Kerala Politics: भारत में वक्फ संशोधन बिल पास के बाद नया कानून बन गया है। अब इसी कानून के अनुसार, देश में वक्फ संपत्तियों का रखरखाव होगा। इसे लेकर तरह-तरह की चर्चाएं और बहस देश में छिड़ी हुई है। एक वर्ग इसे मुसलमानों के पक्ष में तो दूसरा इसे मुसलमानों के खिलाफ बता रहा है। हालांकि, ये सब बस बहस का हिस्सा है। एक दक्षिण भारत के राज्य केरल में एक तीसरा पक्ष जो अब अपनी आवाज बुलंद कर रहा है और भाजपा को आशा भरी निगाहों से देख रहा है। ये पक्ष है वहां का ईसाई समुदाय , जो लेफ्ट और कांग्रेस के बीच पिस रहा है। इस समुदाय को वक्फ कानून बनने के बाद भाजपा में उम्मीदें नजर आने लगी हैं और इसी वजह से अब ईसाई समुदाय के लोग BJP की सदस्यता भी ले रहे हैं।
माना जा रहा है कि केरल का ईसाई समुदाय अब लेफ्ट और कांग्रेस के अलावा भाजपा के विकल्प पर फोकस करने के मूड में है।
वक्फ बिल के बाद केरल में ईसाई समुदाय के ह्रदय में आया परिवर्तन।
आइये समझते हैं कि वक्फ कानून के सहारे केरल के ईसाईयों का राजनीतिक रुझान कैसे बदल रहा है और बीजेपी को इसका फायदा कैसे हो सकता है? और आखिर केरल में ये इतने परेशान क्यों हैं?
पहले जानें ईसाई समाज की समस्या?
आजादी के बाद से ही केरल में कांग्रेस और लेफ्ट की सरकार रही है। इन्होंने ईसाई समाज के वोट से सरकार तो बनाई पर कभी उनके लिए कुछ खास नहीं किया। लंबे समय से केरल में हिंदू ही नहीं, क्रिश्चियन समुदाय की लड़कियां लव जिहाद से पीड़ित हैं। मार्च 2025 में सायरो-मालाबार चर्च लव जिहाद से बेटियों को बचाने के लिए 24 साल तक हर हाल में उनकी शादी कराने की बात कही थी।
पिछले कुछ वर्षों से ईसाई लड़कियों को टारगेट कर लव जिहाद के मामले तेजी से बढ़े हैं। बीजेपी मालाबार के बीजेपी नेता पीसी जॉर्ज ने दावा किया है कि मीनाचिल तालुका में अकेले ‘लव जिहाद’ के कारण 400 लड़कियां गायब हो गई हैं। इतना ही नहीं उनकी बातों का समर्थन करते हुए चर्च ने भी मामले की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की है। चर्च ने कहा कि राज्य में कई इस तरह के मामले हैं जिनके सिरे से जांच होनी चाहिए।
जमीनों पर हो रहा कब्जा
केवल लव जिहाद ही नहीं लेफ्ट की सरकार में ईसाइयों की जमीन पर भी तेजी से कब्जा हो रहा है। वक्फ संशोधन विधेयक संसद में पेश होने के दौरान भी इस पर देश में चर्चा होती रही। कुछ साल पहले केरल के मुनंबम तट की 404 एकड़ जमीन पर वक्फ बोर्ड ने दावा ठोक दिया था। यहां कुल 600 ईसाई और हिंदू परिवार रहते हैं। इस मामले में केरल की पिनरई विजयन सरकार उनका साथ नहीं दिखा। ऐसे में हिंदुओं के साथ ईसाई समुदाय को भी ठेस पहुंची। यह केवल एक केस है। इस तरह के कई अन्य छोटे बड़े मामले प्रदेश में भारी संख्या में हैं।
बीजेपी में आशा की किरण (BJP In Kerala Politics)
लेफ्ट और कांग्रेस से परेशान क्रिश्चियन को भाजपा में आशा की किरण दिखाई दे रही है। उनके पुराने तमाम जख्मों के अलावा भी कांग्रेस के वक्फ को लेकर रुख ने भी उन्हें निराश किया है।वक्फ बिल का भी प्रदेश में ईसाई समुदाय ने भारी स्वागत किया था। इसके बाद से ही प्रदेश में ये भारी संख्या में भाजपा की सदस्यता ले रहे हैं। मुनंबम में एक साथ 50 लोगों के भाजपा की सदस्यता लेने की खबर ने कांग्रेस और लेफ्ट को हिला दिया है।
केरल में ईसाई धर्म का प्रभाव (Influence of Christianity in Kerala)
