दिल्ली के न्यायिक गलियारों में हलचल मची हुई है। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के आवासीय बंगले में आग लगने की घटना सामने आई थी। हालांकि आग पर काबू पा लिया गया, लेकिन इसके बाद उपजे सवालों ने न्यायिक जगत में हलचल मचा दी है। इस घटना के बाद जज के घर से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने की खबरें सामने आईं, जिससे न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को लेकर नई बहस छिड़ गई है। इस प्रकरण को लेकर पूर्व सॉलिसिटर जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने आईएएनएस को साक्षात्कार दिया है।
उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि इस तरह के आरोप न्यायपालिका की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाते हैं। जज के महाभियोग को लेकर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, “सिर्फ महाभियोग नहीं। मुझे यकीन है कि अगर स्वतंत्र जांच में उन पर आरोप साबित होते हैं तो वह इस्तीफा दे देंगे। आप कह रहे हैं कि इसमें बहुत सी खामियां हैं, बहुत से ग्रे एरिया हैं? ग्रे नहीं, ग्रे कुछ भी नहीं है। अभी सब कुछ काला है।” यह मामला सिर्फ एक न्यायाधीश तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी न्यायिक व्यवस्था की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। अब देखना यह होगा कि न्यायपालिका इस मामले में अपनी साख बचाने के लिए क्या कदम उठाती है।
साक्षात्कार के प्रमुख अंश
आईएएनएस: क्या आपको लगता है कि दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर नकदी से जुड़े आरोपों ने न्यायपालिका में जनता का विश्वास कमजोर किया है?
हरीश साल्वे: जब मैंने यह खबर पढ़ी, तो मैं हैरान रह गया। अगर इस तरह की घटनाएं मेरे जैसे व्यक्ति का न्यायपालिका पर विश्वास हिला सकती हैं, तो निश्चित रूप से आम आदमी का भरोसा भी डगमगा सकता है।
आईएएनएस: क्या न्यायमूर्ति वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने के कॉलेजियम के फैसले ने इस विवाद को और हवा दी है?
हरीश साल्वे: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस घटना का तबादले से कोई संबंध नहीं है। यह सच हो सकता है या नहीं भी, लेकिन जनता की धारणा इससे प्रभावित होती है। आज जो बातें सामने आ रही हैं, उन पर विश्वास करना मुश्किल हो रहा है। मुझे लगता है कि एकमात्र सही कदम यह होगा कि उनका ट्रांसफर रोका जाए और स्वतंत्र जांच के आदेश दिए जाएं।
आईएएनएस: क्या उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट में ही रहकर काम जारी रखना चाहिए?
हरीश साल्वे: मुझे पूरा विश्वास है कि वह कुछ दिनों की छुट्टी लेंगे। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में जांच का आदेश देना चाहिए। और मैं यह सुझाव देना चाहूंगा कि जांच के लिए एक तीन सदस्यीय समिति गठित की जाए, जिसमें एक जज और दो प्रतिष्ठित बाहरी विशेषज्ञ शामिल हों।
आईएएनएस: अगर आरोप सही साबित होते हैं, तो क्या कार्रवाई होनी चाहिए?
हरीश साल्वे: क्या उनके घर से वास्तव में नकदी बरामद हुई थी? अग्निशमन विभाग प्रमुख का कहना है कि ऐसा कुछ नहीं मिला। अगर वास्तव में वहां से नकदी मिली थी, तो जांच समिति उन्हें दोषी ठहराएगी, और फिर कानून अपना काम करेगा। लेकिन अगर आरोप निराधार निकले, तो यह भी जांच होनी चाहिए कि ऐसी झूठी खबरें फैलाने के पीछे कौन था।
आईएएनएस: अगर आरोप साबित होते हैं, तो क्या यह मामला महाभियोग तक पहुंच सकता है?
