संसद के जारी बजट सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली NDA की सरकार वक्फ बोर्ड की असीमित अधिकारों पर कैंची चलाने के लिए एक कानून की तैयारी कर रही है। इसे वक्फ संशोधन विधेयक के नाम से जाना जा रहा है, जिसका मुस्लिम संगठन से लेकर मुस्लिम नेता तक विरोध कर रहे हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और जमीयत उलेमा-ए-हिंद (JUeH) से लेकर असदुद्दीन ओवैसी तक इस बिल का विरोध कर रहे हैं और मुस्लिमों में यह भ्रांति फैलाकर उन्हें उकसा रहे हैं कि सरकार इस बिल के जरिए उनकी मस्जिदों और उनकी संपत्तियों पर कब्जा कर लेगी। अफवाह उड़ाने का काम सिर्फ ये इस्लामी संगठन एवं नेता ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि भारत विरोधी तत्व इसे मौके को देखकर सोशल मीडिया के माध्यम से देश में एक बार फिर से तनाव फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।
हमने अपने पिछले आलेख में बताया था कि किस तरह फिर से शाहीन बाग रचने की कोशिश हो रही है। इसके अलावा, एक अन्य लेख में बताया था कि जिस वक्फ बिल को लेकर सारा विवाद किया जा रहा है, वह वक्फ आखिर है क्या? मुगल काल से लेकर अंग्रेजों के शासन काल तक उस वक्फ की क्या अहमियत थी। आजादी के बाद पंडित नेहरू की सरकार ने वक्फ बोर्ड को कैसे कानूनी जामा पहनाया और पहले नरसिंह राव वाली कांग्रेस सरकार एवं बाद में UPA सरकार ने कानून के जरिए वक्फ बोर्ड को समानांतर सरकार चलाने की इजाजत दे दी। इस तरह वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को बिना किसी कागजात के अपनी या वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है। इस निर्णय के खिलाफ कोई कोर्ट भी नहीं जा सकता और सरकार भी चाह कर कुछ नहीं कर सकती। इसकी वजह से वक्फ बोर्ड रोज नए-नए सरकारी जमीनों से लेकर हिंदुओं के पूरे गाँवों पर अपना दावा कर रहा है, इसके कारण यह कानून हिंदुओं से लेकर सरकार तक के लिए सिरदर्द बन गया है। इस आलेख में हम बात करेंगे कि केंद्र की मोदी सरकार ने वक्फ संशोधन कानून में इस सिरदर्द को दूर करने के लिए क्या-क्या बदलाव प्रस्तावित किए हैं।
वक्फ संशोधन विधेयक-2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय कैबिनेट ने पिछले साल अगस्त में मंज़ूरी दी। इसमें करीब 40 संशोधनों को मंज़ूरी दी गई, जिनमें मुख्य फोकस वक्फ बोर्ड द्वारा किसी भी संपत्ति को ‘वक्फ संपत्ति’ बनाने की शक्ति पर अंकुश लगाना है। इसके अलावा, वक्फ बोर्ड के संचालन में सरकार का प्रतिनिधित्व, उसकी पारदर्शिता, बोर्ड द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश, शक्तियों का विकेंन्द्रीकरण सहित कई उपाय किए गए हैं। जस्टिस सच्चर आयोग और के रहमान खान की अध्यक्षता वाली संसद की संयुक्त कमेटी (JPC) की कुछ सिफारिशों को भी मानते हुए नए संशोधन बिल में जगह दी गई है। इस बिल के जरिए केंद्रीय वक्फ परिषद (CWC) और वक्फ बोर्ड की संरचना में बदलाव को प्रस्तावित किया गया है, ताकि उनमें गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल किया जा सके। अब तक इसमें सिर्फ मुस्लिम सदस्य ही हो सकते हैं। ये सारे अधिकार कांग्रेस सरकार ने वक्फ बोर्ड को दिए हैं। आइए जानते हैं मोदी सरकार ने वक्फ संशोधन बिल-2024 में क्या महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं:-