2011 का जनगणना के अनुसार, भारत में ईसाई धर्म को मानने वालों की संख्या 2.78 करोड़ यानी कुल जनसंख्या का 2.3% है। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों नागालैंड, मिजोरम और मेघालय के अलावा बड़े राज्यों में केरल और अरुणाचल ईसाइयों (Christians In Kerala) की अच्छी-खासी संख्या है। केरल की जनसंख्या की बात करें तो यहां ईसाइयों की संख्या 18 फीसदी है। ये एक बड़ा वोट बैंक है और इससे कई सीटें प्रभावित होती है।
भाजपा के लिए खास है केरल (History of BJP in Kerala Politics)
एक तरफ पूरे देश में जहां भारतीय जनता पार्टी विस्तार कर रही है। वहीं दक्षिण के कुछ राज्यों में ये गति काफी धीमी है। इन्हीं राज्यों में केरल शामिल है। ये भाजपा के प्राइम फोकस में से एक है। पिछले 30 साल में यहां पार्टी का वोट प्रतिशत भले बढ़ता गया है लेकिन अब तक महज एक विधायक और एक सांसद ही केरल से पार्टी को मिले हैं। ऐसे में भाजपा यहां बढ़े वोट बैंक को सीटों में तब्दील करने के लिए पूरी कोशिश कर रही है।
विधायक: 2016 विधानसभा चुनाव में नेमम सीट से चुने गए ओ. राजगोपाल
सांसद: 2024 लोकसभा चुनाव में तृश्शूर सीट से चुने गए सुरेश गोपी
लोकसभा और विधानसभा का प्रदर्शन
केरल में भारतीय जनता पार्टी ने केवल 2016 के चुनावों में एक सीट जीती थी। इसके पहले पार्टी का यहां खाता नहीं खुला था। 2016 के विधानसभा चुनावों में नेमम सीट को भाजपा के लिए ओ. राजगोपाल ने जीता था। हालांकि, इसके बाद हुए साल 2021 के चुनाव में यहां भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली। हालांकि, यहां भारतीय जनता पार्टी ने लगातार अपने वोट बैंक का विस्तार किया है। साल 1991 में पार्टी को यहां से महज 4.78 फीसदी वोट मिले थे। हालांकि, ये 2021 के विधानसभा चुनावों में 11.3 फीसदी हो गए।
वहीं लोकसभा चुनावों की बात करें तो भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में यहां एक सीट हासिल की है। तृश्शूर सीट से एक्टर सुरेश गोपी ने भाजपा के लिए जीत हासिल की और वो में बीजेपी को जीत दिलाने वाले पहले सांसद बन गए। इससे पहले पार्टी को यहां से एक भी सांसद नहीं मिला था। हालांकि, साल 1991 से लेकर 2024 कर वोट फीसदी तेजी से बढ़े हैं। 1991 में के चुनाव में भाजपा को केरल में महज 4 फीसदी वोट मिले थे। यह आंकड़ा 2024 में बढ़कर करीब 16.68 फीसदी पहुंच गया।
केरल की सियासत में होगी भाजपा की एंट्री (BJP In Kerala)
केरल में मुख्य रूप से दो गठबंधन काम करते हैं। इसमें पहला लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट है। इसे LDF भी कहा जाता है। इस गठबंधन में CPIM के साथ अन्य दल शामिल हैं। वहीं दूसरा गठबंधन यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट है। इसे UDF कहते हैं। इसमें कांग्रेस के साथ अन्य छोटे बड़े दल शामिल हैं। वहीं तीसरा गठबंधन NDA का है जिसमें भाजपा के साथ भारत धर्म जन सेना (BDJS) और अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्नाद्रमुक) शामिल हैं।
2021 के चुनावों में NDA को कुल 12.41 फीसदी वोट मिले थे। इसमें से अकेले भाजपा को 11 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे। इसके अलावा लोकसभा में लगातार भाजपा के वोट बढ़ रहे हैं। साल 2024 में भाजपा को 16 फीसदी वोट मिले हैं। ये विधानसभा के मुकाबले 5 फीसदी ज्यादा है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी कोशिश कर रही है कि वो इस मत प्रतिशत को सीटों में बदले और प्रदेश की सियासत में अहम मोड़ लाए।