आम तौर पर भारतीय ‘फॉल्ट लाइन’ जैसे जुमलों से परिचित नहीं होते। मोटे तौर पर ‘फॉल्ट लाइन’ का मतलब समझना है तो जंजीर की कमजोर कड़ी को समझ लीजिए। जब तक जंजीर एक है, वो किसी चीज को बांधे रख सकती है। एक लकड़ी को आसानी से तोड़ देने और फिर लकड़ियों के बण्डल को न तोड़ पाने के जरिये जो पिता अपने बच्चों को एक रहने और आपस में न लड़ना सिखाता है, वो बोध कथा हममें से अधिकांश ने पढ़ी है। समाज को एक रखने का लाभ और आपसी टूट-फूट के कारण विदेशियों से पराजित होने और गुलाम बनाए जाने से भी सभी भारतीय परिचित होते हैं। इसके बाद भी होता क्या है? समाज में दरारें होती हैं और जैसे ही उन दरारों (यानी ‘फॉल्ट लाइन्स’) पर प्रहार किया जाता है, समाज टूटता है और आक्रमणकारियों को अवसर मिल जाता है।
भारतीय लोगों (हिन्दुओं) के लिए ऐसा एक बड़ा सी ‘फॉल्ट लाइन’ होती है– जाति। इसके नाम पर लोगों को लड़वाना भारतीय नेताओं और विदेशियों की फेंकी बोटियों पर पलने वालों को सबसे आसान लगता है। यहाँ गौर करने लायक ये है कि हर समाज में उनकी अपनी फॉल्ट लाइन्स होती हैं। लेकिन, हिन्दुओं का इतिहास ही किसी पर आक्रमण करने का नहीं रहा है, इसलिए उन्हें ‘फॉल्ट लाइन्स’ समझ में भी नहीं आती। इसे थोड़ा अच्छे समझना है तो जाति के उदाहरण के बाद ओवैसी का ये पुराना एक्स पोस्ट (तब ट्वीट) देख लीजिए।
Ahmadiyyas find place as Islam sect in census Qadiyanis r NOT Muslims accepted Sunnis Shias https://t.co/KxTgMtdyfC pic.twitter.com/sotGRiDhJq
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) August 4, 2016
पाकिस्तान के बनने का आन्दोलन देखेंगे तो नजर आएगा कि उसे चलाने के लिए धन बल सबसे ज्यादा अहमदिया समुदाय के लोग ही देते रहे। मिर्जा गुलाम अहमद (1835-1908) ने इस अहमदिया जमात की शुरुआत की थी और उसके नाम पर ही समुदाय को अहमदिया बुलाया जाता है। मुहम्मद जफ़रुल्ला खान, जिसने 1940 का लाहौर रेसोल्यूशन लिखा था, वो अहमदिया ही था। जफरुल्ला खान बाद में पाकिस्तान का विदेश मंत्री भी बना था लेकिन अहमदिया होने की वजह से उससे बाद में जबरन इस्तीफा लिखवा लिया गया।
बशीरुद्दीन महमूद अहमद जो अहमदियों का खलीफा था, वो भी पाकिस्तान का बड़ा समर्थक था और 1946 के चुनावों में उसने अहमदियों को मुस्लिम लीग की मदद करने और उन्हें वोट देने का आहवान भी किया था। मिर्जा महमूद ने 1947-48 में फुरकान फ़ोर्स बनाकर कश्मीर को भारत से तोड़ने की कोशिशों में भी अहम भूमिका निभाई। मुहम्मद इकबाल के परिवार के लिए भी माना जाता है कि उसके अब्बू-अम्मी और बड़ा भाई वगैरह आखरी वक्त तक अहमदिया रहे। अभी अहमदियों की जो पाकिस्तान या और जगहों पर दशा है, वो एक ‘फॉल्ट लाइन’ है, लेकिन आक्रमण का कोई अभ्यास न होने के कारण हमलावरों पर इस ‘फॉल्ट लाइन’ का कोई प्रयोग ही नहीं होता।
