लगभग 21 महीनों से मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जारी जातीय हिंसा के कारण केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा दिया है। हिंसा के कारण मणिपुर के मुख्यमंत्री एवं भाजपा नेता एन बीरेन सिंह लगातार आलोचना का सामना कर रहे थे। इसके बाद केंद्रीय नेतृत्व के कहने पर उन्होंने 9 फरवरी को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद हालात को संभालने के लिए मुख्यमंत्री पद के लिए नए चेहरे की तलाश की जाने लगी, लेकिन बात नहीं बनी। बीरेन मैतेई समुदाय से आते हैं, जबकि कुकी समुदाय के लोग अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। इस कारण से भाजपा राज्य में नया मुख्यमंत्री देने में असफल रही और आखिरकार विधानसभा निलंबित करके वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया है। राष्ट्रपति शासन की घोषणा के बाद पूरे राज्य में सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
इंडीजिनियस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) के नेता गिन्ज़ा वुअलज़ोंग का कहना है कि राष्ट्रपति शासन कुकी समुदाय के लोग खुश हैं। कुकी समुदाय के लोग अब राज्य में मैतेई मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “कुकी-ज़ो अब मैतेई पर भरोसा नहीं करते। इसलिए नए मैतेई मुख्यमंत्री का होना सुकून देने वाला नहीं होगा। राष्ट्रपति शासन कुकी-ज़ो के लिए उम्मीद की किरण जगाएगा और हमारा मानना है कि यह हमारे राजनीतिक समाधान के एक कदम और करीब होगा।”
हालत क्यों खराब हो चले हैं
मणिपुर के हालत क्यों खराब हो चले हैं, इसके पीछे वहाँ का जातीय बँटवारा एक बड़ा कारण है। इसको लेकर मई 2023 में हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें अब तक 250 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। वहीं, हजारों लोग विस्थापित हुए हैं। यह हिंसा मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की माँग के बाद भड़की। दरअसल, मैतई समुदाय की माँग है कि उन्हें जनजाति का दर्जा फिर से बहाल किया जाए। उनकी दलील है कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था और उससे पहले मैतेई को यहाँ जनजाति का दर्जा मिला हुआ था। उनकी जनजातीय स्थिति को बहाल करने के लिए मणिपुर हाई कोर्ट में एक याचिका भी दी हुई है। मैतेई लोगों का तर्क है कि मणिपुर उनके पूर्वजों की जमीन है और यहाँ की परंपरा, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए मैतेई समाज को जनजाति का दर्जा देना ज़रूरी है।
इसके बाद मणिपुर हाई कोर्ट ने मैतेई ट्राइब यूनियन की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से कहा कि मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने पर वह लेकर विचार करे। पिछले 10 सालों से यह माँग लंबित है। इस पर राज्य सरकार अगले 4 हफ्ते में जानकारी दे। इसके बाद राज्य सरकार ने मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की प्रक्रिया में लग गई। इसी बीच कुकी समुदाय के लोगों ने मैतेई समुदाय के लोगों के हमला कर दिया। कुकियों का साथ दिया नागा समुदाय ने। दरअसल, नागा और कुकी एक दूसरे के विरोधी हैं, लेकिन जब बात मैतेई की आती है तो दोनों साथ आ जाते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ। इसका परिणाम ये हुआ कि लगभग 21 महीनों से पूर्वोत्तर राज्य हिंसा आग जल रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने का कहना है कि इस हिंसा में बाहर से आने वाले लोगों का बड़ा हाथ है। उन्होंने कहा कि पड़ोसी देश म्यांमार से अवैध घुसपैठ हो रहा है और वे आकर मणिपुर की पहाड़ियों में बस रहे हैं। इसके कारण राज्य का सामाजिक ताना-बाना खतरे में पड़ रहा है। बीरेन सिंह ने सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट में कहा, “हमारी भूमि और पहचान खतरे में है। एक छोटी आबादी और सीमित संसाधनों के मद्देनजर हम बहुत संवेदनशील हैं। म्यांमार के साथ 398 किलोमीटर लंबी संवेदनशील सीमा होने और वहाँ से मुक्त आवागमन व्यवस्था (एफएमआर) होने के कारण मणिपुर में जनसांख्यिकीय संतुलन बदल रही है। यह कोई अटकलबाजी नहीं है। यह हमारी आँखों के सामने हो रहा है।”
ड्रग माफिया बनाम सरकार
