Facebook Double Face: डिजिटल हाईटेक होती दुनिया में AI के आने के बाद कई सकारात्मक पहलुओं के साथ एक नकारात्मक हिस्सा भी बड़ी तेजी से आया है। सोशल मीडिया के जरिए होने वाले फाइनेंशियल फ्रॉड तेजी से बढ़े हैं। ठग सोशल मीडिया पर बेखौफ विज्ञापन चला रहे हैं। वह इसके लिए देश में सर्वोच्च पदों पर बैठे शख्सियत के डीपफेक वीडियो का उपयोग कर रहे हैं। लोगों को निवेश के लिए प्रेरित कर उन्हें चपत लगा रहे हैं। हालांकि, सवाल केवल फ्रॉड का नहीं है। सवाल है इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म, खासकर मेटा (फेसबुक, इंस्टाग्राम) का जो स्पोंसर एड के नाम पर अच्छा खासा पैसा लेकर इसे लाखों लोगों तक पहुंचाते हैं। क्योंकि, इससे उन्हें अच्छा मुनाफा होता है। जबकि, हिंदुओं के समर्थन या सनातन विचार वाली पोस्ट को कम्युनिटी गाइडलाइन के नाम पर हटा दिया जाता है।
साइबर ठग इतने बेखौफ हो गए हैं कि आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस यानी AI की मदद से खुलेआम वित्तीय धोखाधड़ी को अंजाम दे रहे हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कई ऐसे पोस्ट रन कर रहे हैं जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, इंफोसिस चेयरमैन नारायण मूर्ती जैसी कई बड़ी हस्तियों के डीपफेक वीडियो का उपयोग किया जा रहा है। यह सब मेटा के स्वामित्व वाले फेसबुक और इंस्टाग्राम पर तेजी से हो रहा है। वही मेटा जो राष्ट्रवादी विचारों को सेंसर करने में पल भर की देरी नहीं करता। वह इन धोखाधड़ी वाले विज्ञापनों को अपनी जेब भरकर प्रमोट कर रहा है। भले ही उसके प्लेटफॉर्म पर आम आदमी की गाढ़ी कमाई लुट जाए।
कैसे और कहां से हो रहे हैं अपराध?
सोशल मीडिया पर सक्रिय ठग आमतौर पर किसी स्कीम या इन्वेस्टमेंट से पैसे कमाने का लालच देते हैं। जैसे कि 2000 लगाओ और 50,000 पाओ या फिर प्रधानमंत्री द्वारा लॉन्च की गई नई योजना से पैसे कमाने का लालच। इन फर्जी विज्ञापनों में AI के जरिए प्रधानमंत्री मोदी समेत बड़े लोगों के डीपफेक वीडियो का उपयोग किया जाता है। इन विज्ञापनों पर क्लिक करने पर फर्जी इनवेसमेंट साइट या किसी पॉपुलर मीडिया संस्थान जैसे बनाई गई साइट के पेज पर लैंड कराया जाता है। यहां ठगों द्वारा कई फर्जी खबरें पोस्ट की हुई होती है।
इनके पीछे अक्सर विदेशी ठग गिरोह का साइबर क्राइम नेटवर्क होता। भारत में भी इसके एजेंट होते हैं। एक बार साइट में क्लिक करने के बाद आपने पैसे नहीं दिए तो ये बार-बार फोन करते हैं। ये किसी भी तरह आपको निवेश के लिए कन्वेंशन करते हैं। भारत में यही एजेंट फर्जी बैंक खाते, UPI ID और फर्जी कॉल सेंटरों से इन्हें अंजाम देते हैं।
बेखौफ चल रहा है लूट का बाजार
फेसबुक पर डीपफेक और फाइनेंशियल मिसलीडिंग वाले अकाउंट्स बेरोकटोक चल रहे हैं। भारत में इन दिनों इस तरह के विज्ञापन भारी संख्या में देखे जा रहे हैं। इनमें प्रधानमंत्री के चेहरे का इस्तेमाल कर फर्जी क्रिप्टो स्कीम्स को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री ही नहीं देश के बड़े उद्योगपतियों के साथ मंत्री और फिल्मी सितारों के नाम पर भी वीडियो फेसबुक में तेजी से प्रमोट हो रहे हैं।
Nothing new but its growing: These accounts and contents are not monitored ever.
Deepfake videos, Impersonation, financial misleading.
