नई दिल्ली: कांग्रेस को हरियाणा विधानसभा चुनाव दोनों में करारी हार का सामना करना पड़ा था। इस हार के बाद पार्टी नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हुआ था। सीधे शब्दों में कहें तो कांग्रेस में हार की जिम्मेदारी लेने वालों की कमी थी लेकिन ठीकरा फोड़ने वाले कई लोग थे। कांग्रेस में हार की जिम्मेदारी लेने वालों की कमी थी, उसी तरह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कमी भी दिखाई दी। इसके चलते 6 माह बीत जाने के बाद भी पार्टी राज्य में नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति नहीं कर पाई है। इसके चलते कई महत्वपूर्ण नियुक्तियां रुकी हुई हैं। ऐसे में नायब सैनी सरकार कानूनी रास्ता तलाश रही है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने गत सप्ताह मीडिया से बात करते हुए कहा था, “हम महाधिवक्ता से कानूनी राय लेने जा रहे हैं, ताकि यह देखा जा सके कि विपक्ष के नेता की अनुपस्थिति के कारण रुकी हुई नियुक्तियों को हम किस प्रकार आगे बढ़ा सकते हैं।”
वहीं अब, हरियाणा भाजपा के प्रमुख मोहन लाल बडोली ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा है, “यह कांग्रेस को तय करना है कि वे किसे अपना नेता प्रतिपक्ष नियुक्त करना चाहती है। लेकिन, सरकार को नियुक्तियां करनी होंगी। ऐसे में कानूनी तौर पर जो भी किया जा सकता है, सरकार करेगी।”
दरअसल, हरियाणा कांग्रेस लोकसभा चुनाव के दौरान से ही गुटबाजी से जूझ रही है। इसके चलते ही विधायक दल की बैठक नहीं हो पा रही है और नेता प्रतिपक्ष चुनने में देरी हो रही है। साथ ही सूत्रों को कहना है कि नेता प्रतिपक्ष का चयन करने में कांग्रेस को अभी कुछ और हफ्तों का समय लग सकता है।
इस मामले में रोहतक से कांग्रेस विधायक बी.बी. बत्रा ने कहा है, “कांग्रेस जल्द ही विपक्ष के नेता के नाम की घोषणा करेगी। केवल सीमित नियुक्तियों के लिए ही चयन समितियों में विपक्ष के नेता की जरूरत होती है। सरकार चाहे तो विपक्ष के किसी वरिष्ठ नेता को शामिल कर चयन समिति की बैठक बुला सकती है।”
नेता प्रतिपक्ष अनुपस्थिति से प्रशासनिक रुकावट
हरियाणा में साल 2024 में विधानसभा चुनाव हुए थे। इसमें बीजेपी ने 90 में से 48 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सरकार बनाई थी। मार्च 2024 से मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने इस जीत को अपने नेतृत्व और सभी वर्गों के समर्थन का नतीजा बताया था। हालांकि विपक्ष के नेता की नियुक्ति में देरी के कारण सरकार को प्रशासनिक कार्यों में बाधा का सामना करना पड़ रहा है।
हरियाणा में मुख्यमंत्री, एक मंत्री और विपक्ष का नेता मुख्य सूचना आयुक्त व 10 सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए चयन समिति का हिस्सा होते हैं। वर्तमान में राज्य सूचना आयोग केवल तीन सदस्य हैं-जगबीर सिंह, प्रदीप कुमार शेखावत और कुलबीर छिकारा। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत 7200 से अधिक अपीलें और शिकायतें लंबित हैं। सूत्रों के मुताबिक, चयन समिति की बैठक होने पर पूर्व मुख्य सचिव टी वी एस एन प्रसाद मुख्य सूचना आयुक्त के पद के लिए प्रमुख दावेदार हैं।
झारखंड का उदाहरण
हरियाणा की स्थिति झारखंड की हालिया घटना से मिलती-जुलती है। झारखंड में बीजेपी ने चार महीने तक विपक्ष के नेता का चयन नहीं किया था, जिसके बाद जेएमएम-नीत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। कोर्ट ने 5 जनवरी को बीजेपी को दो सप्ताह में नेता प्रतिपक्ष नियुक्त करने का आदेश दिया था। मार्च में बाबूलाल मरांडी को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। यह मामला भी सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों में देरी से जुड़ा था।