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    वंदे मातरम्” के 150 वर्ष: बंकिमचंद्र की वेदना से जनमा गीत, जिसने भारत को जगाया और मोदी युग में पुनः जीवित हुआ आत्मगौरव

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सपा विधायक इंद्रजीत सरोज ने हिंदुओं के देवताओं के खिलाफ ‘उगला ज़हर’; अखिलेश की शह पर हिंदू विरोध में पार्टी!

क्या सपा में ऊँचे पदों पर पहुँचने के लिए हिंदू धर्म और परंपराओं को नीचा दिखाना ज़रूरी हो गया है?

himanshumishra द्वारा himanshumishra
15 April 2025
in राजनीति
इंद्रजीत सरोज ने हिंदुओं के देवताओं के खिलाफ 'उगला ज़हर'

इंद्रजीत सरोज ने हिंदुओं के देवताओं के खिलाफ 'उगला ज़हर'

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उत्तर प्रदेश के कौशांबी ज़िले में आंबेडकर जयंती के मौके पर समाजवादी पार्टी (सपा) के कार्यक्रम में एक बार फिर वो दृश्य सामने आया, जो सपा की सोच और मानसिकता को साफ-साफ उजागर करता है। मंच से बोलते हुए सपा के राष्ट्रीय महासचिव और मंझनपुर से विधायक इंद्रजीत सरोज ने न सिर्फ हिंदू आस्था को ठेस पहुंचाई, बल्कि हमारे इतिहास और धर्मस्थलों पर भी अपमानजनक टिप्पणी कर डाली।

उन्होंने खुले मंच से मंदिरों की ताकत पर सवाल उठाते हुए कहा, “अगर भारत के मंदिरों में ताकत होती तो मोहम्मद बिन कासिम, महमूद ग़ज़नवी और मोहम्मद गौरी जैसे आक्रांता इस देश में कदम नहीं रखते।” इतना ही नहीं, उन्होंने आगे यह भी जोड़ दिया कि “अब ताकत सत्ता के मंदिर में है। बाबा लोग भी अपने मंदिर छोड़कर वहीं विराजमान हैं और हेलिकॉप्टर से यात्रा कर रहे हैं।” इस बयान ने न सिर्फ करोड़ों आस्थावानों की भावना को आहत किया, बल्कि उस धार्मिक संस्कृति पर भी चोट की, जो हजारों वर्षों से हमारी पहचान रही है।

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और हैरानी की बात ये है कि भारी विरोध के बावजूद इंद्रजीत सरोज अपने बयान पर न शर्मिंदा हुए, न पीछे हटे। उल्टा मीडिया के सामने और भी विष वमन करते हुए बोले, “…हमारे देवी-देवता इतने शक्तिशाली होते तो 712 ईस्वी में मोहम्मद बिन क़ासिम इस देश को लूटने न आता… अगर हमारे देवता सचमुच में शक्तिशाली होते तो मुस्लिम हमलावरों को श्राप दे देते… वे अंधे हो जाते, मर जाते, जलकर राख हो जाते… इसका मतलब है कि हमारे देवी-देवताओं में कुछ तो कमी है…”

#WATCH | Prayagraj, UP: On his reported remark on temples of India, Samajwadi Party MLA Indrajeet Saroj says “…Our gods and goddesses were not that powerful…In 712 AD, Muhammad Bin Qasim came to this country from Arabia and looted the country…Muhammad Ghori came to this… pic.twitter.com/9kM8PjrmFn

— ANI (@ANI) April 15, 2025

याद दिला दें कि कौशांबी वही ज़िला है जो प्रयागराज से जुड़ता है वही प्रयागराज, जहां पर दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक मेला महाकुंभ आयोजित होता है। इस आयोजन की भव्यता और प्रशासनिक कुशलता की चर्चा देश ही नहीं, विदेशों तक में होती रही है। लेकिन सपा सुप्रीमो ने इसे भी बुरा भला कहते हुए एक और विवादित टिप्पणी करते हुए कहा था, “जो पापी होते हैं, वही गंगा में स्नान करते हैं।” हिंदू आस्था पर प्रहार यहीं नहीं रुका। हाल ही में, उन्होंने गौमाता और गौशालाओं को लेकर भी अपमानजनक बात कह दी, “गौशाला से दुर्गंध आती है।”

और जब लगा कि इससे ज़्यादा कुछ नहीं हो सकता, तब सपा के ही वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन ने एक ऐसे हिंदू योद्धा को “गद्दार” कह डाला, जिसने इतिहास में मुगलों से लड़ते हुए अपने हाथ तक कटवा दिए थे। ये महज़ चंद हालिया उदाहरण हैं। समाजवादी पार्टी की हिंदू-विरोधी सोच कोई नई बात नहीं है, इसका इतिहास दशकों से हिंदू आस्था और संस्कृति पर हमलों से भरा पड़ा है।

राम नहीं जय भीम के नारे ने मुझे बनाया विधायक – इंद्रजीत

कौशांबी में आयोजित इसी सार्वजनिक सभा के दौरान इंद्रजीत सरोज ने साफ-साफ कहा कि भगवान राम के नाम का नारा लगाने से कुछ नहीं होता, और अगर कोई आगे बढ़ना चाहता है तो ‘जय भीम’ का नारा लगाना चाहिए। उन्होंने खुद को बाबासाहेब अंबेडकर का सच्चा अनुयायी बताते हुए दावा किया कि इसी नारे ने उन्हें पांच बार विधायक और एक बार मंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया। इतना ही नहीं, सरोज ने अपने भाषण में उस संत तुलसीदास को भी नहीं छोड़ा, जिनकी ‘रामचरितमानस’ करोड़ों हिंदुओं की श्रद्धा का केंद्र है। उन्होंने तुलसीदास पर आरोप लगाया कि वे जातिवादी सोच रखते थे और कहा, “तुलसीदास ने लिखा है कि अगर कोई नीच जाति का व्यक्ति पढ़-लिख जाए, तो वो सांप के दूध पीने जैसा होता है।”

