फ्रांस की ऐतिहासिक यात्रा के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका(PM Modi US Visit) पहुंचे हैं, जहां उनका वाशिंगटन डीसी में भारतीय समुदाय ने भव्य स्वागत किया। यह दौरा न केवल टैरिफ को लेकर अहम् माना जा रहा है, बल्कि इसे भरता में टेस्ला(Tesla) की एंट्री से भी जोड़ कर देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी खुफिया प्रमुख हिन्दू भारतीय-अमेरिकी तुलसी गबार्ड से मुलाकात कर द्विपक्षीय वार्ताओं की पृष्ठभूमि तैयार की, जिसके बाद वह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ उच्चस्तरीय बैठक करने वाले हैं। यह बैठक भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने टैरिफ को लेकर किये गए ट्रम्प के ऐलान को लेकर बहुत हम मानी जा रही है. मीडया सूत्रों की मानें तो मोदी की इस 36 घंटे की यात्रा में व्यापारिक विवाद, टैरिफ मुद्दे और दोनों देशों के सहयोग के नए आयामों पर चर्चा होने की संभावना है, जिससे भारत-अमेरिका संबंधों को नई गति और दिशा मिलेगी।
जानें, क्या है रेसिप्रोकल टैरिफ
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने टैरिफ निर्णयों से वैश्विक व्यापारिक समीकरणों को हिला दिया है। 25 नवंबर को फ्लोरिडा के मार-ए-लागो में उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव जीतने के कुछ ही दिनों बाद यह संकेत दे दिया था कि वह शपथ लेने के तुरंत बाद कनाडा और मेक्सिको पर 25% और चीन पर 10% टैरिफ लगाएंगे। इस घोषणा का असर इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर तुरंत दिखाई दिया। जनवरी में राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद उन्होंने अपनी इस घोषणा को कार्यान्वित किया। हालांकि, कनाडा और मेक्सिको पर टैरिफ को अस्थायी रूप से स्थगित किया गया, लेकिन चीन पर यह फरवरी में ही लागू हो गया।
रेसिप्रोकल टैरिफ: ट्रंप की नई रणनीति
अपने प्रशासन के दौरान ट्रंप ने टैरिफ को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया, जिससे व्यापारिक समझौतों को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश की गई। भारत, ब्राजील और यूरोपीय संघ जैसे देश भी इस टैरिफ रणनीति का सामना कर रहे हैं। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति के आर्थिक सलाहकार केविन हैसेट ने भारत के आयात शुल्क पर टिप्पणी करते हुए इसे अमेरिका के लिए परेशानी का कारण बताया।
हैसेट का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप की बातचीत में यह विषय प्रमुखता से उठेगा। रेसिप्रोकल टैरिफ नीति के तहत ट्रंप ने यह स्पष्ट किया है कि जो देश अमेरिकी उत्पादों पर जितना शुल्क लगाएगा, अमेरिका भी उस देश के उत्पादों पर उतना ही शुल्क लगाएगा। ट्रंप की टैरिफ नीति का उद्देश्य घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहित करना और व्यापार घाटे को कम करना है। ऐसे में ट्रंप की ‘जैसे को तैसा’ नीति यानी ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ ने व्यापारिक संबंधों में संतुलन बनाने का प्रयास किया है।
भारत पर रेसिप्रोकल टैरिफ का संभावित प्रभाव
अमेरिका की रेसिप्रोकल टैरिफ नीति अगर भारत पर लागू होती है, तो यह भारतीय निर्यात को बड़ा झटका दे सकती है। वर्तमान में भारत अपने कुल विदेशी व्यापार का 17% से अधिक हिस्सा अमेरिका के साथ करता है। अमेरिका, भारत के लिए कृषि उत्पादों का सबसे बड़ा बाजार है, जहां फल और सब्जियों से लेकर चावल तक, भारतीय उत्पादों की व्यापक मांग है।
2024 में, अमेरिका ने भारत से 18 मिलियन टन चावल का आयात किया था। अगर टैरिफ बढ़ा, तो भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजारों में महंगे हो जाएंगे। इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं के बीच इन उत्पादों की मांग घट सकती है, जो भारत के लिए आर्थिक नुकसान का कारण बनेगी।
ऐसे में अमेरिका का यह कदम भारतीय निर्यातकों के लिए दोहरी चुनौती खड़ी कर सकता है। न केवल उनकी प्रतिस्पर्धा अमेरिकी बाजार में कमजोर होगी, बल्कि घरेलू स्तर पर भी आय में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है। यह स्पष्ट है कि अगर रेसिप्रोकल टैरिफ लागू होता है, तो यह भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
टैरिफ रियायतों से खुलेगा टेस्ला के भारत आने का रास्ता
भारत में टेस्ला(Tesla) की एंट्री की चर्चा कोई नई बात नहीं है। 2021 में, एलन मस्क ने बेंगलुरु में टेस्ला का रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया शुरू की थी और उम्मीद जताई कि कंपनी अक्टूबर तक भारतीय बाजार में कदम रखेगी। लेकिन यह सपना साकार नहीं हो सका। उस वक्त अमेरिका में ट्रम्प प्रशासन ने भारत की ऊंची इम्पोर्ट ड्यूटी को इसकी वजह बताया था।
2022 में टेस्ला ने दोबारा भारत आने की कोशिश की। कंपनी चाहती थी कि पूरी तरह असेंबल गाड़ियों पर लगने वाली 100% इम्पोर्ट ड्यूटी को 40% तक घटाया जाए। मस्क की मांग थी कि उनकी गाड़ियों को लग्जरी के बजाय इलेक्ट्रिक व्हीकल माना जाए। लेकिन भारत सरकार का रुख सख्त था। सरकार ने साफ किया कि आयात शुल्क में छूट तभी दी जाएगी, जब टेस्ला भारत में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने का वादा करे।
मस्क चाहते थे कि भारत में पहले टेस्ला की गाड़ियों की बिक्री शुरू हो, और उसके बाद मैन्युफैक्चरिंग प्लांट पर विचार किया जाए। इस टकराव के चलते 2024 में उनकी भारत यात्रा भी टल गई, और वे चीन चले गए।
हालांकि, अब स्थितियां बदलती नजर आ रही हैं। भारत सरकार ने 40,000 डॉलर से ज्यादा कीमत वाली गाड़ियों पर इम्पोर्ट ड्यूटी को 125% से घटाकर 70% कर दिया है। इसके साथ ही, लिथियम-आयन बैटरी पर से भी टैरिफ हटा दिया गया है। यह कदम टेस्ला की भारत में एंट्री को लेकर उम्मीदें बढ़ा रहा है।
कई रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस अमरीकी दौरे में प्रधानमंत्री मोदी और एलन मस्क के बीच संभावित मुलाकात हो सकती है। यह मुलाकात भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ा कदम साबित हो सकती है। अगर टेस्ला भारत में कदम रखती है, तो यह न सिर्फ ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए गेम-चेंजर होगा, बल्कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्तों को भी नई दिशा देगा।