बीते 8 और 9 अप्रैल को गुजरात में कांग्रेस का दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ। ऐसे अधिवेशनों में पार्टी की भावी रणनीति और मौजूदा चुनौतियों को लेकर चर्चा होती है। हालांकि, इस अधिवेशन से कुछ खास निकलने या निर्णयों के ज़मीन पर उतरने की उम्मीद तो खुद कांग्रेसियों को भी नहीं थी। राहुल गांधी के बौद्धिक गुरु सैम पित्रोदा पहले ही कांग्रेस के अधिवेशनों को लेकर सवाल उठा चुके थे। गुजरात का अधिवेशन भी कांग्रेस के लिए चुनौतियों का नया सबब बन गया है और इसके पीछे है कांग्रेस नेताओं की ‘व्यक्ति पूजा’ वाली मानसिकता। इस अधिवेशन का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ जिसमें राहुल गांधी और सोनिया गांधी खुद तो सोफे पर बैठे नज़र आए लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बैठने के लिए अलग से कुर्सी लगाई गई। इसकी वजह जो भी रही हो लेकिन कांग्रेस ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया। अब ऐसा ही एक और वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में राहुल गांधी और सोनिया गांधी को मंच से नारे लगाकर ‘हिंदुस्तान’ बताया जा रहा है।
गुजरात में कांग्रेस की हालत बदतर है, गांधी की धरती पर पार्टी चुनाव जीतने के लिए दशकों से इंतज़ार कर रही है। इस मंथन से पार्टी को अमृत मिलने की उम्मीद थी लेकिन मिला क्या, मिला एक मंत्र, वो ये कि ‘राहुल गांधी ही हिंदुस्तान हैं और सोनिया गांधी ही हिंदुस्तान हैं’। यह मंत्र को अधिवेशन के दांए-बांए किसी नेता ने नहीं दे दिया बल्कि खुलेआम मंच पर यह नारा लगाया गया। जिसे नेताओं ने दोहराया भी। कांग्रेस के नेता जिस मंच से यह नारा लगा रहे थे और अन्य लोगों से लगवा रहे थे उस मंच पर सोनिया, राहुल और खरगे सब मौजूद थे लेकिन किसी ने भी उन्हें रोकने की ज़रूरत नहीं समझी। कांग्रेस के नेताओं की हिम्मत का आलम ऐसा है कि जिस वीडियो को लेकर लोग नदीम की आलोचना कर रहे थे वो उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से शेयर की है।
नदीम ने यह नारा तो लगा दिया, राहुल गांधी और सोनिया गांधी को हिंदुस्तान के बराबर भी बता दिया लेकिन उनकी पार्टी के नेता तो कहते हैं कि किसी के बाप का हिंदुस्तान नहीं है। कुछ दिन पहले ही कांग्रेस के नेता इमरान मसूद ने यह बयान दिया था। कांग्रेस के लिए नेताओं को देश के बराबर बता देना कोई नई बात भी नहीं है। इससे पहले भी ‘इंदिरा इज़ इंडिया, इंडिया इज़ इंदिरा’ नारा खूब सुर्खियों में रहा है। 1975 के आपातकाल के दौरान कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष देव कांत बरुआ ने यह नारा दिया था। कांग्रेस के नेताओं ने यह नारा लपक भी लिया और यह खूब चला। मगर 1977 के आम चुनाव में जनता ने इस नारे को ठुकरा दिया और इंदिरा गांधी की कुर्सी छिन गई। आपातकाल की ज्यादतियों और इस तरह की अतिशयोक्तिपूर्ण बयानबाज़ी से तंग आ चुकी जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया। यह एक सबक था कि नेताओं को देश से ऊपर दिखाने की कोशिश जनता को रास नहीं आती। लेकिन जो सबक सीख ले वो कांग्रेस कैसी?
अब गांधी की धरती से फिर कांग्रेस के नेताओं ने वही किया है। कांग्रेस पर किसी एक गुट, एक परिवार का ही वर्चस्व ना हो जाए शायद इसलिए महात्मा गांधी कांग्रेस के उस स्वरूप को खत्म करना चाहते थे। गांधी को जिसका डर था हुआ भी वहीं, स्वतंत्रता के बाद से ही कांग्रेस में नेहरू-गांधी परिवार का प्रभाव बढ़ता गया है। जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अब सोनिया व राहुल गांधी, यानी चार पीढ़ियों से यह परिवार ही पार्टी की धुरी बना हुआ है। गांधी के सपनों का भारत बनाने की बात करने वाली कांग्रेस और इसके नेता क्या आईने में खुद से आंखें मिला पाते होंगे? जो नेता राहुल गांधी को हिंदुस्तान बता रहा है वो महात्मा गांधी के सपनों का भारत बनाएगा? कांग्रेस, गांधी के कितने सपनों को पूरा करेगी ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन एक सपना तो राहुल गांधी खुद ही पूरा करने पर तुले हुए हैं।