Delhi High Court On Number Of Ministers: दिल्ली सरकार में मंत्रियों की संख्या 7 से बढ़ाने को लेकर दायर याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने गंभीरता से विचार करने की बात कही है। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 28 जुलाई की तारीख दी है। यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है। कोर्ट ने इसी कारण मामले को सुनवाई के लायक माना है।
याचिका आकाश गोयल नामक व्यक्ति ने दायर की है। इसमें कहा गया है कि दिल्ली सरकार के पास 38 मंत्रालयों के लिए केवल 7 मंत्री है। जबकि, विधानसभा (Delhi Assembly) में 70 विधायक हैं। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह किसी भी राज्य में मंत्रियों की सबसे कम संख्या है। गोवा और सिक्किम जैसे छोटे राज्यों में भी 12 मंत्री हैं। जबकि, यहां विधायकों की संख्या 40 और 32 सदस्य है।
उनसठवे संशोधन की बात
याचिका में संविधान के अनुच्छेद 239AA और संविधान (उनसठवां संशोधन) अधिनियम, 1991 की धारा 2(4) की संवैधानिक वैधता की बात की गई है। ये संशोधन दिल्ली में मंत्रिपरिषद (Delhi Ministers) को विधानसभा के कुल सदस्यों के 10% तक सीमित करती है। याचिकाकर्ता ने कहा कि यह भेदभावपूर्ण और भारतीय संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है। इससे संघवाद, लोकतांत्रिक शासन और प्रशासनिक दक्षता के सिद्धांत कमजोर होता है।
कोर्ट की टिप्पणी
मामले का सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि चुनौती संघवाद के सिद्धांत पर नहीं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 (भेदभाव) पर आधारित है। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि अनुच्छेद-14 के तहत इस चुनौती की न्यायिक जांच में कितनी संभावना है, यह देखना होगा। जज ने कहा कि इसे दिल्ली के विशेष संवैधानिक दर्जे को ध्यान में रखते हुए देखना होगा।
मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय ने कहा कि दिल्ली की संवैधानिक योजना अन्य राज्यों से अलग है। यहां केंद्र और राज्य सरकार के बीच शक्तियों का विभाजन है। उन्होंने सवाल उठाया कि दिल्ली की इस विशिष्ट स्थिति को देखते हुए इसकी तुलना अन्य राज्यों से कैसे की जा सकती है। मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता के वकील को सुना और मामले को आगे की बहस के लिए 28 जुलाई की तारीख दे दी।
क्यों बढ़ाना चाहते हैं मंत्रियों की संख्या?
जनहित याचिका में कहा गया है कि मंत्रियों की अपर्याप्त संख्या के कारण प्रशासनिक समस्याएं आती हैं। मौजूदा मंत्रियों पर अत्यधिक बोझ पड़ रहा है। मंत्रियों की कम संख्या के कारण दिल्ली जैसे बड़े और घनी आबादी वाले क्षेत्र का प्रभावी प्रबंधन मुश्किल हो रहा है। अन्य राज्यों में मंत्रिपरिषद का अधिक प्रतिनिधित्व है। वहीं दिल्ली में विधानसभा और निर्वाचित सरकार होने के बाद भी उसे समान कार्यकारी अधिकार नहीं दिए गए हैं। इसके शासन और स्वायत्तता में बाधा आ रही है।
याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 164(1ए) का हवाला देते कोर्ट से अपील की कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार को मंत्रियों संख्या बढ़ाकर अन्य राज्यों के बराबर माना जाए। उनका तर्क है कि प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने, निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने और दिल्ली के लोगों के लिए लोकतंत्र, संघवाद और सुशासन के मूल सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है।
इन दो अनुच्छेद में फंसा है पेंच
- अनुच्छेद 164(1A): इसमें कहा गया है कि राज्यों में मंत्रियों की संख्या 15% तक हो सकती है।
- अनुच्छेद 239AA: दिल्ली में मंत्रिपरिषद को विधानसभा के कुल सदस्यों के 10% करता है।
- अनुच्छेद 14: समानता और न्याय सुनिश्चित करता है। यह किसे के साथ भी भेदभाव को रेकता है।
अब सभी की नजरें 28 जुलाई की सुनवाई पर टिकी हैं। इस दिन कोर्ट तय करेगा कि क्या दिल्ली के मंत्री कोटे पर फिर से विचार करने की जरूरत है। यदि कोर्ट इस दिशा में कोई निर्देश देता है तो यह दिल्ली की शासन प्रणाली के लिए बड़ा बदलाव साबित हो सकता है। इस मामले में कोर्ट का फैसला न केवल दिल्ली की राजनीतिक संरचना को प्रभावित करेगा। बल्कि, यह संविधान की मूलभूत धाराओं के व्याख्या के लिए नजीर भी बन सकता है।