देश में एक ओर नक्सलवाद का खात्मा हो रहा है। केंद्र और राज्य सरकार की निगरानी में सुरक्षाबल लगातार इस ऑपरेशन में नए-नए मुकाम हासिल कर रहे हैं। देश के भीतर आतंक का पर्याय बने नक्सलियों को नेस्तनाबूद किया जा रहा है। साफ है कि सुरक्षाबल 2026 तक आतंकवाद को खत्म करने के मिशन पर आगे बढ़ रहे हैं। हालांकि, देश में कुछ बेहतर हो और कम्युनिस्टों को चींटा न काटे ऐसा संभव ही नहीं है। अब तो बात नक्सलियों के खात्मे की हो रही है तो इनके छाती पर सांप लोटना तो बनता है। छत्तीसगढ़ में बुधवार को हुए नक्सली एनकाउंटर के बाद मानों सभी कम्युनिस्ट पार्टियां एक हो गई हैं। सभी की सभी 27 नक्सलियों समेत बसवराजू के एनकाउंटर को हत्या बताने में लग गई हैं।
बता दें केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद को खत्म करने का वादा किया है। इसी के तहत नक्सल प्रभावित इलाकों में लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं। कुछ वर्षों से इन अभियान को जोरदार सफलता भी मिली है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी ये अभियान जारी रहा जिसमें 31 नक्सलियों को ढेर कर दिया गया। वहीं 21 मई को हुए एनकाउंटर में 27 नक्सलियों को जमीन में मिला दिया गया। इसमें नंबला केशव राव उर्फ बसवराजू भी मारा गया। इसके बाद से ही कम्युनिस्ट नेता और पार्टियां राग अलाप रही हैं।
नक्सलियों पर एक्शन का CPI ने किया विरोध
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी CPI ने अबूझमाड़ एनकाउंटर को न्यायेतर हत्या करार दिया है। पार्टी के संदेश को महासचिव डी राजा ने सोशल मीडिया में पोस्ट किया है। इसमें उन्होंने कहा कि आतंकवाद विरोधी अभियानों की आड़ में की गई न्यायेतर की जा रही है। उन्होंने सुरक्षा बलों की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि माओवादी नेताओं के ठिकानों की खुफिया जानकारी थी तो कानूनी गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई। भाकपा ने इस पूरे प्रकरण और ऑपरेशन कगार की स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग करती है।
इतना ही नहीं डी राजा ने इसे राज्य की हिंसा का खतरनाक पैटर्न बताया है। उन्होंने कहा कि ये आदिवासी समुदायों हाशिए पर होने को भी उजागर करती हैं। डी राजा ने सभी लोकतांत्रिक और प्रगतिशील ताकतों को इसके खिलाफ आवाज उठाने और छत्तीसगढ़ के लोगों के साथ एकजुटता से खड़े होने की अपील की है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ और पूरे भारत के लोग सच्चाई जानने के हकदार हैं।
CPI(M) ने कहा ये फासीवादी मानसिकता
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी CPI(M) ने मामले पर प्रेस रिलीज जारी की है। पार्टी ने महासचिव केशवराव सहित 27 माओवादियों की मुठभेड़ की निंदा की है। इसमें कहा गया कि माओवादियों द्वारा बार-बार बातचीत की अपील को नजरअंदाज करते हुए केंद्र सरकार और भाजपा के नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ सरकार ने समाधान निकालने का विकल्प नहीं चुना है। इसके बजाए वो माओवादी नेताओं की हत्या कर रहे हैं। CPI(M) ने केंद्रीय गृहमंत्री और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रुख को फासीवादी मानसिकता तक बताया है।
CPI(M) ने अपने विज्ञप्ति के जरिए दावा किया है कि राजनीतिक दलों और चिंतित नागरिकों ने सरकार से बातचीत के अनुरोध पर विचार करने की अपील की है। पार्टी ने कहा कि राजनीति के प्रति माओवादियों के विरोध के बाद भी हम सरकार से अपील करते हैं कि वो बातचीत के रास्ते पर आगे बढ़े। उन्हें सभी अर्धसैनिक अभियानों को रोक देना चाहिए।
CPI(ML) ने हत्याकांड बताकर की जांच की मांग
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) यानी CPI(ML) ने भी नारायणपुर-बीजापुर में हुए एनकाउंटर की खिलाफत की है। पार्टी ने प्रेस रिलीज जारी कर इसे न्यायेतर हत्या बताते हुए कड़ी निंदा की है। भाकपा(माले) ने कहा कि महासचिव कॉमरेड केशव राव तथा अन्य माओवादी कार्यकर्ताओं और आदिवासियों की निर्मम न्यायेतर हत्या की गई है। पार्टी ने छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्रीय गृहमंत्री को निशाने पर लिया है।
CPI(ML) ने कहा कि अमित शाह के पोस्ट से यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार ऑपरेशन कगार को न्यायेतर विनाशक अभियान के रूप में चला रही है। साफ है कि सरकार माओवाद से लड़ने के नाम पर नागरिकों की हत्या और सैन्यीकरण के खिलाफ आदिवासी विरोध को दबाने का श्रेय ले रही है। हम सभी न्यायप्रिय भारतीयों से अपील करते हैं कि वे इस हत्याकांड की न्यायिक जांच की मांग उठाएं।
कम्युनिस्टों से करने चाहिए ये सवाल
- आप कानूनी गिरफ्तारी की बात करते हैं तो उनके सरेंडर की बात क्यों नहीं करते?
- अगर नक्सल आंदोलन इतना पाक साफ है तो उनके पास हथियार कहां से आते हैं?
- नक्सल नेता आदिवासियों के हक में है तो फरार क्यों रहते हैं?
- आपको नहीं लगता उन्हें लोकतांत्रिक लड़ाई लड़नी चाहिए?
- आप स्वतंत्र न्यायिक जांच किससे चाहते हैं जिस पर आपको भरोसा होगा?
- क्या आप बसवराजू को हीरो मानते हैं? इसका नाम कई हत्याओं में शामिल है।
जब देश में नक्सलियों के खिलाफ अभियान चल रहा है। प्रभावित जिलों की संख्या कम हो रही है। नक्सली सरेंडर कर रहे हैं। नक्सल प्रभावित बड़े इलाके में अमन लौट रहा है। ऐसे में कम्युनिस्ट पार्टियों की आखिर किस बात की समस्या है? वो बीजेपी की सरकार को निशाने पर ले रहे हैं। कानूनी गिरफ्तारी की बात कहते हुए सरकार के इस अभियान के खिलाफ खड़े होने के लिए आवाहन कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत की कम्युनिस्ट पार्टियां नक्सलियों और नक्सलवाद के समर्थन में एक साथ खड़ी हो गई हैं? मानो बसवराजू कोई हत्यारा नहीं उनका हीरो रहा हो।