@nsitharaman @FinMinIndia @palkisu @Cyberdost @HMOIndia @Meta @facebookAccount: https://t.co/PsUa26Vj2T
Video: https://t.co/6uqsXrnYrA pic.twitter.com/ABo4ZLT465
— Parthapratim Dash (@About_Partha) May 1, 2025
मेटा की वजह से हुए कुछ फ्रॉड
- दिल्ली के एक वृद्ध ने सरकारी योजना से लाभ लेने के लिए 25,000 का रजिस्ट्रेशन करा लिया था।
- लखनऊ की एक स्कूल टीचर ने डीपफेक में प्रधानमंत्री को बोलते देख 50,000 रुपये ट्रांसफर कर दिए थे।
- कोलकाता का एक आदमी मुकेश अंबानी की डीपफेक वीडियो से ठगा गया। उसने 35 हजार गवा दिए।
- रिटायर्ड अफसर ने ‘टाटा ग्रुप इन्वेस्टमेंट स्कीम’ में 1 लाख डाले जो कभी वापस नहीं आया।
फेसबुक पर दोहरा मापदंड?
गंभीर सवाल यह है कि आखिर फेसबुक जैसी सोशल मीडिया कंपनी इन धोखाधड़ी वाले विज्ञापनों को क्यों और कैसे बढ़ावा दे रही है? क्या फेसबुक के पास ऐसी कोई तकनीक नहीं है जो इस तरह के डीपफेक वीडियो और वित्तीय धोखाधड़ी वाले विज्ञापनों की पहचान कर रोक सके? असल मसला तो ये है कि फेसबुक मुनाफा कमाने के लालच में वे जानबूझकर इन सब चीजों को अनदेखा कर रहा है। क्योंकि, उसकी विज्ञापन नीति और कंम्यूनिटी गाइडलाइन इस तरह के मामलों पर कोई एक्शन नहीं लेती है। जबकि, इससे उलट राष्ट्रवादी विचारों को निशाना बनाने के लिए इसके नियम कानून जाग जाते हैं।
जब राष्ट्रवादी विचारों की बात आती है तो फेसबुक अपनी ‘कम्युनिटी गाइडलाइन्स’ का हवाला देकर सख्ती दिखाता है। लेकिन जब बात फर्जी स्कैम की होती है तो वही फेसबुक पैसे लेकर चुपचाप धोखाधड़ी को बढ़ावा देता है। 2022 में मेटा ने भारत में लगभग 300 अकाउंट्स को हटाया था। इनमें से ज्यादातर अकाउंट हिंदूवादी सामग्री वाले थे। तब कंपनी ने दावा किया था कि ये अकाउंट हेट स्पीच या हिंसा भड़काने वाली नीतियों का उल्लंघन करते हैं।
हिंदूफोबिया का अड्डा फेसबुक
अगस्त 2022 में प्रसार भारती के पूर्व सीईओ शशि शेखर वेम्पति ने फर्स्टपोस्ट से बात करते हुए बताया था कि भारत में फेसबुक द्वारा इतने बड़े पैमाने पर खातों को डी-प्लेटफॉर्मिंग करना प्लेटफार्मों की शक्ति और उस पर नियामक जांच पर कई सवाल खड़े करता है। नाम न बताने की शर्त पर एक शीर्ष आईटी विशेषज्ञ ने कहा था कि अगर उनका संपादकीय लिखना भारत के कानूनों का उल्लंघन करता है तो क्या होगा? फेसबुक हिंदूफोबिया का अड्डा बनता जा रहा है।
पहले भी वायरल हुए हैं विज्ञापन
भारत में डीपफेक स्कैम नई बात नहीं हैं। 2023 में कई मशहूर हस्तियों जैसे अक्षय कुमार, आलिया भट्ट, रतन टाटा के डीपफेक वीडियो स्कैम में इस्तेमाल हुए हैं। सरकार ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को चेतावनी दी कि IT नियम-2021 के तहत उन्हें डीपफेक और गलत सूचनाओं को तुरंत हटाना होगा। हालांकि, फेसबुक पर मानो इसका कोई असर नहीं पड़ रहा है। 2025 में प्रधानमंत्री के डीपफेक वीडियो के जरिए लोगों को ठगा जा रहा है। लेकिन फेसबुक ये सब होते हुए देख रहा है। न सिर्फ देख रहा है बल्कि इन्हें प्रमोट भी कर रहा है।
पहले भी सवालों में रहा है फेसबुक
फेसबुक कई बार सवालों के घेरे में आया है। चाहे वह 2018 का डेटा लीक मामला हो या फिर 2020 से 2022 तक हेट स्पीच के नाम पर अकाउंट डिलीट करने का विवाद हो। वहीं 2023 से अभी तक डीपफेक स्कैम को बढ़ावा देने का मामला। फेसबुक कई बार बड़े सवालों के घेरे में आया है।
