Indian Constitution: तमिलनाडु गवर्नर Vs राज्य सरकार का मामला राष्ट्रपति तक पहुंच गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की एंट्री और चर्चा राष्ट्रपति के अधिकारों की हो गई। पूरे मामले में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का बयान आया जिसने देश में नई चर्चा को जन्म दे दिया। उनके बयान से संसद VS सुप्रीम कोर्ट के साथ अदालत के ही अधिकार क्षेत्र पर सवाल खड़े हो गए। उपराष्ट्रपति ने अनुच्छेद-142 को सुप्रीम कोर्ट की न्यूक्लियर मिसाइल बता दिया। इसके साथ ही उन्होंने अनुच्छेद-145(3) में संशोधन की बात कही है। जबकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश को लेकर अनुच्छेद-201 और अनुच्छेद-143 का हवाला दिया। तो आइये आसान भाषा में बताते हैं कि अधिकारों पर क्या कहता है भारत का संविधान (Constitution Of Indian)
तमिलनाडु गवर्नर Vs राज्य सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश दिया और इसमें गवर्नर के अधिकार सीमा तय कर दी। दो जजों की बेंच ने 10 बिलों को रोकना अवैध बताया। कहा गया कि राज्यपाल के पास ऐसा कोई वीटो पावर नहीं है। 11 अप्रैल को आदेश SC की वेबसाइट पर आया। इसमें राष्ट्रपति के पास भी पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो न होने की बात कही गई। इसके बाद गुरुवार को उप राष्ट्रपति का बयान आया। इसके बाद से जिक्र में आए अनुच्छेदों (Articals In Constitution Of Indian) के बारे में चर्चा हो रही है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-142 (Article 142 of the Indian Constitution)
उपराष्ट्रपति का बयान
सबसे पहले बात करते हैं अनुच्छेद-142 (Article-142) की जिसका जिक्र उपराष्ट्रपति ने किया है। 18 अप्रैल, गुरुवार को एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने कहा कि हमारे पास ऐसे जज हैं जो ‘सुपर संसद’ के रूप में काम कर रहे हैं। कोर्ट के एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिए गए हैं। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। ये न्यायपालिका के लिए चौबीसों घंटे रहता है।
अनुच्छेद-142। Article-142
संविधान के भाग 5 में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद, और सर्वोच्च न्यायालय से जुड़े प्रावधान किए गए हैं। इसी के अध्याय 4 में अनुच्छेद 124 से 147 तक उच्चतम न्यायालय की स्थापना, संरचना, गठन, न्यायाधीशों के कार्यकाल, वेतन और शक्तियों के बारे में बताया गया है। यही आता है अनुच्छेद-142 जिसमें सुप्रीम कोर्ट की शक्ति बताई गई है।
अनुच्छेद-142(1): अपने अधिकार का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट लंबित किसी विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आदेश दे सकता है। हालांकि, ये आदेश संसद के जरिए बनाए कानून के अनुसार लागू होगा। अगर संसद से कोई कानून नहीं बना है तो राष्ट्रपति तय करेंगे कि ये आदेश कैसे लागू होगा।
अनुच्छेद-142(2): आर्टिकल के दूसरे हिस्से में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट किसी को अपने सामने बुला सकता है। अगर उसे जरूरी लगा तो वह दस्तावेज की मांग भी कर सकता है। अगर कोर्ट के निर्देश या आदेश को कोई नहीं मानता है तो इसे अवमानना माना जाएगा। ऐसे में कोर्ट के पास दंड देने का भी अधिकार है।
अनुच्छेद 142 के प्रयोग
बाबरी मस्जिद–राम जन्मभूमि केस: 5 जजों की पीठ ने रामलला को जमीन देने के बाद मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन प्रदान करने का आदेश दिया था। जिसमें कोर्ट ने पूर्ण न्याय की बात कही थी।
बोफोर्स घोटाले केस: इस मामले में एक आरोपी को राहत दी गई थी। कोर्ट ने कहा था कि केस लंबा खिंच चुका है। ट्रायल में देरी के कारण उसके मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है।
सहारा-सेबी केस: सुप्रीम कोर्ट ने निवेशकों को पैसा वापस दिलाने के लिए सहारा की संपत्तियों को बेचने के आदेश दिए थे। इससे अंडरट्रायल निवेशकों को राहत मिलनी थी।
भोपाल गैस त्रासदी केस: भोपाल में हुए यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी केस में कोर्ट ने कई कंपनियों को राहत दी थी। हालांकि, बाद में ये आदेश भी काफी विवाद में रहा।
अयोध्या में शांति बनाने के आदेश: राम जन्मभूमि पर आए फैसले के बाद कोर्ट ने राज्य और केंद्र को आर्टिकल-142 का ही उपयोग करते हुए शांति और व्यवस्था सुनिश्चित करने का आदेश दिया था।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-145(3) [Article 145 (3) of the Indian Constitution]
उपराष्ट्रपति का बयान
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कोर्ट के आदेश और बेंच की संरचना पर सवाल उठाते हुए कहा कि अहम संवैधानिक मामलों पर 5 जजों के बेंच द्वारा फैसला होना होना चाहिए। जबकि, इस फैसले वाली बेंच में केवल दो जज ही शामिल थे। इसके लिए उन्होंने अनुच्छेद-145 का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 145(3) में संवैधानिक मुद्दों के लिए 5 जजों वाली बेंच तय की गई है। ये नियम उस समय बना था जब सुप्रीम कोर्ट में 8 जज थे। अब कोर्ट में 30 जज हैं। इस कारण इसमें अब संशोधन करने की जरूरत है।
