पाकिस्तान के मंदिर: लंबी लड़ाई के बाद 1947 में भारत आजाद हो गया। हालांकि, आजादी के इस लड़ाई के आखिरी दौर में ही देश दो हिस्सों में बट गया। एक हिस्सा भारत और दूसरा पाकिस्तान के रूप में नक्शे में उभरा। 1947 का बंटवारा केवल जमीन का नहीं बल्कि हिंदुओं के दिल और आस्था का भी विभाजन था। लाखों हिंदू अपनी पुश्तैनी जमीन, देवी-देवताओं के मंदिर और सदियों पुरानी धरोहर को छोड़कर अनजान रास्तों पर चल पड़े। बंटवारे का दर्द सिर्फ घर-बार छिनने का नहीं था। यह उस आध्यात्मिक नाते का टूटना था जो उनको उनकी जड़ों से जोड़ता था। 1947 के बाद पाकिस्तान में कई मंदिरों को तोड़ा गया। हालांकि, आज भी कुछ मंदिर अपनी भव्यता और आध्यात्मिक महत्व के साथ खड़े हैं।
बटवारे के समय हिंगलाज माता, कटासराज और साध बेलो जैसे कई मंदिर एक रात में ही सीमा के उस पार चले गए। इन कई मंदिरों की दीवारों में गूंजती प्रार्थनाएं खामोश हो गईं। 1947 के बंटवारे के बाद पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों की संख्या में भारी कमी आई। कई मंदिरों को तोड़कर होटल, मदरसों में तब्दील कर दिया गया है। हालांकि, कई मंदिर अभी है जिन्होंने अपना अस्तित्व बनाए रखा है। आइये जानें पाकिस्तान के 5 बड़े मंदिर जो आज भी साधना का केंद्र हैं।
बलूचिस्तान का हिंगलाज माता मंदिर
यह मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लासबेला जिले में स्थित एक प्राचीन और अत्यंत पवित्र शक्तिपीठ है। यह हिंदू धर्म के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यहां माता सती का मस्तक गिरा था। हिंगोल नदी के किनारे पहाड़ियों से घिरे इस मंदिर में ‘हिंगलाज देवी’ या ‘नानी मां’ के रूप में पूजा जाता है। ये सिंधी और बलूच हिंदू समुदायों में विशेष महत्व है। दिलचस्प बात यह है कि स्थानीय मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग भी इसे ‘नानी पीर’ के रूप में मानते हैं।

माना जाता है इस पवित्र स्थान पर तीन दिनों की आराधना भक्तों के सभी पापों का निवारण कर देती है। यही वजह है कि दूर-दराज से श्रद्धालु यहां खिंचे चले आते हैं। पाकिस्तान स्थित यह मंदिर न केवल आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है बल्कि यह वहां के 44 लाख हिंदू समुदाय के लिए उनकी पहचान और सांस्कृतिक अस्तित्व का भी प्रतीक है। यहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु अपनी श्रद्धा अर्पित करने आते हैं।
उमरकोट शिव मंदिर
पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों को नष्ट करने की घटनाएं अक्सर चर्चा में रहती हैं। हालांकि, उमरकोट शिव मंदिर एक अनूठा उदाहरण है। यहां हिंदू-मुस्लिम एकता दिखती है। इसे अमरकोट शिव मंदिर भी कहा जाता है। इसके सबसे खास बात ये है कि यहां स्थापित शिवलिंग का आकार लगातार बढ़ रहा है। ये सिंध के सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। कई दावे बताते हैं कि ये 2,000 वर्ष पुराना है। बताया जाता है कि लगभग एक सदी पहले एक मुस्लिम व्यक्ति ने मंदिर की वर्तमान संरचना का निर्माण और विस्तार किया था।

एक किंवदंती के अनुसार, एक वृद्ध की गाय एक निश्चित स्थान पर ही दूध देती थी। जांच करने पर वहां शिवलिंग मिला जिसके बाद ग्रामीणों ने मंदिर निर्माण का निर्णय लिया। समय के साथ यह स्थान प्रमुख धार्मिक केंद्र बन गया, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचने लगे। हालांकि, देश के विभाजन के बाद हालात बदल गए। फिलहाल इस मंदिर की देखरेख उमरकोट की अखिल हिंदू पंचायत द्वारा किया जाता है। यहां हर साल महाशिवरात्रि पर तीन दिवसीय मेला आयोजित होता है जिसमें 2.5 लाख भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
कराची का स्वामीनारायण मंदिर
भारत-पाक बंटवारे की कोख से निकली लाखों पीड़ाओं में एक पीड़ा, कराची के स्वामीनारायण मंदिर की भी है। यहां कभी श्रद्धा का संगम हुआ करता था। इसके बाद भी ये कई बरसों तक सन्नाटे में डूबा रहा। लेकिन जैसे-जैसे वक़्त की धूल छंटी, आस्था ने फिर अंगड़ाई ली और मंदिर ने अपने पुराने वैभव की ओर वापसी का रास्ता पकड़ लिया। स्वामीनारायण संप्रदाय का ये पहला और आख़िरी मंदिर हो पाकिस्तान की सरजमीं पर खड़ा है।
- इसका निर्माण 1851 में कालू संप्रदाय द्वारा शुरू किया गया था।
- तीन वर्षों में 1854 तक यह मंदिर पूर्ण रूप से तैयार हो चुका था।
- 27,000 वर्ग मीटर में फैला यह मंदिर स्थापत्य का एक उत्कृष्ट नमूना है।
- विभाजन से यह कराची के आसपास के हिंदुओं की श्रद्धा का केंद्र था।