फिर भी सरोज यहीं नहीं रुके उन्होंने तुलसीदास को मुस्लिम शासक अकबर का समर्थक बताते हुए तंज कसा, “तुलसीदास ने मुसलमानों के खिलाफ कुछ नहीं लिखा, शायद उनकी जरूरत ही नहीं पड़ी।” यह कोई पहली बार नहीं है जब इंद्रजीत सरोज या समाजवादी पार्टी से जुड़े नेता इस तरह के बयान देकर बहुसंख्यक समाज की भावनाओं को आहत कर रहे हों। राम, रामायण, मंदिर, आस्था कुछ भी इनकी विचारधारा से अछूता नहीं बचा है।

सपा का हिन्दू विरोधी इतिहास

समाजवादी पार्टी और हिंदू आस्था के बीच टकराव का इतिहास कोई नई बात नहीं है। बीते कुछ दशकों में बार-बार ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहां सपा नेताओं के बयानों, नीतियों और फैसलों ने हिंदू समाज की भावनाओं को गहरी चोट दी है। इसकी शुरुआत 1990 के उस काले अध्याय से होती है, जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। अयोध्या में जुटे रामभक्त कारसेवकों पर उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सरकार ने गोलियां चलवा दी थीं। कई निर्दोष श्रद्धालु इस कार्रवाई में मारे गए। उस समय मुलायम सिंह ने खुद यह कहकर इसे जायज़ ठहराया था कि “राम मंदिर बनाने से पहले हम रामभक्तों को गोली मार देंगे।” ये शब्द आज भी उन लाखों लोगों के ज़हन में ज़िंदा हैं, जो राम मंदिर के लिए संघर्ष कर रहे थे।

सिर्फ इतना ही नहीं, आज योगी सरकार में जहां कांवड़ में श्रद्धालुओं के लिए फूल बरसाए जाते हैं वहीं एक दौरा था जब मुलायम सिंह के कार्यकाल में कांवड़ यात्रा और गणेश विसर्जन जैसे धार्मिक आयोजनों पर प्रशासनिक सख्ती की कई घटनाएं दर्ज हैं। 2013 में अयोध्या में हुई चौरासी कोसी परिक्रमा यात्रा के दौरान साधुओं पर लाठीचार्ज ने सपा की इसी मानसिकता को उजागर किया था जहां श्रद्धालु नहीं, बल्कि प्रशासन की सख्ती सुर्ख़ियों में थी।

इसके बाद जब पार्टी की बागडोर मुलायम के बेटे अखिलेश यादव के हाथ में आई, तब भी पार्टी की नीति में कोई खास बदलाव नहीं दिखा। अखिलेश द्वारा महाकुंभ जैसे विशाल और ऐतिहासिक आयोजन पर सवाल उठाना, कुम्भ में स्न्नान करने वालों को पापी बताना ये केवल असंवेदनशील टिप्पणियाँ नहीं थीं, बल्कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था का अपमान भी था। हिंदू प्रतीकों को लेकर समाजवादी पार्टी के नेताओं की ज़बान अक्सर ज़हर उगलती रही है। इसी पार्टी से राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन ने महान हिंदू योद्धा राणा सांगा, जिन्होंने मुग़ल आक्रांताओं से लोहा लिया, उन्हें “गद्दार” तक कह दिया। ये बयान न सिर्फ ऐतिहासिक दृष्टि से भ्रामक हैं, बल्कि यह दर्शाते हैं कि सपा के कुछ नेता न तो इतिहास की कद्र करते हैं और न ही आस्थाओं की।

जनवरी 2023 में एक और विवाद तब खड़ा हुआ जब पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को ‘बकवास’ कहकर हिंदुओं की श्रद्धा को खुलेआम गाली दी। इस बयान ने व्यापक विरोध झेला, लेकिन पार्टी ने कभी इस पर माफ़ी या शर्मिंदगी नहीं जताई। अब वही परंपरा समाजवादी पार्टी के वर्तमान राष्ट्रीय महासचिव इंद्रजीत सरोज आगे बढ़ा रहे हैं। मंच से भगवान राम के नारे पर सवाल उठाना, जय भीम के नारे को सत्ता की कुंजी बताना, तुलसीदास पर जातिगत आधार पर आपत्तिजनक टिप्पणी करना और मंदिरों की शक्ति को अपमानजनक ढंग से नकार देना ये सब उस सोच का हिस्सा हैं, जो बार-बार हिंदू समाज को अपमानित करने का मंच बना चुकी है।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सपा में ऊँचे पदों पर पहुँचने के लिए हिंदू धर्म और परंपराओं को नीचा दिखाना ज़रूरी हो गया है? क्या ‘राष्ट्रीय महासचिव’ का दर्जा केवल उन्हें ही मिलेगा, जो भगवान राम, संतों, गाय, गंगा और मंदिरों का उपहास उड़ाएं?

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