वक्फ संशोधन बिल 2025 संसद के दोनों सदनों से पास होने और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंज़ूरी के बाद कानून बन गया है। केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने 8 अप्रैल से इस कानून को देशभर में लागू भी कर दिया है। इस कानून को लेकर मुस्लिम समाज दो धड़ों में बंट गया है। एक और जहां ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) जैसे कई संगठनों और नेताओं ने इस कानून के विरोध में प्रदर्शन का आह्वान किया है तो वहीं कई मुस्लिम संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता इस कानून को मुस्लिमों के लिए बेहतर बताकर इसका स्वागत कर रहे हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम वुमेन पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMWPLB) की अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर ने वक्फ संशोधन कानून का समर्थन किया है और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ भी की है।
पीएम मोदी की जमकर की तारीफ
शाइस्ता अम्बर ने कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम वुमेन पर्सनल लॉ बोर्ड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस विधेयक के लिए दिल से आभार व्यक्त करता है। शाइस्ता ने पुरानी सरकारों पर सवाल उठाते हुए कहा कि किसी भी सरकार ने आज तक मुस्लिम समाज के लिए सही काम नहीं किया और सभी सिर्फ वोट बैंक की राजनीति करते रहे। उन्होंने कहा कि यह बिल मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण को ध्यान में रखते हुए लाया गया है और आज यह एक कानूनी रूप ले चुका है। उन्होंने कहा कि सरकार ने संसद के दोनों सदनों में यह भरोसा दिलाया है कि जो वादे मुस्लिम समुदाय और देश की जनता से किए गए हैं उन्हें निभाया जाएगा। शाइस्ता ने उम्मीद जताई कि इस कानून से वक्फ की संपत्तियों की सुरक्षा बेहतर होगी और उसका सही उपयोग हो सकेगा। समाज के सबसे नाजुक वर्ग खासकर गरीब बच्चे, विधवा महिलाएं और ज़रूरतमंद लोगों को इससे आर्थिक मदद और सहारा मिलेगा।
शाइस्ता अम्बर ने और क्या कहा?
इस कानून को लेकर शाइस्ता ने आगे कहा कि वक्फ से जुड़े नए कानून से समाज को फायदा पहुंचेगा और खासकर मुस्लिम महिलाओं के लिए यह एक नई शुरुआत साबित हो सकती है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ कानूनी बदलाव नहीं, बल्कि महिलाओं को उनके अधिकार, गरिमा और सम्मान दिलाने की दिशा में एक अहम कदम है। शाइस्ता के मुताबिक, लंबे समय से यह मांग की जा रही थी कि वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद जैसी संस्थाओं में मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी हो लेकिन यह लड़ाई आसान नहीं थी। शाइस्ता ने बताया कि इस मुद्दे को पहले भी पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के सामने रखा जा चुका था। उन्होंने कहा, “हमारा साफ कहना है कि महिलाओं को इन संस्थाओं में सिर्फ नाम मात्र की सदस्यता नहीं दी जानी चाहिए, बल्कि उन्हें असली जिम्मेदारी और फैसला लेने का अधिकार मिलना चाहिए। वे पदाधिकारी बनें, नीतियां तय करें और असली बदलाव का हिस्सा बनें। यह कानून उसी दिशा में एक सकारात्मक शुरुआत है।”