बंटवारे के दौरान पाकिस्तान में जब दंगे भड़के तो मज़हबी उन्माद में बहती भीड़ ने मंदिरों को भी नहीं छोड़ा। कराची का यह मंदिर भी इस आग की चपेट में आ गया। स्थानीय हिंदू अपनी आराध्य मूर्ति को बचाने के लिए उसे भारत ले आए। आज वही मूर्ति राजस्थान के जालौर ज़िले के खान गांव में विराजमान है। मंदिर परिसर में बनी धर्मशाला जो कभी यात्रियों की सेवा में समर्पित थी। अब सिटी डिस्ट्रिक्ट गवर्नमेंट का दफ्तर बन चुकी है। 1947 के दिनों में यहां शरणार्थी शिविर भी लगाया गया था। स्थानीय हिंदुओं ने धीरे-धीरे मंदिर के पुनरुद्धार की शुरुआत कर भगवान राधा-कृष्ण के साथ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की हैं।
- 1989 में भारत से साधुओं का एक दल इस मंदिर के दर्शन हेतु कराची पहुंचा था।
- कुछ वर्षों तक यह क्रम जारी रहा लेकिन 2015 के बाद यह सिलसिला थम गया।
- 2025 में दो साधु इस मंदिर की यात्रा पर जाने वाले थे। हालांकि, अब इसकी उम्मीद कम है।
आज मंदिर के आसपास हिंदुओं की बस्ती है। बताया जाता है वह यहां रोजाना पूजा पाठ करने के लिए पहुंचते हैं। त्योहारों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। सबसे अनोखी बात यह है कि मंदिर में मुस्लिम श्रद्धालु भी दर्शन को आते हैं। कहा जाता है कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने भी कभी इस मंदिर में आकर दर्शन किए थे।
कराची का प्राचीन वरुण देव मंदिर
पाकिस्तान में हिंदुओं और उनके धार्मिक स्थलों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। हिंदुओं को सरकार की उपेक्षा और शोषण का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे निराशाजनक माहौल में भी कुछ हिंदू अपने मंदिरों को बचाने और उनकी स्थिति सुधारने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। कराची के मनोरा द्वीप पर स्थित प्राचीन वरुण देव मंदिर ऐसी ही एक मिसाल है। इसे आजादी के बाद शौचालय के लिए उपयोग किया जाने लगा था। हालांकि, स्थानीय हिंदुओं के संघर्ष और विदेशी सहायता से जीर्णोद्धार की राह पर है।
- कराची के मनोरा द्वीप पर स्थित यह मंदिर जल के देवता वरुण को समर्पित है।
- मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी में माना जाता है। हालांकि, स्पष्ट प्रमाण नहीं है।
- 16वीं शताब्दी में भोजोमल नैन्सी भाटिया ने द्वीप खरीदकर मंदिर पर अधिकार कर लिया था।
- 1917-1918 में मंदिर का जीर्णोद्धार किए जाने के प्रमाण मिलते हैं।
- मंदिर में देवनागरी और सिंधी लिपि में शिलालेख मौजूद हैं।
- 1992 में बाबरी विध्वंस के समय इस मंदिर को नुकसान पहुंचाया गया था।
- वर्तमान में जीर्णोद्धार के प्रयासों से मंदिर की स्थिति में सुधार हो रहा है।
- अभी भी कुछ मूर्तियां टूटी हुई हैं। हालांकि, लगातार इन्हें लगाने की कोशिश हो रही है।