वक्फ का गठन: प्रस्तावित वक्फ संशोधन विधेयक के तहत वक्फ के गठन की अनुमति है। इसमें (i) घोषणा, (ii) दीर्घकालिक उपयोग (उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ) के आधार पर मान्यता या (iii) उत्तराधिकार को समाप्त होने पर बंदोबस्ती (वक्फ-अलल-औलाद) शामिल है। विधेयक में कहा गया है कि केवल कम-से-कम पाँच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही संपत्ति वक्फ घोषित कर सकता है। उस व्यक्ति द्वारा घोषित की जा रही संपत्ति का मालिकाना हक भी उस व्यक्ति के पास होना चाहिए। विधेयक में संपत्तियों को केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए लंबे समय तक उपयोग के आधार पर वक्फ माने की जा सकता है। वक्फ-अलल-औलाद के परिणामस्वरूप महिला उत्तराधिकारियों सहित दानकर्ता के उत्तराधिकारी को विरासत के अधिकारों से वंचित नहीं किया जाएगा।
वक्फ का सर्वेक्षण: वक्फ घोषित की गई संपत्ति के सर्वे के लिए सर्वेक्षण आयुक्त की जगह संबंधित जिलाधिकारी (कलेक्टर) को नियुक्त किया गया। यानी प्रस्तावित कानून में वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण का अधिकार जिलाधिकारी के पास होगा।
सरकारी संपत्ति नहीं बनेगी वक्फ संपत्ति: सबसे बड़ा बदलाव सरकारी संपत्तियों को लेकर है। वक्फ संशोधन बिल में वक्फ के तौर पर घोषित या चिह्नित की गईं सरकारी संपत्तियाँ वक्फ नहीं रहेंगी। अगर अनिश्चिता की स्थिति रहेगी तो ऐसी स्थिति में इन संपत्तियों के स्वामित्व का निर्धारण संबंधित जिले के कलेक्टर द्वारा किया जाएगा। इसको लेकर कलेक्टर संबंधित राज्य सरकार को एक रिपोर्ट भेजेगा और राजस्व रिकॉर्ड को सरकारी संपत्ति के रूप में अपडेट करेगा।
केंद्रीय वक्फ परिषद (CWC): प्रस्तावित वक्फ बिल को अनुसार, सेंट्रल वक्फ काउंसिल (CWC) में नियुक्त सांसदों, पूर्व जजों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए मुस्लिम होने की अनिवार्यता को खत्म की गई है। इसमें कहा गया है कि इसके दो सदस्य गैर-मुस्लिम होने चाहिए। दरअसल, वर्तमान में लागू वक्फ कानून के तहत वक्फ के प्रभारी केंद्रीय मंत्री CWC के पदेन अध्यक्ष होते हैं। इसके सदस्यों में सांसद, राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित व्यक्ति, सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज और मुस्लिम कानून के विद्वान शामिल हैं। केंद्रीय मंत्री को छोड़कर CWC के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए और इनमें कम-से-कम दो महिलाएँ होनी चाहिए।
वक्फ बोर्ड की संरचना: वक्फ कानून के अनुसार, राज्य के वक्फ बोर्ड में संबंधित राज्य के मुस्लिम (i) सांसदों, (ii) विधायकों एवं विधान पार्षदों और (iii) बार काउंसिल के सदस्यों में से प्रत्येक से दो सदस्यों का निर्वाचन किया जाएगा। यानी कि इसके सारे सदस्य मुस्लिम ही हो सकते हैं। नए संशोधन बिल में संबंधित राज्य सरकारों को अधिकार दिया गया है कि वह ऊपर लिखित समूहों में से हर समूह के लिए एक व्यक्ति को बोर्ड के लिए नामित कर सकती है। राज्य सरकार द्वारा नामित व्यक्ति का मुस्लिम होना जरूरी नहीं है। बिल में आगे कहा गया है कि वक्फ बोर्ड में (i) दो गैर-मुस्लिम सदस्य और (ii) शिया, सुन्नी एवं मुस्लिमों के पिछड़े वर्गों में से कम-से-कम एक सदस्य जरूर होने चाहिए। बिल में यह भी प्रावधान है कि बोर्ड में कम-से-कम दो सदस्य महिलाएँ होनी चाहिए। इस तरह नए प्रस्तावित कानून में कुल 11 सदस्यों में से 7 सदस्य तक गैर-मुस्लिम हो सकते हैं।