- – 2018 में कैम्ब्रिज एनालिटिका ने 87 मिलियन फेसबुक यूजर्स का डेटा हासिल किया था। इस मामले में CEO मार्क जकरबर्ग को अमेरिकी कांग्रेस में सफाई देनी पड़ी थी।
- – कैम्ब्रिज एनालिटिका डेटा लीक के बाद भारत में भी फेसबुक को कड़ी चेतावनी दी गई थी। उस समय के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि भारतीय चुनावों में डेटा दुरुपयोग साबित हुआ तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
- – 2018-19 में फेसबुक के स्वामित्व वाले व्हाट्सएप पर अफवाहों का दौर चला था। इसमें बच्चा चोरी की फर्जी खबरें और वीडियो तेजी से फारवर्ड हुए। इसके कारण कई स्थानों पर मॉब लिंचिंग की घटनाएं सामने आईं। सरकार की सख्ती के बाद व्हाट्सएप फॉरवर्डिंग की सीमा तय कर दी।
- – मेटा के स्वामित्त वाली व्हाटसअप ने आईटी नियम- 2021 को मानने में आनाकानी की थी। इसके खिलाफ कंपनी कोर्ट चली गई थी। हालांकि, अभी तक इनको इस मामले में कोई अंतरिम राहत नहीं मिली है।
लगातार बढ़े हैं साइबर अपराध
कोरोना काल के बाद से साइबर अपराध में बढ़ोतरी आई है। धीरे-धीरे बढ़ते हुए साल 2024 में ये पीक पर पहुंच गया था। अभी भी इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इसके पीछे तेजी से बढ़ रही AI तकनीक है। इंडिया साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर के आंकड़ों की के अनुसार 2024 के पहले 6 महीनों में भारतीयों को साइबर फ्रॉड में 11,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर प्रतिदिन 6,000 शिकायतें दर्ज की गईं। इस साल भारतीयों को हर दिन 60 करोड़ रुपये की चपत लगी थी।
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विदेशों में भी यही करता है फेसबुक
फेसबुक का विज्ञापन नेटवर्क ही समस्या का एक बड़ा हिस्सा बन गया है। ये विज्ञापन अक्सर फर्जी न्यूज आर्टिकल्स से लिंक होते हैं, जो किसी विश्वसनीय मीडिया हाउस की नकल करते हैं। न्यूजीलैंड में 2024 में एक स्कैम सामने आया था। प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन और डिप्टी प्रधानमंत्री विंस्टन पीटर्स के डीपफेक वीडियो फेसबुक पर विज्ञापनों के जरिए फैलाए गए। इनमें दावा किया गया कि सरकार ने एक ऐसी निवेश योजना शुरू की है, जिसमें हर नागरिक को मोटा मुनाफा मिलेगा।
बचाव के क्या हो सकते हैं उपाय?
- सख्त सोशल मीडिया मॉनिटरिंग यूनिट बनानी चाहिए जो प्रमोटेड कंटेंट की स्क्रीनिंग करे।
- डीपफेक को पहचानने वाली AI टेक्नोलॉजी को सभी प्लेटफॉर्म पर अनिवार्य किया जाए।
- सोशल साइट को ऐसे फ्रॉड प्रमोट करने पर कार्रवाई का सामना करना पड़े और मुआवजे का प्रावधान हो।
- लोगों को डिजिटल साक्षरता की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। इससे वो नकली-फर्जी कंटेंट पहचान सकें।
यह एक गंभीर विषय है जिस पर गहन जांच की आवश्यकता है। इन डीपफेक मटेरियल और उन्हें बढ़ावा देने वालों के चेहरे बेनकाब होने चाहिए ताकि आम जनता को इस तरह के वित्तीय धोखाधड़ी के जाल में फंसने से बचाया जा सके। जांच इस बात की भी होनी चाहिए कि फेसबुक के सारे नियम-कायदे और कानून सिर्फ राष्ट्रवादी विचारों को दबाने और कुचलने के लिए ही बने हैं। डीपफेक के साथ हो रहे गंभीर वित्तीय अपराधों पर उनकी नजर ही नहीं पड़ती या फिर वे जानबूझकर अनदेखा कर रहा है।