आज संपूर्ण भारत भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जन्मोत्सव ‘रामनवमी’ के महापर्व को भव्यता और दिव्यता के साथ मना रहा है। यह केवल एक पर्व नहीं, बल्कि धर्म, मर्यादा और राष्ट्रीय चेतना का पुनर्जागरण है। जैसा कि आप जानते हैं, भगवान श्रीराम का नेतृत्व केवल धर्म की स्थापना तक सीमित नहीं था वह युग अपने आप में एक महान वैभवशाली सभ्यता और अत्याधुनिक इंजीनियरिंग का भीप्रतीक था। उसी युग की एक अमिट छाप है राम सेतु जो आज भी वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए एक रहस्य और प्रेरणा का विषय है। रामायण में वर्णित घटनाएँ और संरचनाएँ उस कालखंड की अद्वितीय तकनीकी क्षमता का जीवंत प्रमाण हैं।
यह तो इतिहास की गाथा थी… लेकिन आज का भारत भी भगवान् श्री राम के उन्हीं पदचिन्हों पर चलते हुए उसी तेज, उसी गौरव और तकनीकी श्रेष्ठता के मार्ग पर अग्रसर है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रामनवमी के शुभ अवसर पर 6 अप्रैल को तमिलनाडु के पवित्र रामेश्वरम धाम पहुँचेंगे, जहाँ वे भारत को एक और ऐतिहासिक उपलब्धि सौंपेंगे जो है अरब सागर पर बना एशिया का पहला वर्टिकल लिफ्ट स्पैन रेलवे ब्रिज, नया पम्बन ब्रिज(Pamban Rail Bridge)। 2.08 किलोमीटर लंबा यह इंजीनियरिंग चमत्कार रामेश्वरम (पम्बन द्वीप) को भारत की मुख्यभूमि (मंडपम, तमिलनाडु) से जोड़ता है। इसकी आधारशिला भी प्रधानमंत्री मोदी ने ही नवंबर 2019 में रखी थी। भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इसे डबल ट्रैक और हाई-स्पीड ट्रेनों के लिए डिजाइन किया गया है।
राम सेतु से लेकर पम्बन ब्रिज तक यह भारत की अखंड यात्रा है, जहां आस्था और विज्ञान एक साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हैं। आइये जानते हैं की मुख्य विशेषताएं क्या हैं और कैसे यह एशिया का पहला वर्टिकल लिफ्ट ब्रिज ‘नए भारत’ की जरूरतों, आत्मनिर्भरता और विजन को साकार करने में एक मील का पत्थर साबित होगा।
535 करोड़ की लागत से तैयार हुआ यह इंजीनियरिंग मार्बल
21वीं सदी की शुरुआत में यह स्पष्ट हो गया था कि ब्रिटिश काल में बना पुराना पम्बन ब्रिज अब आधुनिक भारत की परिवहन आवश्यकताओं का भार नहीं उठा सकता। लगातार बढ़ते रेल यातायात, तेज़ और सुरक्षित कनेक्टिविटी की आवश्यकता ने मोदी सरकार को प्रेरित किया कि एक ऐसा नया स्ट्रक्चर तैयार किया जाए, जो न केवल तकनीकी रूप से अत्याधुनिक हो, बल्कि भविष्य की जरूरतों के लिए पूरी तरह से तैयार भी हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में वह कल्पना अब साकार हो चुकी है। अरब सागर पर खड़ा यह एशिया का पहला ऑटोमेटेड वर्टिकल लिफ्ट रेलवे ब्रिज न केवल एक अभूतपूर्व इंजीनियरिंग उपलब्धि है, बल्कि भारत के आत्मनिर्भर भविष्य की एक मजबूत नींव भी है। यह ब्रिज न केवल बढ़ते रेल यातायात को सुगम बनाएगा, बल्कि समुद्री जहाजों की निर्बाध आवाजाही को भी सुनिश्चित करेगा। इससे क्षेत्रीय संपर्क मजबूत होगा, पर्यटन को गति मिलेगी और स्थानीय आर्थिक विकास को नया आयाम मिलेगा।
₹535 करोड़ की लागत से तैयार यह नया पम्बन ब्रिज(Pamban Rail Bridge) भारत की इंजीनियरिंग प्रतिभा, तकनीकी आत्मनिर्भरता और विकास के प्रति मजबूत संकल्प का जीवंत उदाहरण है। इसकी ऐतिहासिक जड़ें 1914 तक जाती हैं, जब ब्रिटिश इंजीनियरों ने रामेश्वरम द्वीप को भारत की मुख्य भूमि से जोड़ने के लिए शेरजर रोलिंग लिफ्ट के साथ एक कैंटिलीवर ब्रिज का निर्माण किया था।