हरीश साल्वे: सिर्फ महाभियोग नहीं, अगर स्वतंत्र जांच में उन पर आरोप सिद्ध होते हैं, तो मुझे यकीन है कि वह खुद इस्तीफा दे देंगे। आप कह रहे हैं कि इसमें ग्रे एरिया है? नहीं, इसमें कोई ग्रे एरिया नहीं है, यह मामला पूरी तरह काला है। यह मेरे 45 साल के कानूनी करियर की सबसे बदसूरत घटना है। मैंने कभी नहीं सुना कि किसी हाईकोर्ट जज के घर से नकदी बरामद हुई हो। जस्टिस वर्मा वरिष्ठ जजों में से एक हैं और मैं हमेशा उनकी प्रशंसा करता रहा हूं। यह प्रकरण न्यायपालिका की साख पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
आईएएनएस: क्या यह घटना फिर से न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता और कॉलेजियम प्रणाली पर बहस छेड़ सकती है?
हरीश साल्वे: निश्चित रूप से। यह एक स्पष्ट संकेत है कि मौजूदा प्रणाली अब प्रभावी नहीं रही। आज का समय 1960, 70 या 80 का दशक नहीं है, जब खबरें देर से आती थीं। यह सोशल मीडिया का युग है, जहां हर जानकारी पलों में सार्वजनिक हो जाती है। ऐसे में हमें न्यायिक प्रणाली को इन बदलावों के अनुरूप ढालना होगा।
आईएएनएस: क्या आपको लगता है कि सिस्टम में सुधार की जरूरत है?
हरीश साल्वे: बिल्कुल। हमें एक ज्यादा मजबूत और पारदर्शी न्यायिक प्रणाली चाहिए। दुनिया भर की संस्थाएं आज भारी दबाव में हैं, फिर चाहे वह अमेरिका हो या भारत। न्यायपालिका लोकतंत्र की रीढ़ है, और इसे मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
आईएएनएस: क्या यह मामला न्यायिक नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली की खामियों को उजागर करता है?
हरीश साल्वे: यह इंगित करता है कि इस विषय पर फिर से बहस होनी चाहिए। संसद में मौजूद 500 सांसदों को अपने राजनीतिक मतभेद भुलाकर एक ठोस समाधान निकालना होगा। यह केवल एक न्यायिक मुद्दा नहीं, बल्कि संस्थागत अस्तित्व का सवाल है। हमें न्यायपालिका की साख बचानी होगी।
आईएएनएस: इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने कहा है कि वे न्यायमूर्ति वर्मा को वहां ट्रांसफर नहीं होने देना चाहते। इस पर आपका क्या कहना है?
हरीश साल्वे: अगर उन पर लगे आरोप सही हैं, तो ट्रांसफर करना गलत होगा। अगर वह दिल्ली हाईकोर्ट के लिए उपयुक्त नहीं हैं, तो इलाहाबाद में कैसे होंगे? कुछ अदालतों को ‘डंपिंग ग्राउंड’ मत समझिए। हां, कुछ मामलों में जब किसी जज का करीबी रिश्तेदार वहां प्रैक्टिस करता है, तो निष्पक्षता बनाए रखने के लिए स्थानांतरण किया जाता है, लेकिन यह अलग मामला है। यहां सवाल न्यायिक साख का है।
आईएएनएस: कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का प्रस्ताव आया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में खारिज कर दिया था। इस पर आपकी राय?
हरीश साल्वे: इसमें कुछ कमियां थीं, जिन्हें सुधारा जा सकता था। सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि न्यायाधीशों की नियुक्ति सिर्फ न्यायाधीशों को ही करनी चाहिए, सही नहीं है। जस्टिस जे.एस. वर्मा, जिन्होंने 1993 में कॉलेजियम प्रणाली बनाई थी, उन्होंने भी बाद में कहा था कि उन्हें अपने फैसले पर पछतावा है। इसके अलावा, कार्यपालिका को पूरी तरह बाहर करना भी सही नहीं। लोकतंत्र में सरकार एक अहम हितधारक होती है।
आईएएनएस: अगर यह आरोप झूठे साबित होते हैं, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी?
हरीश साल्वे: यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा। अगर यह एक झूठी साजिश है, तो इससे एक ईमानदार जज की छवि धूमिल हो रही है। अगर यह चेतावनी पर्याप्त नहीं है, तो और क्या होगा? मैं ऐसी साजिशों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करूंगा।