वक्फ बोर्ड के CEO का मुस्लिम होना होना जरूरी नहीं: वक्फ कानून के तहत राज्य सरकारों को राज्य वक्फ बोर्ड में एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) की नियुक्ति करनी होती है। सीईओ राज्य सरकार का उपसचिव रैंक का मुस्लिम अधिकारी होता है। अगर उस रैंक पर कोई मुस्लिम अधिकारी ना हो तो उसी रैंक के एक मुस्लिम अधिकारी की नियुक्ति की जा सकती है। सीईओ को वक्फ बैनामे, वक्फ के उद्देश्य और मुस्लिम कानून का अनुपालन करते हुए काम करना होता है। वक्फ संशोधन बिल-2024 में CEO के मुस्लिम होने की बाध्यता को खत्म कर दिया गया है।
वक्फ ट्रिब्यूनल की संरचना: वक्फ कानून के तहत गठित ट्रिब्यूनल में निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) वर्ग-1 रैंक के जिला, सत्र या सिविल जज (अध्यक्ष), (ii) अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के बराबर का एक राज्य सरकार का अधिकारी और (ii) मुस्लिम कानून का एक विशेषज्ञ। प्रस्तावित बिल में ट्रिब्यूनल से मुस्लिम कानून के विशेषज्ञ को हटा दिया गया है। बिल में ट्रिब्यूनल में बदलाव करके निम्नलिखित को शामिल किया गया है: (i) अध्यक्ष के रूप में एक वर्तमान या पूर्व जिला न्यायालय जज और (ii) राज्य सरकार के संयुक्त सचिव रैंक का एक वर्तमान या पूर्व अधिकारी।
ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ अपील: नए प्रस्तावित कानून में वक्फ संपत्तियों के मामले में ट्रिब्यूनल के निर्णय को अंतिम नहीं माना जाएगा। ट्रिब्यूनल के निर्णय को हाई कोर्ट को चुनौती दी जा सकेगी। वक्फ ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ 90 दिनों यानी तीन महीने के भीतर हाई कोर्ट में अपील करना होगा। वर्तमान वक्फ कानून के तहत, ट्रिब्यूनल के निर्णय अंतिम होता है। इस निर्णय के खिलाफ न्यायालयों में अपील नहीं की जा सकती है। बोर्ड या पीड़ित पक्ष के आवेदन पर हाई कोर्ट अपनी मर्जी से भी विचार नहीं कर सकता है।
केंद्र सरकार की शक्तियाँ: वक्फ संशोधन विधेयक केंद्र सरकार को वक्फ से संबंधित निम्नलिखित के संबंध में नियम बनाने का अधिकार देता है: (i) पंजीकरण, (ii) वक्फ के खातों का प्रकाशन तथा (iii) वक्फ बोर्डों की कार्यवाही का प्रकाशन। विधेयक में केंद्र सरकार को सीएजी अथवा किसी भी नामित अधिकारी द्वारा इनका ऑडिट करवाने का अधिकार दिया गया है।
बोहरा और आगाखानी मुस्लिमों के लिए अलग वक्फ बोर्ड: वक्फ कानून सुन्नी और शिया मुस्लिम संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड स्थापित करने की अनुमति देता है, यदि शिया वक्फ राज्य में सभी वक्फ संपत्तियों अथवा वक्फ आय का 15 प्रतिशत से अधिक हिस्सा रखते हैं। वहीं, वक्फ संशोधन विधेयक में आगाखानी और बोहरा मुस्लिम संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड बनाने की भी अनुमति दी गई है।
