कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने बजट के नाम पर एक बार फिर मुस्लिम तुष्टिकरण की हदें पार कर दी हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा पेश किया गया यह बजट विकास से ज्यादा एक समुदाय विशेष को खुश करने की योजना नजर आता है। 4700 करोड़ रुपये मुस्लिमों के लिए विशेष रूप से आवंटित, सरकारी ठेकों में 4% आरक्षण, मस्जिदों के इमामों को ₹6000 मासिक भत्ता, वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए 150 करोड़ का बजट—यह सब दर्शाता है कि कांग्रेस सरकार राज्य के समग्र विकास के बजाय वोट बैंक की राजनीति को तवज्जो दे रही है।
बीजेपी ने इस बजट को ‘हलाल बजट’ करार देते हुए कांग्रेस को ‘तुष्टिकरण का पोस्टर बॉय’ बताया है। यह सिर्फ एक वित्तीय निर्णय नहीं, बल्कि राजनीति के इस्लामीकरण की ओर बढ़ता एक गंभीर संकेत है। सवाल यह है कि क्या यह बजट कर्नाटक के हर नागरिक के लिए है या सिर्फ एक विशेष वर्ग को खुश करने की रणनीति? कांग्रेस की यह नीति सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश में तुष्टिकरण की राजनीति को संस्थागत करने की कोशिश है।
कर्नाटक बजट या औरंगजेब का फरमान!
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शुक्रवार को अपना 16वां बजट पेश किया, लेकिन यह बजट राज्य के विकास से ज्यादा मुस्लिम तुष्टिकरण का प्रतीक बनकर सामने आया। ₹4,09,549 करोड़ के बजट को लेकर कांग्रे स सरकार ने जहां अपनी पांच गारंटी योजनाओं को सही ठहराने की कोशिश की, वहीं बीजेपी ने इसे ‘औरंगजेब का बजट’, ‘हलाला बजट’ और ‘पाकिस्तान मॉडल’ करार दिया। बजट में एक खास समुदाय के लिए बड़े स्तर पर की गई वित्तीय घोषणाओं ने राज्य में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है।
बीजेपी सांसद कैप्टन बृजेश चौटा ने इस बजट को ‘अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का जीता-जागता उदाहरण’ बताते हुए कांग्रेस सरकार पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने सवाल उठाया कि जब सरकार अपनी गारंटी योजनाओं के लिए फंड जुटाने में संघर्ष कर रही है, तो आखिर इतनी बड़ी राशि एक विशेष वर्ग को खुश करने में क्यों झोंकी जा रही है? उन्होंने इसे कांग्रेस की वोट बैंक पॉलिटिक्स का खुला प्रमाण बताते हुए कहा कि राज्य के विकास की अनदेखी कर, तुष्टिकरण की नीति को प्राथमिकता दी गई है।
कर्नाटक बजट का पंचनामा
कांग्रेस सरकार ने कर्नाटक के विकास का बजट नहीं, बल्कि एक विशेष समुदाय को खुश करने का घोषणापत्र पेश किया है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने तुष्टिकरण की राजनीति में सारी सीमाएँ पार कर दी हैं, जिससे यह बजट विकास का नहीं, बल्कि वोट बैंक की गारंटी स्कीम बनकर रह गया है। बात करें बजट की तो-
➡️ ₹1000 करोड़ ‘अल्पसंख्यक विकास’ के नाम पर – खुला तुष्टिकरण!
जब राज्य सरकार किसानों, बेरोज़गारों और गरीबों के लिए पर्याप्त फंड नहीं जुटा पा रही, तब एक विशेष समुदाय के लिए 1000 करोड़ का पैकेज जारी कर दिया गया। क्या यह राज्य के हर नागरिक के लिए समान अवसरों का बजट है या तुष्टिकरण की राजनीति का एक और उदाहरण?
➡️ ₹150 करोड़ वक्फ संपत्तियों के लिए – मंदिरों को लूटा, वक्फ बोर्ड को सरकारी खजाना सौंपा!
जहाँ हिंदू मंदिरों से हर साल करोड़ों का दान सरकार वसूलती है, वहीं वक्फ बोर्ड को सीधे सरकारी खजाने से 150 करोड़ रुपए का फंड दिया गया। क्या हिंदू संस्थानों को भी ऐसा सहयोग मिलता है?
➡️ ₹100 करोड़ उर्दू स्कूलों के लिए – भारतीय शिक्षा को नज़रअंदाज़ कर इस्लामी शिक्षा को बढ़ावा!
