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पहलगाम में ‘धर्म पूछकर की गई हत्या’, हिंदुओं को जातियों में बांटने वालों के लिए यह सबक है

Akash Sharma Nayan द्वारा Akash Sharma Nayan
23 April 2025
in चर्चित, मत, राजनीति
पहलगाम आतंकी

पहलगाम में धर्म पूछकर की गई हत्या

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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने लोगों से धर्म पूछ-पूछकर गोलियां मारी हैं। आतंकियों ने लोगों से ना तो उनकी जातियां पूछी और ना ही रंग और ना ही भाषा या बोली, अगर पूछा तो सिर्फ धर्म और फिर गोली बरसाकर हत्या कर दी। इस्लामी आतंकियों के इस जघन्य अपराध का बचाव करने के लिए ‘जम्हूरियत’ और ‘कश्मीरियत’ जैसे शब्दों का प्रयोग होना शुरू हो चुका है और आतंकी बनते नहीं बनाए जाते हैं…ऐसे राग भी अलापे जा रहे हैं। लेकिन जातिवाद के दम पर चुनाव जीतने और भाषा और क्षेत्र के नाम पर लोगों को लड़वाने वाले लोग आतंकियों का धर्म बताने से अब भी डर रहे हैं।

यह भी पढ़ें: ‘जब आतंकी कर रहे थे नरसंहार, तब स्थानीय पढ़ रहे थे कुरान की आयतें’: पीड़ितों ने सुनाई आपबीती

दरअसल, पहलगाम हिंसा के पीड़ितों ने साफ तौर पर कहा है कि आतंकी उनसे या मृतकों से इस्लामी आयतें या कलमा पढ़ने के लिए कह रहे थे। इसके अलावा यह भी सामने आया है कि कुछ आतंकी लोगों के कपड़े उतारकर यह देख रहे थे कि खतना हुआ है या नहीं, इसके बाद पहचान कर गोलियां मारी हैं। यह वही देश है, जहां जातिवाद के दम पर लोग चुनाव जीतकर सत्ता में आ जाते हैं और फिर कुर्सी बनी रहे, इसके लिए जातियों को आपस में लड़वाकर दंगे कराते हैं।

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यह वही भारत देश है जहां आए दिन जातिगत जनगणना कराए जाने की मांग होती है। उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक घूम-घूमकर लोगों को जातियों के नाम पर बरगलाने की कोशिशें की जाती हैं। इसके बाद भी जब लोग देश के नाम पर एकजुट होने की कोशिश करते हैं तो उन्हें अलग करने के लिए उनकी जातियां बताई जाती हैं, साथ ही नेताओं द्वारा दावा किया जाता है कि फलां जाति का भला उनके द्वारा ही किया जा सकता है। इसलिए उन्हें वोट दिया जाए।

इसके बाद भी जब आम जनता जातिवाद के चंगुल से निकलने की कोशिश करती है तो जातियों की श्रेष्ठता तय करने की कोशिश की जाती है। जातियों का गर्व करने के लिए कहा जाता है और इन सबसे भी जब कोई बच जाता है तो क्षेत्रवाद और भाषावाद के नाम पर लड़ाया जाता है। लोगों को उत्तर-दक्षिण या पूर्वोत्तर भारत का बताकर उनसे नफरत की जाती है।

महाराष्ट्र में मराठी न बोल पाने के चलते लंबे समय से प्रवासियों को अपमान और हिंसा का सामना करना पड़ता रहा है। यही हाल कर्नाटक-तमिलनाडु समेत अन्य राज्यों का है। जहां सत्ता में बैठे लोग ही भाषा के नाम पर लोगों को उकसाकर लड़ाना चाहते हैं। यहां तक कि हिंसक घटनाएं भी देखने को मिलती हैं। वास्तव में देखें तो इस देश में राष्ट्रवाद के नाम पर एकजुट होने को कलंकित करने की कोशिश की गई है।

राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए लोगों को क्षेत्रवाद में लड़ाने की जुगत में लड़े रहते हैं। यह वही देश है, जहां नदी के पानी के बंटवारे के लिए दो राज्यों के लोगों के बीच दंगे भड़क उठते हैं, लेकिन सियासी लोगों की सियासत जारी रहती है। कारण साफ है कि लोग सिर्फ अपना व्यक्तिगत या सियासी फायदा देखना पसंद करते हैं। इन सबसे ऊपर उठकर जिस दिन हर कोई खुद को भारत का नागरिक कहना शुरू कर देगा, उस दिन देश में एकता की अलग बयार बहेगी।

यादव-मुस्लिम वोट बैंक की धुरी पर चुनाव लड़ने वाले हों या फिर मुस्लिम लीग से गठबंधन कर अपनी साख बचाने की कोशिश में लगे लोग हों या फिर महज सियासी फायदे के लिए खुद को एक मजहब का रहनुमा बताने वाले लोग हों, सब देश के लोगों को बांटने की कोशिश में जुटे हुए दिखाई पड़ते हैं। वास्तव में देखें तो ‘थूक जिहाद’ की बढ़ती घटनाओं के चलते यदि कोई रेस्टोरेंट या ढाबे में खाने बनाने वाले का नाम पूछ ले या मालिक का ही नाम पूछ ले तो उसे सियासी धड़ा सांप्रदायिक करार देता है। लेकिन जब आतंकी धर्म पूछ-पूछकर निहत्थों और मासूमों का खून बहा रहे होते हैं तो सियासी दल धर्म बताना भूल जाते हैं।

ऐसे में एक बात तो स्पष्ट है कि हिंदुओं को अगर इस देश में सुरक्षित रहना है तो खुद को कुर्मी, कुशवाहा, यादव, ब्राह्मण, चमार, क्षत्रिय, बनिया, भूमिहार, तेली, गोंड, लुहार, सुनार, खटीक या किसी अन्य जाति का न समझकर हिंदू ही समझना होगा, इसमें ही हिंदुओं और इस देश की भलाई है। हिंदुओं की भलाई के साथ ही देश की भलाई का मतलब यह है कि जब देश का बहुसंख्यक वर्ग ही सुरक्षित नहीं होगा तो फिर देश कैसे सुरक्षित हो सकता है?

 

Tags: islamic terrorismJammu and Kashmirअपराधआतंकी हमलाइस्लामी आतंकवादक्राइमजम्मू-कश्मीर
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