अनुच्छेद 145 । Article 145
संविधान के भाग 5 के अध्याय 4 में ही अनुच्छेद 145 को शामिल किया गया है। इसमें कोर्ट की शक्ति, पीठ की संरचना और फैसला सुनाने की क्रिया के बारे में चर्चा की गई है और बहुमत पर बात की गई है। इस अनुच्छेद के 5 हिस्से हैं। इसके तीसरे हिस्से में संवैधानिक मामलों के लिए बेंच में जजों की संख्या के बारे में बात की गई है।
अनुच्छेद 145(3): ऐसे मामले जहां संविधान की व्याख्या अथवा परिभाषा की जरूरत होगी इसके लिए बेंच का गठन करना होगा। इस बेंच में जजों की संख्या कम से कम 5 होगी। इसी अनुच्छेद के पांचवे भाग में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय की इस बेंच द्वारा दिया गया निर्णय बहुमत की सहमति से होगा। हालांकि, कम संख्या अलग राय रखने वाले जजों के कारण फैसला रुकेगा नहीं। उनके बात का फैसले में जिक्र किया जाएगा।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-201 (Article 201 of the Indian Constitution)
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
तमिलनाडु गवर्नर Vs राज्य सरकार मामले में 11 अप्रैल की रात वेबसाइट पर फैसला अपलोड किया गया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला देते हुए राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की थी। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपालों की ओर से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति के पास पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो नहीं है। उन्हें 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा या राज्य को कारण बताना होगा। वहीं उनके फैसले की भी समीक्षा हो सकती है। राष्ट्रपति समय से फैसला नहीं करते हैं तो राज्य रिट याचिका लगा सकते हैं।
अनुच्छेद 201 । Article 201
संविधान के भाग 6 में 152 से 237 तक के अनुच्छेदों के बारे में बताया गया है। ये भाग ‘राज्य’ से संबंधित जहां राज्य सरकार के कामकाज की चर्चा के साथ राज्य स्तर पर राज्यपाल, मुख्यमंत्री, विधानमंडल और न्यायपालिका की शक्तियों की चर्चा की गई है। इसमें आता है अनुच्छेद 200 और 201, जिसमें राज्य के बिलों पर फैसले को लेकर चर्चा की गई है।
अनुच्छेद 200: विधेयक विधानसभा, विधान द्वारा पारित हो जाता है तो यह राज्यपाल के पास ज्यादा है। यहां से राज्यपाल अपने संदेश के साथ बिल को सदन के पास वापस भेज सकता है या संशोधन के लिए सिफारिश कर सकता है। हालांकि, उसके बाद भी अगर बिल दोहारा राज्यपाल के पास आता है तो राज्यपाल उसे नहीं रोकेगा। हालांकि, अनुच्छेद 200 में राज्यपाल बिल को सदन को सूचित कर राष्ट्रपति के विचार के लिए भेज सकते हैं।
अनुच्छेद 201: अगर आर्टिकल 200 के अंतर्गत राज्यपाल ने विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजा है तो राष्ट्रपति घोषित करेंगे की विधेयक पर अनुमति देते हैं कि नहीं। राष्ट्रपति चाहें तो उसे राज्यपाल के पास उसे पास करने के लिए भेज सकते हैं। या फिर आर्टिकल 200 के तहत सदन के पास दोबारा विचार के लिए भेजने को कह सकते हैं। इसके 6 माह के भीतर अगर सदन फिर से बिल को भेजता है तो राज्यपाल दोबारा से राष्ट्रपति के पास भेजेंगे। हालांकि, इन दोनों अनुच्छेद में राष्ट्रपति के लिए समय सीमा को लेकर कोई जिक्र नहीं किया गया है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-143 (Article 143 of the Indian Constitution)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर राष्ट्रपति राज्यपाल की ओर से आए किसी भी बिल पर विचार करते हैं। इसके बाद उन्हें वो संविधान संवत नहीं लगता या वो बिल को असंवैधानिक आधार पर वापस भेजते हैं तो उन्हें राष्ट्रपति को फैसला करने से पहले अनुच्छेद 143 के अनुसार सर्वोच्च अदालत से राय लेने चाहिए।
अनुच्छेद 143 । Article 143
इसमें उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति के बारे में बात की गई है। अनुच्छेद 143 के भाग एक में कहा गया है कि राष्ट्रपति को लगता है कि मामला विधि पर सवाल खड़े करने वाला लगता है या उसके पास होने से विधि पर सवाल उठने की आशंका है तो इसे महत्व के मामले में राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करनी चाहिए। कोर्ट मामले में विचार के बाद राष्ट्रपति को अपनी राय देगा।
भारत के संविधान (Constitution Of India) में देश के वर्तमान, भविष्य के लिए सभी बातों का जिक्र किया गया है। इसमें हर समस्या का हल भी बताया गया है। देश की किसी भी संस्था या व्यक्ति को इससे अलग नहीं रखा गया है। हालांकि, कई बार इसके व्याख्या की जरूरत पड़ती है। तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल के मामले में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। क्योंकि, इसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश में राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय की गई। इसके बाद उपराष्ट्रपति का इसपर बयान आया। अब देखना होगा कि आखिर इसपर क्या हल निकलता है।