दिल्ली चुनाव के नतीजे आए 9 दिन हो चुके हैं, लेकिन अब भी भाजपा में नए मुख्यमंत्री के नाम पर मंथन जारी है। खबरों के मुताबिक, 19 फरवरी को विधायक दल की बैठक बुलाई गई है, जहां अंतिम फैसला लिया जाएगा। इसके बाद, 20 फरवरी को रामलीला मैदान में भव्य शपथ ग्रहण समारोह होगा, जहां नए मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस आयोजन में 12 से 16 हजार लोगों को आमंत्रित करने की तैयारी चल रही है। कार्यक्रम की व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी भाजपा महासचिव विनोद तावड़े और तरुण चुघ को सौंपी गई है।
ये नाम हैं चर्चा में
दिल्ली के नए मुख्यमंत्री को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। भाजपा सूत्रों के मुताबिक, 20 फरवरी को रामलीला मैदान में शपथ ग्रहण समारोह होगा, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री, भाजपा और NDA शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री शामिल होंगे। इसके अलावा, उद्योगपति, फिल्मी सितारे, क्रिकेटर, साधु-संत और विदेशी राजनयिकों के भी मौजूद रहने की संभावना है। हालांकि मुख्यमंत्री के नाम पर अब तक आधिकारिक मुहर नहीं लगी है, लेकिन कुछ नाम चर्चा में बने हुए हैं।
1. प्रवेश वर्मा
मुख्यमंत्री पद की रेस में सबसे आगे माने जा रहे हैं प्रवेश वर्मा, जो पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं। जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाले प्रवेश ने हाल ही में नई दिल्ली सीट से अरविंद केजरीवाल को 4,099 वोटों से हराया था। वे पश्चिमी दिल्ली से दो बार सांसद रह चुके हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव में 5.78 लाख वोटों से जीत दर्ज कर दिल्ली के इतिहास की सबसे बड़ी चुनावी जीत हासिल की थी।
संघ से जुड़े होने के कारण उनकी विचारधारा भाजपा के कोर एजेंडे से मेल खाती है, और अब तक उनका चुनावी रिकॉर्ड भी मजबूत रहा है। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर जाट समुदाय को साधने की कोशिश कर सकती है। इससे हरियाणा में नॉन-जाट मुख्यमंत्री को लेकर बनी नाराजगी दूर करने और किसान आंदोलन से उपजे असंतोष को कम करने में भी मदद मिल सकती है।
2. विजेंद्र गुप्ता
विजेंद्र गुप्ता भाजपा के उन नेताओं में से हैं, जिन्होंने जमीनी राजनीति से लेकर संगठन के शीर्ष पदों तक अपनी मजबूत पकड़ बनाई है। छात्र राजनीति से सफर शुरू करने वाले विजेंद्र तीसरी बार विधायक बने हैं। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के उपाध्यक्ष पद से लेकर नगर निगम में पार्षद और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तक का सफर तय किया है।
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2015 के चुनाव में जब भाजपा को सिर्फ तीन सीटों पर जीत मिली थी, तब विजेंद्र गुप्ता ने रोहिणी सीट बचाकर अपनी सियासी ताकत का लोहा मनवाया था। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष के रूप में भी उनका कार्यकाल प्रभावी रहा है। उनकी संघ से करीबी और वैश्य समुदाय में मजबूत पकड़ भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकती है। अगर पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री बनाती है, तो इससे दिल्ली के कारोबारी वर्ग और संगठन के बीच समन्वय बेहतर होगा।
3. राजकुमार भाटिया
भाजपा के दिल्ली उपाध्यक्ष राजकुमार भाटिया का नाम भी संभावित मुख्यमंत्री उम्मीदवारों में शामिल है। संघ और पार्टी संगठन में उनकी गहरी पकड़ है। विधानसभा चुनाव के दौरान झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों में भाजपा की पहुंच बढ़ाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी।
दिल्ली के निम्न आय वर्ग के मतदाताओं में भाजपा की पकड़ मजबूत करने के लिए पार्टी ऐसे नेता को आगे बढ़ा सकती है, जिसकी छवि गरीबों के हितैषी के रूप में हो। भाटिया का आरएसएस और एबीवीपी से पुराना नाता भी उनके पक्ष में जाता है। भाजपा अगर झुग्गी-झोपड़ी अभियान को आगे बढ़ाने की रणनीति बनाती है, तो उन्हें मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी मिल सकती है।
4. शिखा राय
शिखा राय ग्रेटर कैलाश-1 वार्ड से दूसरी बार निगम पार्षद बनी हैं। इस चुनाव में उन्होंने आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और दिल्ली सरकार के कैबिनेट मंत्री सौरभ भारद्वाज को करीब 3,000 वोटों से हराकर भाजपा के लिए एक बड़ी जीत हासिल की।
पेशे से वकील शिखा राय भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेशाध्यक्ष भी रह चुकी हैं। विपक्षी पार्टियां अक्सर भाजपा और संघ पर महिला नेतृत्व को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाती रही हैं। मौजूदा समय में भाजपा या एनडीए शासित किसी भी राज्य में कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं है।
अगर भाजपा दिल्ली में शिखा राय को मुख्यमंत्री बनाती है, तो यह महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने का बड़ा कदम होगा। इससे भाजपा महिलाओं के बीच अपनी स्वीकार्यता भी बढ़ा सकती है और विपक्षी दलों के आरोपों को भी करारा जवाब मिलेगा।
5. रविंद्र इंद्रराज सिंह
दिल्ली में दलित मुख्यमंत्री बनाने की मांग जोर पकड़ रही है। गृह मंत्री अमित शाह ने चुनाव प्रचार के दौरान अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा था कि उन्होंने दलित मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था, लेकिन इसे पूरा नहीं किया।
ऐसे में पंजाबी दलित समुदाय से आने वाले रविंद्र इंद्रराज सिंह का नाम भी इस दौड़ में शामिल हो सकता है। वह पहली बार विधायक बने हैं, लेकिन उनके समुदाय का दिल्ली और पंजाब की राजनीति में खासा प्रभाव है।
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वर्तमान में देश में कोई दलित मुख्यमंत्री नहीं है। भाजपा ने हाल ही में मध्य प्रदेश में ओबीसी, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में आदिवासी, महाराष्ट्र और राजस्थान में ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाए हैं, लेकिन दलित समुदाय को अब तक यह अवसर नहीं मिला।
भाजपा लंबे समय से दलित समुदाय को अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है, लेकिन इसमें उसे अब तक सीमित सफलता मिली है। लोकसभा चुनावों में दलित मतदाताओं की नाराजगी पार्टी को भारी पड़ी थी। अगर भाजपा इस समीकरण को साधने की रणनीति अपनाती है, तो रविंद्र इंद्रराज सिंह को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी जा सकती है।