‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।’
भारत के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में हजारों वीर सपूतों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है। इनमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का नाम पहली पंक्ति के नायकों में रखा जाता है। भारत मां की ध्वजा मातृभूमि में लहराने और आक्रांताओं को देश से उखड़ फेंकेने का प्रण लेकर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले वीर सपूतों को आज ही के दिन यानी 23 मार्च, 1931 को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी दी थी। तीनों क्रांतिकारियों के बलिदान को याद रखने और उनके देश प्रेम से प्रेरणा लेने के लिए 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में बनाया जाता है।
वास्तव में शहीद दिवस असाधारण साहस और बलिदान को याद रखने का एक अवसर है, जिसमें…’सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है…’ गाते हुए इस देश के लिए हंसते हुए फांसी का फंदा चूमने वाले क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को न केवल श्रद्धांजलि दी जाती है, बल्कि यह भी याद किया जाता है कि उनके बलिदान ने इस देश में क्रांति की ऐसी अलख जगाई कि 200 साल तक देश में हुकूमत करने वाले अंग्रेज अगले 16 सालों में ही मां भारती की इस भूमि को छोड़कर जाने को मजबूर हो गए।
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे अहम क्रांतिकारियों में से थे। इन तीनों ने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया, बल्कि अपने विचारों के जरिएभी देश के युवाओं को प्रेरित किया। भगत सिंह ने अपने जीवन का उद्देश्य देश की आजादी को बनाया और बेहद कम उम्र में ही उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई ऐसे कदम उठाए, जिससे अंग्रेजों की नींव हिल गई थी।
साल 1929 में उन्होंने असेंबली में बम फेंककर अंग्रेज सरकार को चेतावनी दी थी। उनका मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं, बल्कि अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना था। इसके जरिए उन्होंने लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया था। इसके बाद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को सॉन्डर्स हत्या कांड में दोषी ठहराते हुए 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई थी।
उल्लेखनीय है कि तीनों ही महान क्रांतिकारियों को फांसी की सजा देने के लिए 24 मार्च, 1931 की तारीख तय की गई थी। लेकिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के प्रति देश के लोगों का प्रेम और फांसी के खिलाफ आवाज उठाने वालों की संख्या देखकर अंग्रेजी हुकूमत खौफ में आ गई थी, इसके बाद एक दिन पहले यानी 23 मार्च, 1931 की शाम ही अंग्रेजों ने चुप-चाप फांसी देने का प्लान बनाया और उसी रात तीनों शूरवीरों को फांसी पर लटका दिया। तीनों क्रांतिकारी हंसते हुए मातृभूमि के लिए बलिदान हो गए।
आजादी के क्रांतिदूत अमर शहीद वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीदी दिवस पर शत-शत नमन। मां भारती के इन महान सपूतों का बलिदान देश की हर पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बना रहेगा। जय हिंद! #ShaheedDiwas pic.twitter.com/qs3SqAHkO9
— Narendra Modi (@narendramodi) March 23, 2021
शहीद दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वीर सपूतों को श्रद्धांजलि है। उन्होंने एक्स (X) पर एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा है, “आजादी के क्रांतिदूत अमर शहीद वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीदी दिवस पर शत-शत नमन। मां भारती के इन महान सपूतों का बलिदान देश की हर पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बना रहेगा। जय हिंद!”