IIT बाबा के नाम से मशहूर अभय सिंह के साथ एक निजी न्यूज़ चैनल की डिबेट के दौरान हुई ‘कथित मारपीट’ का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि इसी बीच एक और निजी न्यूज़ चैनल में महिलाओं के बीच हाथापाई और गाली गलौज का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस वीडियो में मॉडल मानवी तनेजा और एक अन्य महिला आपस में भिड़ती हुईं और अपशब्दों का इस्तेमाल करती नज़र आ रही हैं। आए दिन ऐसे तमाम वीडियोज़ न्यूज़ चैनल से सामने आते हैं जिनमें गाली-गलौज, मारपीट जैसी चीज़ें खूब होती हैं। TRP यानी टेलीविजन रेटिंग पॉइंट्स की अंधी दौड़ ने मीडिया की भूमिका को सूचनाओं से आगे बढ़कर व्यवसाय और प्रतिस्पर्धा का माध्यम बना दिया है। टीवी डिबेट्स इन दिनों चर्चा से ज़्यादा मसाले का विषय बनती जा रही हैं और ऐसे ही कार्यक्रमों में खूब हंगामा होता है।
IIT बाबा और मानवी के विवाद की असल वजह क्या!
महाकुंभ में वायरल हुए IIT बाबा पिछले दिनों ‘न्यूज़ नेशन’ के एक डिबेट कार्यक्रम में पहुंचे थे। वहां, कई साधु-संत भी मौजूद थे और दावा किया गया कि अभय सिंह साधुओं द्वारा सवाल पूछे जाने पर भड़क गए और उनके ऊपर गरम चाय फेंक दी थी। इस हंगामे का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ। इसके बाद अभय सिंह ने दावा किया कि उनके साथ बदसलूकी और मारपीट की गई है। उन्होंने एक साधु पर उन्हें डंडे से मारने का आरोप भी लगाया है। अभय सिंह ने इस मामले को लेकर पुलिस में शिकायत दी है।
वहीं, मानवी तनेजा के साथ विवाद ‘टाइम्स नाउ नवभारत’ चैनल में हुआ है। इसमें मानवी एक अन्य महिला (संभवत एंकर) के बारे में उल्टा सीधा बोल रही हैं। कांग्रेस के मीडिया पैनलिस्ट सुरेंद्र सिंह राजपूत ने इस विवाद का एक वीडियो ‘X’ पर शेयर किया है। सुरेंद्र राजपूत ने इस वीडियो के साथ लिखा, “यह Times Now का नवभारत मीडिया चैनल है खुले आम WWF करवायी जा रही है डिबेट के नाम पर! क्या सिर्फ TRP ही सब कुछ है ऐसे चैनल्स के लिए?” इस वीडियो में मानवी ना सिर्फ अभद्रता करती नज़र आ रही हैं बल्कि एक महिला को गंदी गालियां भी दे रही हैं।
TRP ज़रूरी क्यों?
IIT बाबा और मानवी तनेजा के इन वीडियोज़ के वायरल होने के बाद सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि क्या न्यूज़ चैनलों द्वारा जानबूझकर TRP के लिए यह सब कराया जा रहा है। ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च इंडिया काउंसिल इंडिया (BARC India) द्वारा हर हफ्ते अलग-अलग चैनलों की TRP बताई जाती है। हर हफ्ते आने वाली इस TRP से ही चैनलों और अलग-अलग कार्यक्रमों की रैंकिंग तय होती है कि कौनसा चैनल और कौनसा कार्यक्रम कितना देखा गया है। विज्ञापनदाता उन्हीं चैनलों पर विज्ञापन देना पसंद करते हैं जिनकी TRP अधिक होती है, क्योंकि इससे उनके विज्ञापन ज्यादा लोगों तक पहुंचते हैं। जिसके चलते TRP मीडिया संस्थाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।
TRP के लिए अंधी दौड़ से खतरा
TRP की अंधी दौड़ ने मीडिया की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सच्चाई की बजाय सनसनी पर चैनलों का ध्यान ज़्यादा होने के चलते मीडिया की ज़िम्मेदारी पर प्रश्न चिह्न लगने शुरू हो गए हैं। TRP की दौड़ के चलते प्राइम टाइम डिबेट्स को एक लड़ाई का मैदान बना दिया गया है। जहां एंकर और पैनलिस्ट संवाद की बजाय चीखने-चिल्लाने में लगे रहते हैं। केवल TRP के लिए मीडिया संस्थान खबरों को सनसनीखेज बनाएंगे, तोड़-मरोड़कर पेश करेंगे और पैनलिस्ट से बहस के नाम पर बेकार की तू-तू मैं-मैं कराई जाएगी तो समाज में भ्रम और अविश्वास बढ़ेगा। इस तरह की बहसों से कोई समाधान भी नहीं निकलता नज़र आता है। ज़रूरी है कि मीडिया अपनी जिम्मेदारी और नैतिकता बनाए रखे ताकि यह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका सही तरीके से निभा सके।