भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई को आतंकी हमले से दहलाने की साजिश रचने वाला तहव्वुर राणा (Tahawwur Rana) भारत पहुंचा गया है। तहव्वुर को अमेरिका से प्रत्यर्पित कर भारत ला रहा विशेष विमान दिल्ली के पालम टेक्निकल एयरपोर्ट पर लैंड हो गया है। इसके बाद तहव्वुर को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के हेडक्वार्टर ले जाया जाएगा जहां सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किए गए हैं। NIA हेडक्वार्टर में तहव्वुर से पूछताछ के लिए एक सेल तैयार की गई है। इस सेल में जांच से जुड़े केवल 12 सदस्यों को ही जाने की अनुमति है, जिनमें एनआईए के डीजी सदानंद दाते, आईजी आशीष बत्रा, डीआईजी जया रॉय शामिल हैं। इसके अलावा अगर कोई और उस सेल में जाना चाहेगा तो उसे पहले अनुमति लेनी होगी।
आगे क्या होगा?
तहव्वुर को अमेरिका से NIA के अधिकारियों ने हिरासत में लिया है और भारत आने के बाद उसे औपचारिक तौर पर गिरफ्तार किया जाएगा। इसके बाद तहव्वुर को कोर्ट में पेश किए जाने से पहले उसका मेडिकल चेक-अप कराया जाएगा जिसके बाद उसे कोर्ट ले जाया जाएगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, तहव्वुर को सुरक्षा के चलते वर्चुअल माध्यम से भी कोर्ट में पेश किया जा सकता है। तहव्वुर को पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया जा सकता है जहां कोर्ट से राणा की कस्टडी की मांग की जाएगी। मामले की सुनवाई दिल्ली स्थित विशेष एनआईए अदालत में होगी और इस दौरान तहव्वुर को तिहाड़ जेल में रखा जाएगा। तिहाड़ में तहव्वुर की सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किए गए हैं और उसे विशेष कैदी का दर्जा दिया जाएगा। तहव्वुर को अपना पक्ष रखने के लिए कोर्ट की तरफ से वकील भी मुहैया कराया जाएगा।
पाकिस्तान ने बनाई तहव्वुर राणा से दूरी
कभी पाकिस्तान की सेना में रहे तहव्वुर राणा से अब पाकिस्तान दूरी बना रहा है। पाकिस्तान ने तहव्वुर को कनाडा का नागरिक बताया है। पाकिस्तान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शफकत अली खान ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि राणा ने पिछले दो दशकों से अपने पाकिस्तानी दस्तावेजों को रिन्यू नहीं कराया है और वह अब कनाडा की नागरिकता रखता है। हालांकि, यहां यह भी अहम है कि पाकिस्तान अपने उन नागरिकों को दोहरी नागरिकता की अनुमति देता है जो कनाडा जैसे देशों में जाकर बस गए हैं। माना जा रहा है कि पाकिस्तान का यह रुख इसलिए है क्योंकि तहव्वुर का संबंध पाकिस्तानी सेना से रहा है, और वह 2008 के मुंबई आतंकी हमले की साजिश में पाकिस्तान की प्रत्यक्ष भूमिका को उजागर कर सकता है।
किन शर्तों पर हुआ प्रत्यर्पण?
तहव्वुर राणा को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद भारत लाए जाने की अनुमति मिली थी। उसने अपने बचाव में अमेरिकी कोर्ट में कई याचिकाएं दायर कीं थी लेकिन इसका तहव्वुर को कोई फायदा नहीं मिला है। अमेरिका से तहव्वुर का प्रत्यर्पण कई शर्तों से बंधा हुआ है। 1997 के भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के तहत सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि तहव्वुर को भारत में केवल उसी अपराध के मुकदमा चलाया जा सकता है या दंडित किया जा सकता है जिसके लिए उनका प्रत्यर्पण हुआ है। अमेरिका की सहमति के बिना भारत तहव्वुर को किसी अन्य देश को नहीं सौंप सकेगा। साथ ही, मामले की सुनवाई के दौरान भारत को यह तय करना होगा कि तहव्वुर के साथ कोई पक्षपात ना हो और उनकी कानूनी प्रक्रिया पारदर्शी बनी रहे। यानी प्रत्यर्पण के नियमों में तहव्वुर को भी कई तरह के अधिकार दिए गए हैं।
कौन है तहव्वुर राणा?
