दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति और अमेरिका में सरकारी खर्चों में कटौती के लिए बनाए गए ताकतवर DOGE (Department of Government Efficiency) विभाग के प्रमुख एलन मस्क ने दुनियाभर में वामपंथियों की नींदें उड़ा दी हैं। दुनियाभर के वामपंथी शासक और उस विचार से जुड़े लोग उन्हें लेकर तमाम तरह की अनर्गल बातें कर रहे हैं। अब इसका असर भारत में भी पहुंच गया है और यहां भी कथित वामपंथियों में तो खलबली बची हुई है। संकेत उपाध्याय जो एक कथित पत्रकार और यूट्यूबर हैं, उन्होंने एलन मस्क के बेटे को लेकर जो ट्वीट किया उसकी खूब चर्चा हो रही है। संकेत ने मस्क के जिस बेटे को लेकर ट्वीट किया उसकी उम्र अभी 4 वर्ष पूरी भी नहीं हुई है।
संकेत ने क्या कहा?
लंबे वक्त तक NDTV में काम करने वाले संकेत इन दिनों अपना यूट्यूब चलाते हैं और खुद को स्वतंत्र पत्रकार बताते हैं। संकेत उपाध्याय ने रविवार को ‘X’ पर एक पोस्ट किया, इस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के मालिक भी एलन मस्क हैं। संकेत ने लिखा, “Oval Office में एक 150 साल पुरानी टेबल Donald Trump से इसलिए हटवा दी है क्योंकी Elon Musk के बेटे ने अपनी नाक खोद कर उसमे चिपका दिया था।”
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संकेत के इस ट्वीट के बाद कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने इसका विरोध किया। एक यूज़र ने कहा, “ट्रंप ने भारत के गद्दारों की भीख क्या बंद कर दी…गद्दारों का दुख कम ही नहीं हो रहा है।” जबकि एक अन्य ने लिखा, “य़ह बकवास, एक उत्कर्ष पत्रकारिता का नमूना है।” इनके अलावा भी कई अन्य यूज़र्स ने संकेत उपाध्याय को आईना दिखाया।
बड़ी संख्या में लोगों ने जब संकेत को असलियत दिखाई को उन्होंने एक और पोस्ट किया। संकेत ने ‘X’ इससे जुड़ी कुछ खबरों के स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए लिखा, “डोनाल्ड ट्रंप और एलन मस्क के नव अंकुरित भारतीय भक्त कल से आहत हैं मेज़ बदलने वाले ट्वीट पर। अख़बारों की कुछ प्रतियां संलग्न हैं। ट्रोलिंग में खलल न पड़े तो देख लीजिए।“
संकेत के दावे में कितना दम?
संकेत के इस दावे में कितना दम है यह उनके द्वारा जिन खबरों का स्क्रीनशॉट शेयर किया गया है उनसे ही पता चल जाता है। संकेत उपाध्याय ने जो खबरें शेयर की हैं उनमें एक ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ अखबार की है। इस खबर की हेडलाइन है ‘Trump replaces Resolute Desk after Musk’s son seemingly wiped booger on it: All about historic Oval Office furniture’ यानी ‘मस्क के बेटे के नाक की गंदगी साफ करते ‘प्रतीत होने’ के बाद ट्रंप ने रिज़ोल्यूट डेस्क को बदल दिया: ऐतिहासिक ओवल ऑफिस के फर्नीचर के बारे में सब कुछ’।
यहीं आप संकेत की चालाकी को समझ सकते हैं, इस खबर में साफ-साफ लिखा है कि ‘ऐसा किए जाने के बाद ट्रंप ने डेस्क बदली’ जबकि संकेत ने लिखा कि ‘ट्रंप ने इसलिए बदली है’। संकेत द्वारा शेयर की गई इसी खबर में ट्रंप के ‘सोशल ट्रूथ’ पर किए गए एक पोस्ट का भी ज़िक्र किया गया है। ट्रंप ने ‘सोशल ट्रूथ’ पर लिखा, “एक राष्ट्रपति को चुनाव के बाद 7 में से 1 डेस्क चुनने का विकल्प मिलता है। यह डेस्क, “C&O”, जो काफी प्रसिद्ध है और जिसे राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश सहित अन्य राष्ट्रपतियों ने इस्तेमाल किया था, फिलहाल व्हाइट हाउस में अस्थायी रूप से स्थापित की गई है, जबकि रिजॉल्यूट डेस्क की हल्की मरम्मत की जा रही है—जो एक बेहद महत्वपूर्ण कार्य है। यह एक खूबसूरत लेकिन अस्थायी विकल्प है!“
इस खबर को लेकर अमेरिका के एक न्यूज़ पोर्टल ‘USA Today’ ने लिखा, “ट्रंप ने 150 साल पुरानी रिजॉल्यूट डेस्क को ओवल ऑफिस से हटाया ताकि इसे ‘हल्की मरम्मत’ के लिए भेजा जा सके।” कई अन्य पोर्टल ने भी इसी तरह खबर को रिपोर्ट किया है, कई जगह पर खबर को दिलचस्प बनाने के लिए इस घटना का ज़िक्र किया गया है लेकिन लगभग सभी ने यही लिखा है कि ‘इसके बाद’ मेज़ को मरम्मत के लिए भेजा गया है ना कि ‘इसके चलते, मेज़ को हटा दिया गया है’ जैसा दावा संकेत ने किया है।
वामपंथियों की मस्क से नफरत कोई नई बात नहीं है लेकिन अब तो वे एक मासूम बच्चे तक को निशाना बनाने से नहीं हिचक रहे हैं। संकेत उपाध्याय जैसे कथित पत्रकार सिर्फ सुर्खियां बटोरने और सनसनी फैलाने के लिए झूठे दावे गढ़ रहे हैं। उन्होंने मस्क के बेटे को लेकर जो ट्वीट किया उसमें न सिर्फ तथ्यात्मक गलतियां थीं बल्कि यह उनकी पत्रकारिता के गिरते स्तर को भी दिखाता है। सच्चाई यही है कि ट्रंप ने 150 साल पुरानी ‘रिज़ॉल्यूट डेस्क’ को केवल हल्की मरम्मत के लिए हटाया, ना कि किसी बच्चे की हरकत की वजह से। लेकिन संकेत उपाध्याय और उनके जैसे तथाकथित पत्रकारों के लिए सच्चाई मायने नहीं रखती, उन्हें बस एक झूठा नैरेटिव बनाना है, जिससे मस्क को और उनके समर्थकों को निशाना बनाया जा सके।
अक्सर हम ऐसे ट्रेंड्स के देखते हैं कि जब भी कोई प्रभावशाली शख्स वामपंथी एजेंडे के खिलाफ खड़ा होता है तो उनके खिलाफ झूठ फैलाया जाता है। मस्क ने जब X (ट्विटर) खरीदा था और फ्री स्पीच को बढ़ावा देना शुरू किया था तभी से उन्हें वामपंथियों के हमलों का सामना करना पड़ रहा है। अब उसी नफरत का नतीजा है कि उनका 4 साल का बेटा भी इस राजनीति का शिकार हो रहा है। आखिर, पत्रकारिता का यह स्तर कितना गिरेगा? क्या अब बच्चों को भी किसी के राजनीतिक विचारों के आधार पर टारगेट किया जाएगा? क्या तथ्यों को तोड़-मरोड़कर एक फेक नैरेटिव बनाना ही नई पत्रकारिता है?