भारत-चीन संबंधों के इतिहास में जब भी सीमा से सटी गतिविधियों ने रफ्तार पकड़ी है, भारत ने अपनी रणनीतिक समझदारी और भू-राजनीतिक दृढ़ता से जवाब दिया है। ऐसे में भारत की पूर्वी सीमा एक बार फिर सतर्क हो गई है। जिस तरह से चीन और बांग्लादेश मिलकर लालमोनिरहाट एयरबेस को दोबारा सक्रिय करने में जुटे हैं, वह सिर्फ एक आधारभूत परियोजना नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा चिंताओं को लेकर एक गहरी चेतावनी है। लालमोनिरहाट, बांग्लादेश के उत्तर-पश्चिम में स्थित है और भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) से केवल 20 किलोमीटर दूर है वही कॉरिडोर जो भारत के मुख्य भूभाग को उसके उत्तर-पूर्वी राज्यों से जोड़ता है।
इस घटनाक्रम को केवल एक बुनियादी ढांचे की पहल मानना एक भूल होगी। यह चीन की दक्षिण एशिया में दीर्घकालिक रणनीतिक मौजूदगी स्थापित करने की कोशिशों का हिस्सा है और भारत इसे बख़ूबी समझता है। इसी के मद्देनज़र भारत सरकार द्वारा त्रिपुरा के उत्तर में स्थित कैलाशहर एयरपोर्ट, जो अब तक केवल सीमित घरेलू उड़ानों के लिए प्रयोग होता था, को अब रक्षा और सामरिक संचालन के लिए तेजी से तैयार किया जा रहा है। यह एयरपोर्ट लालमोनिरहाट से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर है, और इसका फिर से उपयोग में लाना भारत की ओर से एक स्पष्ट संदेश है कि वह अपने रणनीतिक हितों से कोई समझौता नहीं करेगा।
कैलाशहर एयरपोर्ट का पुनर्गठन न केवल एक कूटनीतिक जवाब है, बल्कि यह भारत की उस व्यापक रणनीतिक सोच का प्रतीक है जिसमें सीमा की हर हरकत को दूरदृष्टि से देखा जाता है और आवश्यकता पड़ने पर सटीक प्रतिक्रिया दी जाती है। यह कदम न केवल सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि भारत की पूर्वोत्तर सीमा पर सामरिक संतुलन को फिर से परिभाषित करेगा। आइये जानते हैं क्या है कैलाशहर एयरपोर्ट का इतिहास
कैलाशहर एयरबेस से ही जन्मी थी बांग्लादेशी एयरफोर्स
दरअसल बांग्लादेश का लालमोनिरहाट जिला, जो देश के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में स्थित है, अचानक भारत की रणनीतिक दृष्टि में एक बार फिर केंद्र में आ गया है। यह इलाका भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर से मात्र 15 से 20 किलोमीटर की दूरी पर है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे ‘चिकन नेक’ भी कहा जाता है, केवल 20 से 22 किलोमीटर चौड़ा है, लेकिन इसकी अहमियत बहुत बड़ी है। यही वह पतली पट्टी है जो भारत के मुख्य भूभाग को उसके आठ उत्तर-पूर्वी राज्यों से जोड़ती है। अगर किसी भी कारण से यह कॉरिडोर बाधित होता है, तो देश का पूरा उत्तर-पूर्वी हिस्सा बाकी भारत से कट सकता है एक ऐसा परिदृश्य जिसकी कल्पना मात्र भी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
ऐसे में जब चीन की भागीदारी के साथ बांग्लादेश लालमोनिरहाट एयरबेस को फिर से सक्रिय करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तो यह भारत के लिए केवल कूटनीतिक नहीं बल्कि सामरिक रूप से भी बड़ा अलर्ट है। यदि चीन को इस एयरबेस पर लॉजिस्टिक या ऑपरेशनल पहुंच मिलती है, तो इससे वह भारत की सीमाओं पर लगातार निगरानी रख सकता है। साथ ही, सिग्नल इंटेलिजेंस और साइबर जासूसी जैसे अभियान भी यहां से सुचारु रूप से संचालित किए जा सकते हैं। यह केवल एक हवाई अड्डे की बहाली नहीं, बल्कि भारत की संवेदनशीलता की परिधि में सीधा प्रवेश है।
इस खतरनाक संभावना को देखते हुए भारत ने भी अपनी रणनीति को तेजी से ज़मीन पर उतारना शुरू कर दिया है। त्रिपुरा के उत्तर में स्थित कैलाशहर एयरपोर्ट को लेकर अब जो गतिविधियां शुरू हुई हैं, वे इसी रणनीतिक सोच का हिस्सा हैं। यह एयरपोर्ट 1990 के दशक से निष्क्रिय पड़ा था, लेकिन इससे पहले 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान इसने एक महत्वपूर्ण सैन्य भूमिका निभाई थी। इसी एयरबेस से भारतीय वायुसेना ने कई रणनीतिक ऑपरेशन चलाए थे और यहीं से बांग्लादेश की पहली वायुसेना इकाई ‘किलो फाइट’ ने अपनी ऐतिहासिक उड़ान भरी थी।
2023 में एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और त्रिपुरा सरकार ने मिलकर इसे पुनः सक्रिय करने की दिशा में कार्य शुरू किया। योजना के तहत रनवे को 1200 मीटर से बढ़ाकर 1700 मीटर तक विस्तार दिया जा रहा है, जिससे ATR-72 जैसे विमानों की लैंडिंग मुमकिन हो सके। 26 मई को AAI के पूर्वोत्तर क्षेत्रीय कार्यकारी निदेशक एम. राजू कृष्ण और अगरतला एयरपोर्ट के निदेशक के. सी. मीना ने कैलाशहर हवाई अड्डे का निरीक्षण किया और मौजूदा स्थिति का जायजा लिया। इससे यह स्पष्ट हो गया कि तीन दशक से अधिक समय से शांत पड़ा यह एयरपोर्ट अब फिर से भारत की रणनीतिक तैयारियों का हिस्सा बनने जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार, भारत अब पूर्वोत्तर के कई एयरबेस को ‘दोहरे उपयोग’ के लिए तैयार कर रहा है। यानी ये एयरपोर्ट शांति के समय नागरिक इस्तेमाल में रहेंगे, लेकिन जरूरत पड़ने पर इन्हें तुरंत सैन्य अभियानों के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा। कैलाशहर एयरपोर्ट इस नीति का एक अहम उदाहरण बन रहा है।
यह पूरी प्रक्रिया केवल इन्फ्रास्ट्रक्चर के पुनर्निर्माण का मामला नहीं है। यह भारत की ओर से दी जा रही एक शांत लेकिन स्पष्ट चेतावनी है कि वह अपने सुरक्षा हितों के प्रति न केवल सजग है, बल्कि सामरिक जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार भी। जब कोई बाहरी ताकत हमारे सीमांत क्षेत्रों को अस्थिर करने की कोशिश करती है, तो भारत उसका जवाब केवल शब्दों से नहीं, धरातल पर दिखाई देने वाली रणनीति से देता है। और कैलाशहर उसका सटीक उदाहरण बनता जा रहा है।