विभाजन के बाद हिंदू अल्पसंख्यक होने के कारण मंदिर की देखरेख नहीं हो सकी। लंबे समय तक मंदिर की दीवारों और कमरों का इस्तेमाल मनोरा बीच पर आने वाले पर्यटकों के लिए शौचालय के तौर पर होता रहा। यह अपमानजनक स्थिति 2008 तक जारी रही। 2008 में स्थानीय हिंदुओं ने मंदिर के अपमान के खिलाफ आवाज उठाई। विरोध के बाद मंदिर की सफाई कराई गई और जीर्णोद्धार का कार्य शुरू हुआ। इसके लिए हिंदुओं ने धन जुटाया था।
मुल्तान का प्रह्लादपुरी मंदिर
मुल्तान अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की बेबसी और सरकार की उदासीनता के कारण यह ऐतिहासिक मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुका है। भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को समर्पित मंदिर का निर्माण सतयुग में भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद ने करवाया था। किंवदंती है कि यह मंदिर कभी सोने से निर्मित था और 15वीं शताब्दी तक सुरक्षित रहा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी स्थान पर भगवान नरसिंह ने खंभे से प्रकट होकर हिरण्यकश्यप का वध किया था और प्रह्लाद की रक्षा की थी। मान्यता है कि हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर प्रह्लाद को इसी स्थान पर आग में जलाने का प्रयास किया था।
- 15वीं शताब्दी के अंत में शेरशाह सूरी ने मंदिर को गिराकर बारा थुम्बा मस्जिद बनवाई।
- 1810 में सिख शासन के दौरान मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया।
- 1848 में अंग्रेजी सेना के आक्रमण के दौरान बमबारी से मंदिर फिर से ढह गया।
- 1861 और 1872 में स्थानीय हिंदुओं ने चंदा जुटाकर मंदिर का पुनर्निर्माण और मरम्मत कराई।
- 20 सितंबर 1881 को मुल्तान में हुए दंगों में मंदिर को आग लगा दी गई।
- मुल्तान दंगों के एक महीने के भीतर ही हिंदुओं ने इसे दोबारा से बना दिया।

1947 के विभाजन के बाद मंदिर की देखरेख नहीं हो सकी, क्योंकि मुल्तान में हिंदुओं की संख्या बहुत कम थी। 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के प्रतिक्रियास्वरूप पाकिस्तान में तोड़े गए सैकड़ों मंदिरों में प्रह्लादपुरी भी शामिल था। 2009 में पाकिस्तानी सरकार ने मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए धन आवंटित किया, लेकिन स्थानीय कट्टरपंथियों के विरोध के कारण अनुमति नहीं मिली। 2021 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं हो सका और आज यह वीरान खंडहर में बदल चुका है।
कराची का पंचमुखी हनुमान मंदिर
पाकिस्तान के कराची में स्थित हनुमान का प्राचीन मंदिर है। इसे त्रेता युग की स्वयंभू प्रतिमा माना जाता है। यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि अतिक्रमण के खिलाफ एक संघर्ष की कहानी भी कहता है। मान्यता है कि इस मंदिर की 11 परिक्रमा करने से भक्तों के सभी दुख दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। राम नवमी और हनुमान जयंती पर यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
- कराची के सोल्जर बाजार में स्थित इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1882 में बताया जाता है।
- मंदिर में स्थापित 8 फीट ऊंची पंचमुखी हनुमान की मूर्ति को स्वयं प्रकट माना जाता है।
- किंवदंती है कि यह मूर्ति लगभग 17 लाख वर्ष पुरानी, त्रेता युग की है।

कभी 2,609 वर्ग फुट में फैला यह मंदिर, हिंदू आबादी कम होने के कारण अतिक्रमण का शिकार होता चला गया और इसकी आधी जमीन पर अवैध कब्जा हो गया। कानूनी लड़ाई के बाद 2006 में मंदिर की जमीन वापस करने का सरकारी नोटिस जारी हुआ, लेकिन अब तक अतिक्रमणकारियों को हटाया नहीं जा सका है। सिंध सांस्कृतिक विरासत (संरक्षण) अधिनियम 1994 के तहत राष्ट्रीय धरोहर घोषित होने के बावजूद, मंदिर की शेष जमीन पर हिंदू समुदाय भव्य मंदिर का निर्माण कर रहा है।
सुक्कुर का साध बेलो मंदिर
साध बेलो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सुक्कुर के निकट सिंधु नदी में स्थित एक द्वीप है। यह प्राचीन हिंदू मंदिरों में से एक है। उदासी संत बाबा बनखंडी से गहरा जुड़ा हुआ है। 1823 में बाबा बनखंडी नामक एक उदासी संत ने इस द्वीप को अपना निवास बनाया और शिक्षा का प्रसार किया। साध बेलो का संरक्षण और प्रबंधन इवैक्यूई प्रॉपर्टी ट्रस्ट बोर्ड द्वारा किया जाता है।
- 2010 की विनाशकारी बाढ़ के कारण साध बेलो को भी क्षति पहुंची।
- मंदिर परिसर के सामने एक भव्य संगमरमर की दीवार है, जिस पर सुंदर नक्काशी की गई है।
- वर्तमान में स्वामी गौरी शंकर दास साध बेलो के महंत के रूप में सेवा कर रहे हैं।

