लालू यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल को अक्सर “जंगल राज” के नाम से याद किया जाता है, जब बिहार में कानून-व्यवस्था लगभग खत्म हो चुकी थी। अपहरण, हत्या और जातीय हिंसा जैसी घटनाएं इतनी आम थीं कि लोगों ने इसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा मान लिया था। प्रशासन की स्थिति इतनी कमजोर थी कि अपराधियों का हौसला चरम पर था, और जनता असहाय महसूस कर रही थी। इस दौरान बिहार ने कुछ सबसे भयानक नरसंहार देखे, जैसे बारा नरसंहार, जिसने न केवल राज्य बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इन घटनाओं ने बिहार को अपराध और जातीय हिंसा का पर्याय बना दिया। विपक्ष ने बार-बार इस “जंगल राज” के खिलाफ आवाज उठाई और लालू यादव के शासन को जिम्मेदार ठहराया, लेकिन हालात जस के तस बने रहे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस “जंगल राज” में लालू यादव के साले साधु यादव और सुभाष यादव का प्रभाव काफी गहरा था। ये दोनों आरजेडी प्रमुख के करीबी माने जाते थे और सत्ता के केंद्र में उनकी सक्रियता को लेकर अक्सर सवाल उठते थे।
हालांकि, हाल के पारिवारिक विवाद ने इस “जंगल राज” के घावों को फिर से कुरेद दिया है। लालू यादव के बेटे तेजप्रताप यादव ने अपने मामा सुभाष यादव को ‘कंस मामा’ कहकर पारिवारिक कलह को सार्वजनिक कर दिया। जिसपर पलटवार करते हुए सुभाष ने भी लालू के जंगलराज का कच्चा चिट्ठा खोलना शुरू कर दिया है. उन्होंने लालू यादव पर आरोप लगते हुए कहा कि उस दौर में मुख्यमंत्री आवास अपराधियों के लिए सुरक्षित अड्डा बन चुका था, जहां बड़े-बड़े सौदे तय किए जाते थे।
लालू यादव करवाते थे डील – सुभाष यादव का खुलासा
90 के दशक का बिहार, जिसे “जंगल राज” के नाम से भी जाना जाता है, अपने आपराधिक माहौल और जातीय हिंसा के लिए कुख्यात था। इस दौर में लालू यादव और राबड़ी देवी की सत्ता के साथ उनके साले, साधु यादव और सुभाष यादव, बिहार की राजनीति और सत्ता का एक अहम चेहरा बन गए थे। इन दोनों को लालू-राबड़ी का सबसे करीबी और भरोसेमंद माना जाता था, लेकिन वक्त के साथ इन रिश्तों में भी खटास आ गई।
हाल ही में सुभाष यादव ने बिहार की “किडनैपिंग इंडस्ट्री” पर चौंकाने वाले खुलासे किए। पटना के वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत प्रत्यूष के यूट्यूब चैनल सिटी पोस्ट लाइव पर दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने दावा किया कि 90 के दशक में बिहार में अपहरण के मामलों में फिरौती की डील खुद लालू यादव के जरिए मुख्यमंत्री आवास में तय की जाती थी।
सुभाष यादव ने बताया कि “अररिया जिले में एक किडनैपिंग केस हुआ था। अपहृत व्यक्ति को सहरसा के काला दियर इलाके में नाव पर बंधक बनाकर रखा गया था। इस मामले में शहाबुद्दीन, प्रेमचंद गुप्ता और खुद लालू यादव के फोन जाते थे। लालू यादव और उनके करीबी इस मामले को निपटाने में सीधे तौर पर शामिल थे।”
सुभाष ने कहा, “हम लोग तो कभी किसी मामले में शामिल ही नहीं थे। यह सब लालू जी के जरिए सीएम हाउस से होता था। उस वक्त मुख्यमंत्री आवास अपराधियों के लिए सुरक्षित जगह बन चुका था।” उन्होंने यह भी बताया कि इस मामले में शामिल मुख्य व्यक्ति की अब मौत हो चुकी है।
सुभाष ने यह आरोप भी लगाया कि लालू यादव के सत्ता काल में सीएम हाउस में ठेके और सौदे तय होते थे। साधु यादव और सुभाष यादव को इस सत्ता के केंद्र में माना जाता था, जहां बड़े पैमाने पर सत्ता का दुरुपयोग होता था।
यह खुलासा उस दौर के “जंगल राज” की भयावह सच्चाई को उजागर करता है। बारा नरसंहार जैसे भीषण घटनाओं ने देश का ध्यान बिहार की ओर खींचा था। विपक्ष ने बार-बार लालू के इस शासनकाल का विरोध किया, लेकिन हालात जस के तस बने रहे।
शोरूम से गाड़ियां उठवाने के आरोप पर सुभाष यादव का बयान
सुभाष यादव ने लालू यादव के शासनकाल में शोरूम से गाड़ियां उठवाने के आरोपों पर चौंकाने वाला खुलासा किया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, “गाड़ी आजाद गांधी ने थोड़े ही उठाई थी। ये सब लालू जी के कहने पर हुआ था। बच्चा राय और आजाद गांधी जैसे लोग उस समय साथ रहते थे। गाड़ियां जबरदस्ती उठाई नहीं गई थीं, बल्कि मंगवाई गई थीं। टाटा मोटर्स से करीब 15-16 गाड़ियां आई थीं, जो शादी-ब्याह के बाद सुबह वापस कर दी गईं।”
अपनी सफाई में सुभाष यादव ने यह भी कहा कि उनके ऊपर लगाए गए आरोप पूरी तरह से झूठे हैं और उन्हें जानबूझकर बदनाम किया गया। उन्होंने बताया, “बिहार में एक माहौल बना दिया गया कि सुभाष यादव चोर है। मेरा नाम खराब कर दिया गया।”
जब उनसे पूछा गया कि आखिर उनका नाम खराब करने वाला कौन था, तो सुभाष यादव ने साफ तौर पर कहा, “घर के लोग। लालू-राबड़ी और कौन?”
इस बयान ने लालू यादव के शासनकाल की हकीकत और सत्ता के भीतर की राजनीति को एक बार फिर उजागर कर दिया है। सुभाष के इस खुलासे से यह साफ होता है कि उस दौर में सत्ता और संसाधनों का किस हद तक दुरुपयोग किया गया था। शादी-ब्याह जैसे निजी कामों के लिए शोरूम से गाड़ियां मंगवाने और फिर सत्ता का संरक्षण मिलने की बातें बताती हैं कि “जंगल राज” का सच कितना गहराई तक फैला हुआ था।