने के लिए नेता यहां यज्ञ व अन्य अनुष्ठान भी कराते हैं।
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मां बगलामुखी का यह मंदिर आगर-मालवा जिले के नलखेड़ा शहर में स्थित है। लखुंदर नदी (प्राचीन नाम लक्ष्मणा) के किराने स्थित मंदिर में विराजित मां बगुला की प्रतिमा को स्वयंभू अर्थात स्वयं से प्रकट हुई मूर्ति माना जाता है। मां बगलामुखी के भारत-नेपाल समेत दुनियाभर में कई मंदिर हैं। लेकिन भारत में स्थिति 3 मंदिरों को सबसे प्राचीन माना जाता है। इनमें से एक कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश), दूसरा मध्य प्रदेश के दतिया और तीसरा मध्य प्रदेश का नलखेड़ा में स्थित है। इनमें से नलखेड़ा के मंदिर को ही प्रमुख और सिद्ध मंदिर माना जाता है।
मंदिर का इतिहास:
यूं तो मंदिर से जुड़ा कोई वैदिक या पौराणिक इतिहास नहीं है। लेकिन तंत्र विद्या पर आधारित पुस्तक प्राण तोषिणी में मां बगलामुखी के प्रकट होने के विषय में बताया गया है। पुस्तक में कहा गया है कि सतयुग में एक भीषण तूफान आया था। यह तूफान सब कुछ नष्ट करता जा रहा था। तूफान में पूरी दुनिया का विनाश करने की क्षमता थी। ऐसे में इस तूफान को रोकने के लिए सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु ने सौराष्ट्र के हरिद्रा सरोवर के तट पर (वर्तमान में गुजरात के जूनागढ़ जिले में सोनार नदी के किनारे) तपस्या की। उनकी इस तपस्या के पश्चात मां बगलामुखी प्रकट हुईं और उस विनाशकारी तूफान को रोककर पूरी दुनिया की रक्षा की।
मां बगलामुखी के वर्तमान मंदिर के विषय में यहां के मुख्य पुजारी कैलाश नारायण कहते हैं कि इस सिद्ध मंदिर की स्थापना भगवान श्री कृष्ण के कहने पर पांडवों ने की थी। उन्होने आगे कहा कि पांडवों में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए इस मंदिर की स्थापना कर मां बगलामुखी की आराधना की थी। इसके बाद से ही विजयश्री हासिल करने के लिए यहां यज्ञ-अनुष्ठान किए जाने लगे।
इस प्राचीनतम मंदिर में मंदिर में मां बगलामुखी त्रिशक्ति माता के रूप में विराजमान हैं। त्रिशक्ति माता अर्थात एक साथ तीन माताएं- मध्य में मां बगलामुखी, दाएं भाग में मां लक्ष्मी और बाएं भाग में मां सरस्वती विराजित हैं। इस मंदिर में मां बगलामुखी के अतिरिक्त दक्षिणमुखी हनुमान, भगवान श्रीकृष्ण और काल भैरव के मंदिर भी हैं। मंदिर के सामने ही एक दिव्य दीपमालिका है। इस दीपमालिका की स्थापना राजा विक्रमादित्य ने कराई थी।
तंत्र साधना का केंद्र:
मां बगलामुखी के इस मंदिर को लेकर यह मान्यता है कि श्रद्धा पूर्वक आने भक्तों की सभी मन्नतें यहां पूरी होती हैं। इसके अलावा मंदिर और आसपास का स्थान मंत्र साधना में लगे साधुओं के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इतना ही नहीं, नदी के किनारे होने और चारों ओर साधु-संन्यासियों श्मशान होने से यह स्थान तंत्र साधना के लिए भी उपयुक्त माना जाता है। इसलिए नवरात्र, अमावस्या, दीपावली व विशेष मुहूर्तों पर यहां तांत्रिकों का जमावड़ा देखने को मिलता है। आम दिनों में भी यहां यज्ञ इत्यादि अनुष्ठान चलते रहेते हैं। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां होने वाले हवन में मिर्ची का प्रयोग किया जाता है। यह हवन सभी प्रकार के कष्टों व शत्रुओं के नाश के लिए किया जाता है।
चुनावों में जीत के लिए नेता कराते हैं अनुष्ठान:
इस मंदिर से जुड़ी एक खास बात यह भी है कि चुनाव में जीत हासिल करने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से नेता यहां आते हैं और गुप्त अनुष्ठान कराते हैं। मंदिर में आने के बाद कई नेता मां बगलामुखी के आशीर्वाद से चुनाव में जीत हासिल करके बड़े पदों को हासिल कर चुके हैं। देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव ही नहीं बल्कि पंचायत चुनाव में भी यहां नेता आते हैं। यानी का चुनावी बिगुल बजते ही यहां नेताओं की भीड़ देखने को मिलने लगती है।
कैसे पहुंचे मां बगलामुखी के मंदिर:
मां बगलामुखी का यह प्रसिद्ध मंदिर वर्ष के 12 महीनों खुला रहता है। ऐसे में किसी भी मौसम में यहां आकर दर्शन किया जा सकता है। यह मंदिर मध्य प्रदेश का मिनी मुंबई कहे जाने वाले इंदौर से 157 किमी दूर है। वहीं, राजधानी भोपाल से 178 किमी दूर है। इंदौर या भोपाल पहुंचने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से रेल, सड़क या हवाई मार्ग से यात्रा कर सकते हैं। इसके बाद सड़क मार्ग से आसानी से नलखेड़ा पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा नलखेड़ा का नजदीकी रेलवे स्टेशन उज्जैन है, ऐसे में रेल मार्ग और फिर सड़क मार्ग से भी मां बगलामुखी के मंदिर पहुंचा जा सकता है।