भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के बीच, पाकिस्तान के भीतर एक ऐतिहासिक भूचाल आया है। बलूचिस्तान ने खुद को पाकिस्तान से अलग कर स्वतंत्र देश घोषित कर दिया है। बलूच नेताओं ने साफ कहा है कि अब वे पाकिस्तान के साथ नहीं रह सकते और बलूचिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ेगा। बलूच नेतृत्व ने भारत और संयुक्त राष्ट्र से अपील की है कि बलूचिस्तान को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी जाए। पाकिस्तान की सेना पर लगातार हो रहे हमलों और बलूच विद्रोहियों की चेतावनियों से यह स्पष्ट हो गया है कि यह मांग अब केवल नारा नहीं, बल्कि एक ठोस जनांदोलन में बदल चुकी है। जिस तरह भारतीय सिखों के लिए करतारपुर कॉरिडोर ने सीमाओं के पार गुरुद्वारा दरबार साहिब तक पहुंच को मुमकिन बनाया, अब ठीक वैसी ही एक नई संभावना भारतीय हिंदुओं के सामने खड़ी हो सकती है। अगर बलूचिस्तान वास्तव में एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरता है, तो वहां स्थित दो ऐतिहासिक और अत्यंत पवित्र हिंदू तीर्थस्थलों हिंगलाज माता मंदिर और कटासराज शिव मंदिर के द्वार भारतीय श्रद्धालुओं के लिए खुल सकते हैं। आज की तारीख में, भारत और पाकिस्तान के बीच चले आ रहे तनाव के कारण इन मंदिरों तक भारतीयों की पहुंच लगभग नामुमकिन है। मगर बलूचिस्तान की संभावित आज़ादी न केवल एक भौगोलिक बदलाव होगा, बल्कि यह हजारों वर्षों से जुड़े धार्मिक और सांस्कृतिक रिश्तों को फिर से जीवित करने का अवसर भी होगा।
हिंगलाज माता: शक्तिपीठों की पवित्र भूमि
बलूचिस्तान के लासबेला जिले में स्थित हिंगलाज माता मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है और मान्यता है कि यहीं माता सती का मस्तक गिरा था। यह स्थान हिंगोल नदी के किनारे, चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है जो इसे और भी अलौकिक बनाता है।
यह मंदिर ‘हिंगलाज देवी’ या ‘नानी मां’ के रूप में पूजित है, विशेषकर सिंधी और बलूच हिंदू समुदायों के बीच। उल्लेखनीय है कि यहां मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग भी देवी को ‘नानी पीर’ के रूप में मानते हैं और गहरी आस्था रखते हैं। हिंगलाज यात्रा एक कठिन, लेकिन आत्मिक रूप से अत्यंत गहन यात्रा मानी जाती है, जिसे ‘हिंगलाज तीर्थयात्रा’ भी कहा जाता है।
कटासराज मंदिर: शिव के आंसुओं से जन्मा तीर्थ
दूसरी ओर, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चकवाल जिले में स्थित कटासराज मंदिर भी भारतीय आस्था का एक अहम केन्द्र रहा है। यह भगवान शिव को समर्पित प्राचीन मंदिर है और इसके परिसर में कई अन्य छोटे मंदिर भी शामिल हैं। यहां का कटास कुंड अत्यंत पवित्र माना जाता है, जिसकी मान्यता यह है कि यह भगवान शिव के आंसुओं से बना है जब उन्होंने सती के वियोग में विलाप किया था। इतिहासकारों के अनुसार, यह स्थल कभी हिंदू धर्म के अध्ययन और दर्शन का एक प्रमुख केन्द्र था। महाभारत काल में पांडवों के यहां ठहरने की कथा, और आदि शंकराचार्य द्वारा दर्शन के प्रचार से इस स्थान की आध्यात्मिक गहराई और बढ़ जाती है। इसका वास्तुशिल्प हिंदू-बौद्ध शैली का बेहतरीन उदाहरण है।
आज, सीमाएं हमारे धर्मस्थलों से बड़ी हो गई हैं। पर अगर बलूचिस्तान स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरता है, तो यह केवल एक रणनीतिक घटनाक्रम नहीं होगा यह भारत के करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था की सीमाएं मिटाने वाला क्षण हो सकता है। इससे पहले जैसा करतारपुर ने दिखाया, कि जहां राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, वहां शांति और सांस्कृतिक पुनर्संयोजन भी संभव है। वैसे ही, हिंगलाज माता और कटासराज मंदिर के लिए भी ऐसे ही एक ‘आस्था कॉरिडोर’ की कल्पना की जा सकती है जो धर्म, संस्कृति और मानवता के पुल का काम कर सके।