संस्कृत और भारतीय संस्कृति से जुड़े विषयों को नज़रअंदाज़ कर उर्दू शिक्षा के लिए 100 करोड़ की व्यवस्था की गई। क्या कांग्रेस को भारतीय संस्कृति से ज़्यादा उर्दू भाषा के प्रचार की चिंता है?
➡️ मौलवियों के लिए ₹6000 प्रति माह मानदेय – हिंदू पुजारियों के लिए कुछ नहीं!
इमामों को हर महीने ₹6000 का भत्ता मिलेगा, लेकिन हिंदू मंदिरों में सेवा देने वाले पुजारियों के लिए कुछ भी नहीं। यह कौन-सा धर्मनिरपेक्षता का मॉडल है?
➡️ कैटेगरी-II B में मुसलमानों के लिए 4% ठेका आरक्षण – धर्म के आधार पर आरक्षण असंवैधानिक!
संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है, फिर भी सरकारी ठेकों में 4% कोटा सिर्फ मुस्लिमों को दिया गया। क्या यह नीति संविधान के खिलाफ नहीं है?
➡️ मुस्लिम शादियों के लिए ₹50,000 – गरीब हिंदू बेटियों की शादी के लिए कुछ नहीं?
जब हिंदू परिवारों को अपनी बेटियों की शादी में आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, तब सरकार सिर्फ मुस्लिम शादियों के लिए ₹50,000 की आर्थिक सहायता दे रही है। क्या यह समानता की नीति है?
➡️ मुस्लिम सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए ₹50 लाख – हिंदू संस्कृति को कोई सहयोग नहीं!
सरकार ने मुस्लिम सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए 50 लाख रुपए आवंटित किए, लेकिन हिंदू धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजनों के लिए कोई विशेष सहायता नहीं दी गई। क्या यह धर्मनिरपेक्षता है या पक्षपात?
➡️ मुस्लिम बहुल इलाकों में नए ITI कॉलेज – ‘मुस्लिम इलाके’ का क्या मतलब?
यदि ITI कॉलेज खोले जाने हैं, तो सभी समुदायों के छात्रों के लिए होने चाहिए, लेकिन यहाँ तो सरकार सिर्फ मुस्लिम इलाकों में ही नए ITI कॉलेज खोलने की योजना बना रही है। क्या यह धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं?
➡️ KEA के तहत मुस्लिम छात्रों को 50% फीस छूट – हिंदू छात्रों के लिए कोई सुविधा क्यों नहीं?
KEA परीक्षा में मुस्लिम छात्रों को 50% फीस में छूट दी जाएगी, लेकिन हिंदू छात्रों के लिए ऐसी कोई योजना नहीं है। क्या कांग्रेस सरकार शिक्षा को भी धार्मिक आधार पर बाँट रही है?
➡️ उल्लाल में मुस्लिम लड़कियों के लिए आवासीय PU कॉलेज – हिंदू लड़कियों के लिए कोई योजना क्यों नहीं?
मुस्लिम लड़कियों के लिए आवासीय PU कॉलेज बनाया जाएगा, लेकिन हिंदू लड़कियों के लिए ऐसी कोई योजना सरकार के एजेंडे में नहीं है। क्या यह तुष्टिकरण की नीति नहीं?
➡️ बेंगलुरु में हज भवन का विस्तार – क्या कर्नाटक में मक्का-मदीना है?
हज भवन के विस्तार के लिए सरकार खुलकर फंड जारी कर रही है, लेकिन हिंदू धार्मिक स्थलों और यात्राओं के लिए किसी प्रकार की सहायता नहीं दी गई।
➡️ सिर्फ मुस्लिम लड़कियों के लिए आत्मरक्षा प्रशिक्षण – हिंदू लड़कियों की सुरक्षा का क्या?
जब लव जिहाद और महिलाओं पर हो रहे हमलों के मामले बढ़ रहे हैं, तब सिर्फ मुस्लिम लड़कियों को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण देने की योजना बनाई गई है। क्या हिंदू लड़कियों की सुरक्षा सरकार की प्राथमिकता नहीं?
यह बजट साफ़ तौर पर दिखाता है कि कांग्रेस की प्राथमिकता विकास नहीं, बल्कि तुष्टिकरण की राजनीति है। धर्म के आधार पर योजनाएँ बनाकर कांग्रेस ने राजनीतिक इस्लामीकरण की ओर एक और कदम बढ़ा दिया है। अगर यही चलता रहा, तो कर्नाटक अपनी मूल पहचान खो देगा और कांग्रेस की वोट बैंक पॉलिटिक्स राज्य को पूरी तरह बर्बाद कर देगी।