दिल्ली की सत्ता में एक दशक से अधिक समय तक काबिज रहने के बाद अब आम आदमी पार्टी (AAP) चुनाव हार चुकी है। AAP की हार के यूं तो कई फैक्टर अब तक सामने आ चुके हैं। इसमें विकास न होने से लेकर झूठे वादे, भ्रष्टाचार के आरोप, अति आत्मविश्वास और पार्टी के अंदर की कलह शामिल है। हालांकि अब तक पार्टी के किसी भी बड़े नेता ने मीडिया के सामने आकर हार के कारणों पर बात नहीं की है। लेकिन अब AAP की ‘सेंट्रल टीम’ में लंबे समय से काम कर रहे एक व्यक्ति ने हार के कारणों पर खुलकर बात की है।
दरअसल, दिल्ली के विधानसभा चुनाव में हुई हार को लेकर TFI मीडिया आम आदमी पार्टी के नेताओं से लगातार संपर्क कर रहा था। लेकिन कोई भी शीर्ष नेता हार के कारणों पर बात करने को तैयार नहीं था। इसी दौरान TFI टीम की मुलाकात AAP की सेंट्रल टीम में काम कर रहे एक व्यक्ति से हुई, जिसने न केवल AAP द्वारा कराए गए सर्वे रिपोर्ट का खुलासा किया, बल्कि AAP के चुनाव लड़ने या मैनेजमेंट के तरीके और हार के कारणों व हराने वालों के नाम का खुलासा किया।
इस व्यक्ति ने बताया कि पार्टी की सेंट्रल टीम AAP के राज्यसभा सांसद संदीप पाठक के इशारे पर काम करती थी। लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली हार के बाद इस टीम में दिल्ली की राजेन्द्र नगर सीट से विधायक रहे दुर्गेश पाठक को भी शामिल कर दिया गया था। साथ ही सेंट्रल टीम प्रशांत किशोर की कंपनी आईपैक (I-PAC) को रिपोर्ट कर रही थी। यह सब चीजें दिल्ली विधानसभा चुनाव की तैयारी से ही शुरू हुई थीं।
दुर्गेश पाठक और PK की कंपनी पूरी तरह से हुई फेल:
AAP की सेंट्रल टीम के इस व्यक्ति ने कहा, “पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं से लेकर बूथ स्तर तक के एक-एक व्यक्ति तक यदि किसी की पहुंच होती है तो वह सेंट्रल टीम ही है। पिछले चुनावों में यदि दिल्ली में पार्टी को जीत मिली थी तो इसमें केजरीवाल, सिसोदिया के चेहरे के साथ ही सेंट्रल टीम की भी भूमिका थी। लेकिन इस बार पर्चे-पम्पलेट और झंडे तक के लिए कार्यकर्ता तरस रहे थे। BJP वाले बड़े-बड़े पोस्टर लगा रहे थे। कांग्रेस के झंडे और पोस्टर दीवारों पर दिखाई देते थे। लेकिन AAP के पर्चे और बैनर के नाम पर आखिर में सिर्फ ओपिनियन पोल वाला पैम्फ़लेट ही हाथ में आया। सिर्फ इतने से जनता को क्या दिखेगा? लोग सोचे कि पहले से खुद को जीता बता रहा है। इसलिए और वोट नहीं दिए।”
उसने आगे कहा, “दुर्गेश पाठक को पार्टी कैडर से बात करके काम कराने की जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन वो जिस तरह से बात करते थे, ऐसा लगता था कि पार्टी के लिए सब कुछ इन्होंने ही किया है। जिन लोगों ने आंदोलन करके पार्टी खड़ी की, संघर्ष किया उनको इस व्यक्ति ने सम्मान नहीं दिया। लोकसभा में सब लोग मेहनत से काम किए, उसमें तो हम वैसे भी नहीं जीत रहे थे। लेकिन यहां तो सत्ता हमारी होती। मगर दुर्गेश ने सब खराब कर दिया।”
दुर्गेश पाठक को दी गई अन्य जिम्मेदारियों को लेकर पूछे गए सवाल पर उसने कहा, “भाई सारा कुछ दुर्गेश ही तो देख रहा था। संगठन की पूरी जिम्मेदारी उनके ही पास तो थी। रेवड़ी पर चर्चा, घर-घर जाओ अभियान और प्रोजेक्टर शो, बचत पत्र योजना समेत तमाम चीजें उनके ही पास थे। इसमें अधिक से अधिक लोगों से मिलने का लक्ष्य रखा गया था। प्लान तो अच्छा था लेकिन उसको करवाने वाला काम नहीं करवा पाया।”
उसने आगे कहा, “सबको पता है कि दिल्ली के विधायकों ने काम नहीं किया था। यदि काम नहीं किया था तो प्रचार तो करना चाहिए था। इनसे वह भी नहीं हो पाया। रही सही कसर टिकट बेचकर निकाल दी।” इस पर हमने उसे रोकते हुए कहा टिकट बेचते हुए मतलब…? इसके जवाब में उसने कहा, “पार्टी के सर्वे में रोहित महरोलिया (त्रिलोकपुरी के पूर्व विधायक) जीत रहा था। 5 बार सर्वे हुआ, सब में वो जीत रहा था। लेकिन इसके बाद भी पार्टी ने वहां से उसे टिकट नहीं दिया। मुझे लगता है उसका टिकट कटा नहीं बेचा गया है।” बता दें कि AAP ने त्रिलोकपुरी से अंजना पारचा को प्रत्याशी बनाया था, जिन्हें भाजपा के प्रत्याशी रविकांत उज्जैन ने 392 वोटों से हराया है।