साल 2023 में मुख्यमंत्री रहते हुए बीरेन सिंह ने कहा था कि मणिपुर हिंसा का मैतेई और कुकी के बीच का नहीं है। यह मामला ड्रग माफिया और सरकार के बीच का है। इसमें बाहरी ताक़तों का हाथ है। उन्होंने कहा था कि ड्रग्स के कारोबार और पोस्ता की खेती के कारण कुकी बहुल क्षेत्र चुराचांदपुर, चंदेल और कांगपोकपी में पिछले डेढ़ दशक में कई नए गाँव बसा दिए गए हैं। इन गाँवों में बड़े पैमाने पर अवैध प्रवासी रह रहे थे। ये सभी तस्करी में भी शामिल हैं। दरअसल, पहाड़ी इलाकों में व्यापक पैमाने पर पोस्ता की खेती होती है। इन पहाड़ों पर कुकी और नागा समुदाय के लोग रहते हैं। पोस्ता की खेती के लिए पहाड़ों पर जंगलों को भी बड़े पैमाने पर नष्ट भी किया गया है। इन पोस्ता को म्यांमार के रास्ते थाईलैंड और लाओस तक भेजा जाता है।
यहाँ ये जानना जरूरी है कि मणिपुर की कुल आबादी 30 लाख के आसपास है। इसमें मैतेई समुदाय की संख्या सबसे अधिक तकरीबन 53 प्रतिशत है। वहीं लगभग लगभग 40 प्रतिशत आबादी कुकी और नागा समुदाय की है। यहाँ ये भी जानना जरूरी है कि आबादी अधिक होने के बावजूद मैतेई समुदाय के लोग मणिपुर के सिर्फ 10 प्रतिशत हिस्से पर रहते हैं। वहीं, नागा और कुकी लोगों का मणिपुर की 90 प्रतिशत हिस्से पर है। दरअसल, मणिपुर की बनावट एक क्रिकेट मैदान की तरह है। फील्ड में वाले 10 प्रतिशत हिस्से में मैतेई समुदाय के लोग रहते हैं और 90 प्रतिशत पहाड़ी यानी स्टेडियम के दर्शक दीर्घे में नागा और कुकी रहते हैं।
कुकी समुदाय को क्या है परेशानी
नागा और कुकी को जनजातीय दर्जा प्राप्त है। इस वजह से वे मणिपुर के मैदानी भाग में जमीन खरीद सकते हैं, जबकि मैतेई पहाड़ों पर जमीन नहीं खरीद सकते और ना ही वहाँ बस सकते हैं। इसमें एक बड़ा धार्मिक भी है, जो राजनीतिक बन गई है। मैतेई समुदाय मणिपुर के मूल निवासी हैं, जबकि कुकी ईसाई बन चुके हैं और नागा को बाहर से लाकर मैतेई राजा ने कुकी और मैतेई समाज के बीच में बसाया था। दरअसल, उस समय कुकी बदमाश मैतेई समाज पर हमला करते थे। इसलिए उन हमलों से बचने के लिए दोनों के बीच में नागा समाज को बसा दिया गया था। कुकी एक जनजाति है, जो भारत के मणिपुर और मिजोरम राज्य के दक्षिण पूर्वी भाग में निवास करती है। यह बांग्लादेश और म्यांमार में पाई जाती है। अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर कुकी समुदाय के लोग पूर्वोत्तर के हर राज्य में मौजूद हैं।
अब अगर मैतेई को भी जनजातीय का दर्जा मिल जाता है तो वे मणिपुर में पहाड़ों पर भी जमीन खरीदने या बसने के लिए स्वतंत्र हो जाएँगे। कुकी समुदाय को यही समस्या है। कुकी अपने हिसाब से पहाड़ों को संचालित करते हैं जो ड्रग तस्करी और अवैध बसे गाँवों का अड्डा है। वहीं, मैतेई मुख्यत: हिंदू हैं और भाजपा का समर्थन करते हैं, जबकि कुकी-नागा स्थानीय ईसाई दल या फिर केंद्र में कॉन्ग्रेस को समर्थन देते हैं। राज्य में भाजपा सरकार बनने के बाद नागा-कुकी का मैतेई से विरोध बढ़ गया था। हिंसा का एक बड़ा कारण ये भी है। इस हिंसा में म्यांमार में प्रशिक्षित कई कुकी-नागा आतंकी कुकियों की मदद करने भी आए हैं। इस बात का जिक्र कई मीडिया रिपोर्ट में किया गया है। यही कारण है कि हिंसा के दौरान मुख्यमंत्री के रूप में बीरेन सिंह ने अवैध रूप से मणिपुर में बसे कुकियों के धर-पकड़ का अभियान भी चलाया था।
दरअसल, उत्तर पूर्व भारत म्यांमार के साथ 1,643 किलोमीटर की सीमा साझा करता है। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, म्यांमार के लगभग 52,000 शरणार्थी पूर्वोत्तर राज्यों में बसे हुए हैं। इनमें से 7800 मणिपुर में शरणार्थी हैं। इन्हें शरणार्थी का दर्जा मिला हुआ है। इसके अलावा, म्यांमार और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में अवैध प्रवासी भी मणिपुर में बसे हुए हैं। इनके आँकड़े सरकार का पास नहीं हैं। मैतेई संगठनों का दावा है कि म्यांमार और बांग्लादेश से बड़े पैमाने पर अवैध आप्रवास के कारण उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
यही कारण है कि जब कोर्ट ने मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए राज्य सरकार को कहा तो कुकियों ने हमला करना शुरू कर दिया। उन्हें म्यांमार के कुकियों के अलावा ड्रग्स सिंडिकेट से भी सहयोग मिला। इसके कारण उनके अत्याधुनिक हथियार और विस्फोटक मिले, जिनका इस्तेमाल उन्होंने मणिपुर में हिंसा के दौरान किया। ईसाई कुकी और नागा को कुछ चर्चों की मदद मिली। अगर मैतेई को जनजाति का दर्जा मिल जाता तो 90 प्रतिशत पहाड़ों पर अतिक्रमण और अफीम की खेती में कुकी एवं नागाओं के एकाधिकार को चुनौती मिल जाती। म्यांमार से आने वाले अवैध आप्रवासियों पर भी मैतेई समुदाय निगाह रखता। यही कारण है कि सरकार के चाहने के बावजूद यह हिंसा अभी भी जारी है। यह ईसाई बनाम हिंदू, भाजपा बनाम विपक्ष, सरकार बनाम ड्रग्स माफिया, स्थानीय बनाम अवैध आप्रवासी की लड़ाई है। जनजाति का दर्जा तो बस बहाना है।