लेकिन अब भारत ने इतिहास को पीछे छोड़, अपने विकास की गाथा खुद लिखनी शुरू कर दी है। इस भव्य परियोजना को रेल विकास निगम लिमिटेड (RVNL) द्वारा सफलतापूर्वक पूरा किया गया है, जो रेल मंत्रालय के अंतर्गत एक नवरत्न सार्वजनिक उपक्रम है। यह सिर्फ एक ब्रिज नहीं है यह भारत के स्वाभिमान, संकल्प और सशक्त नेतृत्व की मूर्त अभिव्यक्ति है।
जानिए नए पम्बन ब्रिज की अनोखी खूबियां
इस ब्रिज का सबसे खास पहलू है इसका 72.5 मीटर लंबा सेक्शन, जिसे जरूरत पड़ने पर 17 मीटर तक ऊपर उठाया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि अब बड़े समुद्री जहाज़ बिना किसी रुकावट के पुल के नीचे से आसानी से गुजर सकेंगे। यह बदलाव ना सिर्फ नौवहन को आसान बनाएगा, बल्कि व्यापार और रणनीतिक दृष्टि से भी बेहद अहम साबित होगा।
नया ब्रिज(Pamban Rail Bridge) पुराने पुल से तीन मीटर ऊँचा बनाया गया है, जिससे समुद्री संपर्क में और सुधार आया है। इससे साफ है कि योजना सिर्फ वर्तमान नहीं, बल्कि आने वाले कल को ध्यान में रखकर बनाई गई है। इसका ढांचा डबल ट्रैक के लिए डिज़ाइन किया गया है, हालांकि शुरुआत में एक ही लाइन से संचालन शुरू होगा। इसका उद्देश्य भविष्य की ट्रैफिक ज़रूरतों के अनुरूप विस्तार की पूरी तैयारी पहले से ही करना है यही तो है नया भारत, जो पहले सोचता है और फिर बनाता है।
ब्रिज के निर्माण में जिन तकनीकों और सामग्रियों का इस्तेमाल हुआ है, वो इसकी मज़बूती और लंबी उम्र की गारंटी हैं। स्टेनलेस स्टील की मजबूती, हाई-ग्रेड सुरक्षात्मक पेंट, और पूरी तरह वेल्डेड जोड़ इसे कठोर समुद्री मौसम में भी टिकाए रखेंगे। इतना ही नहीं, इसके ऊपर लगाई गई पॉलीसिलोक्सेन कोटिंग ब्रिज को जंग लगने से भी बचाती है, जिससे ये सालों तक बिना किसी बड़ी मरम्मत के देश की सेवा करता रहेगा।
नए भारत की रफ़्तार को नई पटरियाँ
नया पम्बन ब्रिज(Pamban Rail Bridge) केवल एक इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण है जो भारत को भविष्य की ओर अग्रसर करता है। यह ब्रिज कई स्तरों पर बदलाव लाएगा:
बेहतर परिवहन: यह ब्रिज तेज़ रफ्तार ट्रेनों और भारी रेल यातायात को सहज रूप से संचालित करने के लिए तैयार किया गया है। अब रेलगाड़ियाँ रुकेंगी नहीं, रफ़्तार पकड़ेगी।
समुद्री समन्वय: इसकी वर्टिकल लिफ्ट क्षमता बड़े-बड़े जहाज़ों को बिना किसी रुकावट के नीचे से गुजरने की सुविधा देती है — यह विकास और सुरक्षा दोनों का अद्भुत संतुलन है।
दीर्घकालिक टिकाऊपन: नवीनतम तकनीकों और मजबूत सामग्रियों से बना यह ब्रिज 100 वर्षों से अधिक की सेवा क्षमता रखता है, वो भी न्यूनतम रखरखाव के साथ।
- 1914 से 2024: आस्था और विकास की यात्रा: पुराना पम्बन ब्रिज, जिसे 1914 में अंग्रेज़ों ने व्यापार और तीर्थयात्रा के लिए बनाया था, अपने समय में ऐतिहासिक था लेकिन अब वह आधुनिक रेलगाड़ियों और बढ़ते दबाव के अनुरूप नहीं रहा।
समुद्र के खारे पानी से होने वाला क्षरण, भूकंपीय हलचलें और चक्रवात जैसी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए, एक अधिक लचीला, मज़बूत और तकनीकी रूप से परिपक्व विकल्प की आवश्यकता थी।
इस चुनौती को स्वीकार करते हुए, रेल मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले नवरत्न पीएसयू रेल विकास निगम लिमिटेड (RVNL) ने नेतृत्व संभाला और परिणामस्वरूप देश को मिला यह वर्टिकल लिफ्ट वंडर जो केवल ब्रिज नहीं, बल्कि भारत के आत्मनिर्भर और टेक्नोलॉजी-ड्रिवेन भविष्य की झलक है।