साध बेलो धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण स्थल है। सिंधु नदी के शांत वातावरण में स्थित है और हिंदू श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र स्थान है। हालांकि, पाकिस्तान में होने के कारण इसका संरक्षण नहीं हो पा रहा है। कई बार मंदिर को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।
कटासराज शिव मंदिर
यह प्राचीन हिंदू मंदिर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चकवाल जिले में स्थित है और भगवान शिव को समर्पित है। यह एक मंदिर-समूह का हिस्सा है जिसमें कई छोटे मंदिर शामिल हैं। मंदिर परिसर की विशेषता यहां स्थित पवित्र सरोवर है, जिसे कटास कुंड कहा जाता है। मान्यता है कि यह सरोवर भगवान शिव के आंसुओं से निर्मित हुआ था। प्राचीन काल में यह मंदिर हिंदू धर्म के शिक्षा और दर्शन का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।

यह भी माना जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास के दौरान यहां कुछ समय बिताया था और आदि शंकराचार्य ने यहां दर्शन का प्रचार किया था। मंदिर की वास्तुकला हिंदू-बौद्ध शैली का अद्भुत मिश्रण है। विभाजन के बाद यहां पूजा कम हो गई है, लेकिन यह आज भी पाकिस्तान में हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
राम कुंड मंदिर सैयदपुर
पाकिस्तान के इस्लामाबाद के सैयदपुर गांव में स्थित श्री राम कुंड मंदिर एक प्राचीन राम मंदिर है। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में मिर्जा राजा मान सिंह प्रथम ने करवाया था। कभी हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण तीर्थस्थल रहा यह मंदिर आज वीरान है और इसमें कोई मूर्ति स्थापित नहीं है। हिंदुओं को इस मंदिर में पूजा करने की अनुमति नहीं है।

2006 में कैपिटल डेवलपमेंट अथॉरिटी ने मंदिर को संरक्षित करने का प्रयास किया। हालांकि, मंदिर के पास स्थित तालाब गायब हो गए और उस क्षेत्र में रेस्तरां बन गए। मंदिर के समीप भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के नाम पर तीन पवित्र कुंड थे जो अब पूरी तरह से लुप्त हो चुके हैं। कभी श्रद्धा और आस्था का केंद्र रहा श्री राम कुंड मंदिर आज अपनी ऐतिहासिक पहचान खोता जा रहा है, जो एक प्राचीन धरोहर की उपेक्षा का प्रतीक है।
पेशावर का गोरखनाथ मंदिर
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के गोरखत्री क्षेत्र में स्थित गोरखनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण हिंदू विरासत स्थल है। इसे नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक गुरु गोरखनाथ को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 1838 से 1842 के बीच गवर्नर अविताबिले के शासनकाल में हुआ था। हालांकि कुछ ऐतिहासिक उल्लेख 1823 से 1830 का समय बताते हैं।
- मंदिर का निर्माण 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हुआ।
- 1947 के विभाजन के मंदिर को बंद कर दिया गया था।
- 2011 में पेशावर उच्च न्यायालय के आदेश पर मंदिर को दोबारा से खोला गया।
- 2012 में इस मंदिर पर हमले हुए और मूर्तियां चुराई गईं

दिलचस्प बात यह है कि यह स्थान पहले एक बौद्ध मठ था। बाद में एक हिंदू मंदिर के रूप में परिवर्तित किया गया। 1851 में स्थापित यह मंदिर इस क्षेत्र के बचे हुए कुछ हिंदू मंदिरों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। मंदिर परिसर दो मुख्य भागों में है। यह गोरखत्री के मध्य भाग में लगभग 25,600 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। वर्तमान में गोरखनाथ मंदिर को अवैध कब्जे और उचित रखरखाव जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों की स्थिति चिंताजनक
पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों की स्थिति चिंताजनक है। स्थानीय हिंदू समुदाय और कुछ संगठन इनकी देखरेख में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, बंटवारे के बाद मंदिरों का विध्वंस एक गंभीर समस्या रही है। सिंध में सर्वाधिक मंदिर होने के बावजूद, नियमित पूजा केवल कुछ ही मंदिरों में होती है। मंदिरों पर हमले और तोड़फोड़ की घटनाएं हिंदू समुदाय को असुरक्षा में रखती हैं। ऐतिहासिक महत्व के कई मंदिर आज खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। यह स्थिति पाकिस्तान में हिंदू धार्मिक स्थलों के संरक्षण और सुरक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।