तहव्वुर हुसैन राणा का जन्म 12 जनवरी, 1961 को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चिचावतनी में हुआ था। पढ़ाई के दौरान उसकी मुलाकात डेविड कोलमैन हेडली से हुई थी। हेडली न केवल तहव्वुर राणा का बचपन का दोस्त था बल्कि 26/11 आतंकी हमलों की साजिश रचने में भी शामिल रहा। राणा ने मेडिसिन की पढ़ाई करने के बाद पाकिस्तानी सेना में बतौर डॉक्टर काम करता था। करीब एक दशक तक सेना में काम करने के बाद 1990 के दशक में उसने नौकरी छोड़ दी और अपने परिवार के साथ पहले कनाडा और फिर अमेरिका चला गया।
इसके बाद साल 2001 में अपनी बीवी समराज राणा अख्तर के साथ जून 2001 में कनाडा की नागरिकता हासिल कर ली। चूंकि राणा और उसकी बीवी दोनों ही डॉक्टर थे, ऐसे में आसानी से नागरिकता मिल गई। हालांकि इसके बाद वह फिर से अमेरिका पहुंच गया और शिकागो में स्थायी रूप से रहने का फैसला किया। वहां उसने ‘फर्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज’ नामक एक इमिग्रेशन कंसल्टेंसी फर्म की स्थापना की। इस तरह उसने लोगों की नजर में खुद को एक बिजनेसमैन दिखाने की कोशिश की। लेकिन बिजनेस की आड़ में वह लगातार भारत विरोधी आतंकियों की फौज तैयार करता रहा।
यह सब वह अपने पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी दोस्त और आतंकी डेविड कोलमैन हेडली के साथ कर रहा था। हेडली ने जब मुंबई पर हमले की तैयारी शुरू की, तो वह 2006 से 2008 के बीच कई बार मुंबई आया था। यहां यह जानना भी अहम है कि तहव्वुर राणा पाकिस्तानी इस्लामी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का एक सक्रिय सदस्य था। उसने अपने सहयोगी डेविड कोलमैन हेडली, जिसे दाऊद गिलानी के नाम से भी जाना जाता है, को मुंबई हमले की तैयारी के लिए भारत में रेकी करने में मदद की थी।
राणा ने हेडली को पासपोर्ट प्राप्त करने में मदद की, ताकि वह भारत आ सके और हमले के लिए निशाने तय कर सके। बार-बार भारत आने में किसी को शक न हो, इसलिए राणा ने अपनी ट्रेवल एजेंसी की एक शाखा मुंबई में भी खोल दी थी। इस हमले की योजना लश्कर ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के सहयोग से बनाई थी। 26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई हमलों के बाद राणा ने मारे गए लोगों की संख्या पर खुशी जताई थी और कहा था कि इस हमले में शामिल आतंकियों को पाकिस्तान का सर्वोच्च सैन्य सम्मान दिया जाना चाहिए।
कैसे हुई गिरफ़्तारी?
मुंबई हमले के करीब 1 साल बाद, अक्टूबर 2009 में अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई (FBI) ने तहव्वुर राणा और डेविड कोलमैन हेडली को शिकागो से गिरफ्तार किया। उस समय दोनों डेनमार्क के ‘जिलैंड्स-पोस्टेन’ नामक अखबार पर हमले की योजना बना रहे थे। इस अखबार ने पैगंबर मोहम्मद के विवादास्पद कार्टून प्रकाशित किया था। गिरफ़्तारी के बाद हेडली ने जांच में सहयोग करने का फैसला किया और मुंबई हमले में अपनी भूमिका स्वीकार की। साथ ही उसने तहव्वुर राणा की संलिप्तता का भी खुलासा किया, जिसके बाद तहव्वुर राणा पर भी मुकदमा चलाया गया।
साल 2011 में अमेरिकी अदालत में राणा पर सुनवाई हुई। उसे लश्कर-ए-तैयबा को सहायता प्रदान करने और डेनमार्क में हमले की साजिश रचने का दोषी पाया गया। हालांकि कोर्ट उसे मुंबई हमले में प्रत्यक्ष संलिप्तता के आरोप से बरी कर दिया। जनवरी 2013 में, राणा को 14 साल की जेल की सजा सुनाई गई, जिसके बाद उसे पांच साल की निगरानी में रखने का आदेश दिया गया। हेडली को भी 35 साल की सजा मिली, लेकिन उसने अपनी सजा कम करने के लिए सरकारी गवाह बनने का फैसला किया।
राणा ने अपनी सजा पूरी करने के बाद भारत प्रत्यर्पण से बचने की कोशिश शुरू की। भारत सरकार ने जून 2020 में अमेरिका से राणा के प्रत्यर्पण की मांग की, जिसके बाद चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अब उसे भारत लाया जा रहा है।