इन सब बातों के बीच हमने प्रशांत किशोर की कंपनी I-PAC को लेकर सवाल किया। इस पर उसने कहा, “सेंट्रल टीम I-PAC को रिपोर्टिंग कर रही थी। इस पूरे चुनाव में अगर कोई लीड था वो यही कंपनी थी। इस कंपनी के लोग यहां आकर कहते थे कि TMC को बंगाल में हमने ही जिताया है। सर्वे में केजरीवाल की हार पर इनका कहना था कि ममता बनर्जी भी चुनाव हार गई थीं, यहां ये भी हार जाएं तो क्या दिक्कत है? CM बनना है, सरकार बनाना है तो ये सब चलता रहता है।”
PK की कंपनी की गलतियां बताते हुए उसने सवालिया लहजे में कहा, “इस लोगों का क्या काम है चुनाव मैनेजमेंट का न? तो वही करना चाहिए था। चुनाव मैनेज करने की जगह ये लोग सिर्फ बड़े नेताओं या बाहर से आए विधायकों, जैसे जो पंजाब से आए थे…उनके पीछे-पीछे घूमते थे। ये लोग चाहते थे कि उन्हें उन विधायकों के सोशल मीडिया का काम मिल जाए।”
एक पल को रुका और फिर झल्लाते हुए उसने कहा, “चुनाव मैनेजमेंट में वोटर्स तक मैसेज पहुंचाना जरूरी है। एक तो यहां एक झण्डा, पर्चा नहीं आ रहा था। वहीं दूसरा, I-PAC वालों के पास एक मोबाइल नंबर नहीं था। वोटर्स का मोबाइल नंबर तो होना चाहिए। डाटा मार्केट में बिकता है, लेकिन इनके पास कुछ नहीं था। सोशल मीडिया टीम तक ढंग से काम नहीं कर रही थी।”
हमने कुछ अन्य जानकारी निकालने के लिए उससे कहा कि यह सब तो सामान्य बातें हैं कुछ और बताओ। इस पर उसने कहा, “आपको यह नॉर्मल लग रहा है। पार्टी के सर्वे में बड़े नेता हार रहे थे। सबको यह समझ आ गया था कि सरकार जा रही है। बड़े नेता मतलब समझते हैं, सारे बड़े जिनका भी आप नाम सोच सकते हैं सब हार रहे थे और (निराश होते हुए कहा) सब हार गए।”
सर्वे में मिल रहीं थीं सिर्फ 18 सीटें:
सेंट्रल टीम के इस व्यक्ति ने TFI को से आगे कहा, “AAP के इंटरनल सर्वे में पार्टी को 18 सीटों में जीत मिल रहीं थीं। इन 18 सीटों में अरविंद केजरीवाल, मनीष सीसोदिया, सत्येन्द्र जैन और तत्कालीन CM आतिशी, सोमनाथ भारती, अवध ओझा जैसे दिग्गजों के नाम नहीं थे। वहीं सौरभ भारद्वाज, दुर्गेश पाठक, जय भगवान उपकार जैसे नेता चुनाव जीत रहे थे। हालांकि इसमें से सिर्फ आतिशी ही चुनाव जीत पाईं। दुर्गेश पाठक को चुनाव जिताने की जिम्मेदारी दी गई थी और वह खुद चुनाव हार गए। पार्टी का सर्वे करने वाली कंपनी कौन थी यह सब जानते हैं। PK की कंपनी को सब पता था…सब चुनाव हार रहे हैं। लेकिन यह बात ऊपर तक ना तो पहुंचाई गई और ना पहुंचने दी गई। दुर्गेश पाठक के यहां महाराष्ट्र का एक व्यक्ति काम करता था…शिंदे नाम था उसका। वह भी सेंट्रल टीम का ही है। उसको भी सब पता था। लेकिन इन लोगों को लगा कि चुनाव जीत ही जाएंगे। सर्वे सब ऐसे ही हैं। दुर्गेश पाठक ओवर कॉन्फिडेंस में थे, नहीं तो चुनाव जीत जाते। जिस व्यक्ति को पूरी जिम्मेदारी दी जाती है वही हार का कारण होता है। किसी और को दोष क्यों देना। अगर सभी विधायक काम नहीं किए थे तो 18 भी नहीं जीत रहे होते। लेकिन सर्वे में 18 जीत रहे थे। अब जब रिजल्ट आया तो उस 18 में से 10 ही जीत पाए। मतलब हर जगह ये लोग फेल हुए।”
भाजपा को हुआ 5 सीटों का नुकसान:
इस दौरान AAP की सेंट्रल टीम के इस व्यक्ति ने यह भी कहा, “यदि BJP दिल्ली में JDU और LJP से गठबंधन नहीं करती तो 4 और सीटें और जीतती। ये दोनों अपनी सीटें बड़े अंतर से हारे एक 20 हजार से और दूसरा 36000 से…यहां BJP का प्रत्याशी नहीं था तो बगल की सीटों में भी प्रभाव पड़ा। इधर BJP को अपना कंडिडेट उतारना चाहिए था।” इस पर हमने रोकते हुए कहा कि ये तो 4 ही सीट हुई आप 5 कह रहे थे। तब उसने कहा, “हां आतिशी चुनाव नहीं जीत रही थी। हम लोगों की उम्मीदें तो पहले ही खत्म हो गईं थीं। मुझे कालका जी में 8 दिन काम करने को मिला। सर्वे में ये 3700 वोट से पीछे थीं। हम लोगों को पता था कि यहां भी काम खत्म हो गया। लेकिन फिर आखिर में कुछ न कुछ तो हुआ है जिससे रमेश बिधूड़ी हार गए।”