बिलकुल ऐसा ही मामला सूफियों का भी है। जब प्रधानमंत्री मोदी एक सूफी आयोजन में जाने की बात करते हैं तो क्या होता है? आपने गौर किया होगा कि सूफियों ने क्या क्या कारनामे किये हैं, उनकी सोशल मीडिया पर धज्जियां उड़नी शुरू हो चुकी हैं। अब लोग अमीर खुसरो तक की करतूतों पर चर्चा कर रहे हैं। कई पुस्तकों में इस बात का जिक्र मिलता है कि खुसरो हिन्दुओं को कुफ्र का खलीफा (फरैनात अल-कुफ्र) मानता था। वो हिन्दुओं को ‘हुनुद-ए-बुतपरस्त’ बुलाता था और कहता था कि हिन्दुओं का जीवन जीने का तरीका ही गलत है। पीटर हार्डी के लिखे में इसका जिक्र आता है।
ऐसे ही इलियट और डावसन की मुहम्मडेन काल पर, उसी काल के इतिहासकारों द्वारा लिखे में जो जिक्र है उसकी चर्चा भी होने लगी है। उसमें भी खुसरो के लिखे मुताबिक कहा गया है कि अगर पैसे (जजिया) के बदले जान बख्श देने का कानून न होता तो हिन्दुओं का नाम ही इस धरती से मिटा दिया गया होता। ‘छाप तिलक सब छीनी’ वाले गाने में तो साफ़ ही सुनाई देता है कि किससे क्या छीन लेने की बात हो रही है। खुसरो इस धरती को तलवार के पानी (रक्त) से सींचकर कुफ्र को मिटाने की वकालत करता था। इस सब के बारे में न जानने के कारण कई मासूम उसकी वकालत करते आज भी मिल जायेंगे।
मगर बात केवल प्रधानमंत्री के सूफी आयोजन में जाने से इन सबके जिक्र पर ही नहीं रूकती। सूफी भी असल में एक फॉल्ट लाइन है। इसके लिए हमें औरंगजेब के दौर में चलना होगा। अपने मुल्लों के भड़काने पर औरंगजेब सरमद के पास गया था जो नंगा ही पड़ा रहता था। मुल्लों ने कहा था कि ये हिन्दुओं की तरह कुफ्र करता रहता है और कहते हैं कि औरंगजेब ने जब उसका कम्बल उठाकर उसे ओढ़ा देने की कोशिश की तो कम्बल के नीचे से उसके दारा शिकोह आदि भाइयों के कटे सर निकल आये थे। औरंगजेब ने सूफी सरमद का सर काट लिया था।
अभी भी जामा मस्जिद के पास सरमद और उसके रूहानी आका हरे-भरे शाह की ढकी-छुपी सी मजारें हैं। यानी सूफियों के तौर तरीके भी एक बड़ी फॉल्ट लाइन होते हैं। उनका नाच-गाना और वाद्य यंत्र बजाना समुदाय विशेष के कई लोगों को पसंद नहीं।
अजमेर की दरगाह वाले चिश्तियों के साथ ही अजमेर बलात्कार काण्ड जुड़ा हुआ है जो छवि को चोट पहुंचा सकता है। अंग्रेजी की कहावत वाला ‘ओफ्फेंस इज द बेस्ट डिफेन्स’ आखिर कभी तो सीखना होगा। बार-बार के हमले करीब 1200-1300 वर्षों से झेल रहे हिन्दुओं को अब शत्रु की फॉल्ट लाइन्स पहचानना और उस पर प्रहार करना भी सीखना पड़ेगा। फॉल्ट लाइन जब दिखा दी जाती है तो सिर्फ छाती पीटने के बदले उन्हें याद रखना और उनपर चोट करते रहना भी याद रखिये।