देश की आज़ादी की लड़ाई का इतिहास नायकों की गाथाओं से भरा पड़ा है। ना जाने कितने ही वीरों ने भारत को अंग्रेज़ों की गुलामी की बेड़ी से आज़ाद कराने में अपना सब कुछ लुटा दिया था। देश के कोने-कोने से निकले इन वीरों ने भारत माता के चरणों में अपना बलिदान दिया है। इन क्रांतिकारियों में एक नाम है शचींद्रनाथ सान्याल का। अपने जीवन के आखिरी क्षणों में भी सान्याल अंग्रेजी हुकूमत के चलते अपने घर में नजरबंद रहे और आज ही के दिन (7 फरवरी) 1942 में इस महान क्रांतिकारी ने दुनिया को अलविदा कहा था।
सान्याल के माता-पिता बंगाली ब्राह्मण थे और उनका जन्म 3 अप्रैल 1893 को वाराणसी में हुआ था। महात्मा गांधी की अहिंसा की धारा के विपरीत वे क्रांतिकारियों के शिक्षक माने जाते थे। बचपन से ही सान्याल में राष्ट्र भक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी, 1908 में पढ़ाई के दौरान ही सान्याल ने काशी में प्रथम क्रांतिकारी दल का गठन कर दिया था। 1912 में जब तत्कालीन वायसराय हार्डिंग बंगाल विभाजन को रद्द करने के बाद दिल्ली में प्रवेश कर रहे थे तो सान्याल ने रासबिहारी बोस के साथ उन पर हमला कर दिया था। इस हमले में हार्डिंग घायल हो गए लेकिन लेडी हार्डिंग सुरक्षित बच गई थीं। इसके बाद 1913 में सान्याल ने पटना में अनुशीलन समिति की एक शाखा की स्थापना की थी।
1914 में प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया था और अंग्रेजी सरकार उसमें उलझी हुई थी ऐसे में सान्याल ने अपने साथियों के साथ मिलकर इस मौके का फायदा उठाना चाहा। सान्याल ने गदर आंदोलन के तहत ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशस्त्र विद्रोह की योजना बनाई जिसके लिए बनारस में बैठक का आयोजन किया गया था। इसका उद्देश्य पंजाब में बम पहुंचाना था और बनारस को हथियारों की तस्करी के लिए एक कड़ी के तौर पर इस्तेमाल किया जाना था। लेकिन सान्याल को पुलिस ने बनारस षड्यंत्र मामले में जून 1915 में गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद फरवरी 1916 में सान्याल को आजीवन काला पानी की सजा सुनाई गई। उन्होंने जेल में रहते हुए ‘बंदी जीवन’ नामक पुस्तक भी लिखी थी। 1920 की शुरुआत में उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया।
अंडमान की सेल्युलर जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने वहां कैदियों के साथ किए जा रहे अमानवीय व्यवहार की कांग्रेस के कई नेताओं से चर्चा की। उन्होंने जेल में बंद विनायक दामोदर सावरकर और अन्य कैदियों को छुड़ाने की कोशिश भी की इसके लिए वे वीर सावरकर के भाई नारायण सावरकर से भी मिले लेकिन उनकी कोशिशें कोई रंग नहीं लाईं। सान्याल को सरदार भगत सिंह सहित कई अन्य क्रांतिकारियों का गुरु माना जाता है।
1920 में महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन की शुरुआत की लेकिन 1922 में चौरी-चौरा की घटना के बाद कांग्रेस के भीतर सहमति ना होने के बावजूद गांधी ने अचानक आंदोलन को रोक दिया था। इस आंदोलन को इस तरह रोके जाने से कई युवा नाराज हो गए और उन्होंने 1924 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) की स्थापना की। इन युवाओं में सान्याल, बिस्मिल और अशफाक जैसे लोग शामिल थे और बाद में चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह भी HRA में शामिल हो गए।
दिल्ली अधिवेशन में सचिंद्रनाथ सान्याल ने भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता का लक्ष्य और भविष्य में संपूर्ण एशिया को महासंघ बनाने का विचार रखा था और इससे जुड़े पर्चे रंगून से लेकर पेशावर तक बांटे गए थे। इन पर्चों के कारण ही फरवरी 1925 में सान्याल को दो वर्ष की सजा हुई और जेल से रिहा होने के बाद काकोरी कांड में नाम आने पर उन्हें फिर से काला पानी की सज़ा दी गई।
काकोरी ट्रेन लूट कांड में भी सान्याल की अहम भूमिका थी और गोरखपुर के उनके आवास पर ही ट्रेन लूटने की प्लानिंग हुई थी। साथ ही, लूट के बाद चंद्रशेखर आजाद और राम प्रसाद बिस्मिल जैसे कई क्रांतिकारी उनके आवास पर आकर रुके थे। वे अगस्त 1937 में नैनी सेंट्रल जेल से रिहा किए गए लोगों में से एक थे। हालांकि, 1941 में फिर से सान्याल को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विदेशी जापान के साथ साजिश रचने के आरोप में हिरासत में लिया गया था। जेल में रहते हुए ही उन्हें टीबी हो गई और 7 फरवरी 1942 में सान्याल ने दाउदपुर स्थित अपने आवास में नज़रबंदी की हालत में आखिरी सांस ली थीं।