प्रस्ताविक वक्फ संशोधन विधेयक के मुख्य बिंदु ऊपर दिए गए हैं। इनको लेकर मुस्लिम संगठनों से लेकर मुस्लिम नेताओं ने हंगामा करना शुरू कर दिया। इसके बाद सरकार ने इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास विचार के लिए भेज दिया। जेपीसी का गठन भाजपा सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता में की गई। इसके बाद जेपीसी ने वक्फ से संबंधित हर पक्ष से उस पर विचार माँगे और उनसे मुलाकात की। इनमें मुस्लिम विधायक, सांसद, मुस्लिम स्कॉलर, मजहबी नेता, आम लोग से लेकर विपक्षी दल और हिंदू एवं अन्य समुदाय के नेता भी शामिल थे। वहीं, इस मसले पर आम लोगों से भी राय माँगी गई थी। इसको लेकर लगभग 1.5 करोड़ लोगों से अपने राय भेजी। सारे पक्षों से मिलने और उनकी बातें सुनने के बाद 13 सदस्यीय जेपीसी ने कुल 44 संशोधनों पर चर्चा की और आखिर में एनडीए के सांसद के 14 सुझावों को मंजूरी दे दी गई। इसके आधार पर जेपीसी ने रिपोर्ट तैयार की और इस रिपोर्ट को फरवरी 2025 के पहले सप्ताह में संसद के दोनों सदनों में पेश किया। जिन 14 सुझावों को मंजूरी दी गई, वे निम्नलिखित हैं:-
गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना: राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में दो गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना अनिवार्य होगा। यह संख्या पदेन सदस्य (ex-officio) से अग होगा।
महिला सदस्य: वक्फ बोर्ड में महिला प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाएगा। यह लैंगिक को दूर करने के लिए किया गया है।
सत्यापन प्रक्रिया में सुधार: वक्फ संपत्तियों के दावों के लिए सत्यापन की प्रक्रिया अनिवार्य होगी। इससे कामकाज में पारदर्शिता बढ़ेगी और अवैध कब्जों को रोक लगेगी।
कलेक्टर की भूमिका में बढ़ोतरी: वक्फ संपत्तियों की देखरेख में जिला मजिस्ट्रेटों की भागीदारी बढ़ाई जाएगी।
वक्फ बोर्ड की शक्तियों में कमी: वक्फ बोर्ड की असीमित शक्तियों को सीमित करने के लिए कुछ प्रावधानों को हटाया जाएगा। इससे वे बिना जाँच के किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति नहीं घोषित कर सकेंगे।
वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण: वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण किया जाएगा। इससे इन संपत्तियों के रख-रखाव में सुधार होगा।
ऑडिट प्रणाली: वक्फ संपत्तियों की ऑडिट करने की प्रक्रिया में सुधार किए जाएँगे।
अवैध कब्जों की रोकथाम: अवैध रूप से कब्जा की गई वक्फ संपत्तियों को वापस लेने के लिए कानून में सुधार किए जाएँगे।
वक्फ बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति: राज्य सरकार वक्फ बोर्ड में सदस्यों को नामित करेंगे। इससे नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार होगा।
वक्फ ट्रिब्यूनल की शक्तियों में वृद्धि: वक्फ ट्रिब्यूनल की शक्तियों को बढ़ाया जाएगा, ताकि वक्फ से संबंधित विवादों को जल्दी निपटाया जा सके।
वक्फ संपत्तियों के गैर-कानूनी बिक्री/ट्रांसफर पर कार्रवाई: वक्फ संपत्तियों के अनधिकृत हस्तांतरण के लिए सजा का प्रावधान होगा।
इसके अलावा वक्फ बोर्ड में CEO की नियुक्ति, वक्फ संपत्तियों के कंप्यूटरीकरण और वक्फ बोर्ड की संरचना में बदलाव के सुझाव को मंजूरी दी गई है।
अपने अगले आलेख में वक्फ बोर्ड द्वारा दावे किए गए उन बड़े मामलों को एक-एक करके बताएँगे, जिनको लेकर पूरे देश भर में बवाल हुआ और वक्फ बोर्ड की असीमित शक्तियों को नियंत्रित करने की माँग उठी।