India Special Commando: भारत की सरहदों की हिफाजत चाहे जमीन पर हो या आसमान में या फिर समंदर की अथाह गहराई ही क्यों न हो हमारे जांबाज हमेशा जान हथेली पर लेकर खड़े रहते हैं। फौलादी जिगर वाले इन लड़ाकों के जिगर में खून नहीं जुनून दौड़ता है। हमारे जांबाजों की शौर्य गाथाएं रोम-रोम में रोमांच भर देती हैं। वहीं दुश्मन के दिल को सदमे के कगार तक ले जाती हैं। भारत के सीमाओं की सुरक्षा के लिए आपने थल सेना, जल सेना और वायुसेना का नाम सुना ही होगा। इसके अलावा सीमाओं के भीतर और सीमायी क्षेत्र में देश की रक्षा, सुरक्षा और कानून के लिए कई तरह की फोर्स और पुलिस काम करती है। इनका एक-एक जवान वो तीर है जो निशाने पर ही लगता है। इन्हीं में से कई तरह के विशिष्ट काम और मिशन के लिए खास कमांडो कुछ विशेष बल तैयार किए जाते हैं। हालांकि, आज हम पांच पांडवों तरह देश की रक्षा करने वाले गरुड़ कमांडो, पैरा कमांडो, कोबरा कमांडो, एनएसजी कमांडो, मार्कोस कमांडो की बात करेंगे।
जब बात मुल्क की हिफाजत की आती है देश में हर तरह की फोर्स को अलर्ट पर रखा जाता है। इसी कारण पहलगाम हमले के बाद गरुड़ कमांडो, पैरा कमांडो, कोबरा कमांडो, एनएसजी कमांडो, मार्कोस कमांडो के सतर्कता और शौर्य की चर्चा हो रही है। आइये जानें इन कमांडो की खासियत जो देश को आवाम को गर्व से सिर उठाने का मौका देते हैं और हर मुश्किल घड़ी में ढाल बनकर खड़े रहते हैं। इनके हौसले और ट्रेनिंग के आगे दुश्मन की एक न चलती।
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गरुड़ कमांडो । Garud Commando
गरुड़ कमांडो आसमान में चील की तरह उड़ते हैं। इसके जवानों ने हवा की रफ्तार में गहराई का गुरुर समेटे हुए हैं। हवा की फुसफुसाहट भी इनके शौर्य की गवाही देती है। दुश्मन के हवाई क्षेत्र में हमला करने, रडार व अन्य उपकरणों को ध्वस्त करने, स्पेशल काम्बैट (लड़ाई) और रेस्क्यू (बचाव) ऑपरेशन के लिए इन्हें खासतौर पर तैयार किया जाता है। इनका नाम सुनकर ही विरोधी कांप उठते हैं।
- गरुड़ कमांडो आसमान के शिकारी हैं।
- गठन 2004 हुआ था।
- भारतीय वायुसेना का विशेष बल है।
- ये एयरबेस सुरक्षा, खोज-बचाव, हवाई अभियानों में हिस्सा लेते हैं।
- ये हेलिकॉप्टर से तेजी से उतरकर दुश्मन पर हमला कर सकते हैं।
- 2019 की बालाकोट एयर स्ट्राइक में एयरबेस सुरक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
चयन के लिए होते हैं कई पड़ाव
गरुड़ कमांडो बनने के लिए तीन साल की कठिन ट्रेनिंग (Garud Commando Selection Process) होती है। इनकी सबसे ज्यादा तैनाती जम्मू और कश्मीर में होती है और ये सेना, एयर फोर्स कमांडो के साथ मिलकर अपने ज्वाइंट एक्शन तेज करते हैं। एयरबोर्न ऑपरेशन, एयरफील्ड सीजर और काउंटर टेररिज्म का जिम्मा उठाने के लिए इन्हें ट्रेंड किया जाता है।
- मेडिकल पास होने के बाद लिखित परीक्षा होती है।
- इंग्लिश, गणित, फिजिक्स, रीजनिंग और जनरल अवेयरनेस की परीक्षा पास करना होता है।
- अडाप्टेबिलिटी (Adaptability) टेस्ट 1 और टेस्ट 2 होते हैं।
- अडाप्टेबिलिटी टेस्ट 1 में ऑब्जेक्टिव सवाल होते हैं।
- अडाप्टेबिलिटी टेस्ट 2 में ग्रुप डिस्कशन होता है।
- लास्ट में डायनामिक फैक्टर टेस्ट पास करना होगा।
- इसके बाद ट्रेनिंग दी जाती है।
कठिन ट्रेनिंग होती है
ट्रेनिंग पूरी करने के बाद ये कमांडो किसी भी परिस्थिति से निपटने में सक्षम होते हैं। खतरनाक हथियारों से लैस गरुड़ कमांडो दुश्मन को तुरंत खत्म कर देते हैं। जानें कैसे होती है ट्रेनिंग (Garud Commando Training)
- नदियों और आग से गुजरना
- बिना सहारे पहाड़ पर चढ़ना
- कई किलो बोझ के साथ कई किलोमीटर दौड़ाना
- सुनसान-घने जंगलों में रातें बिताना
पैरा कमांडो । Para Commando
पैरा कमांडो जमीन पर दुश्मन को धूल चटाते हैं। इसके जवाब न थके, न रुके का जीवंत रूप है। उनकी एक ही हुंकार दुश्मन के दिल की धड़कन रोकने के लिए काफी है। पैरा कमांडो, जिसे पैरा स्पेशल फोर्स या पैरा एसएफ के रूप में भी जाना जाता है। यह भारतीय सेना (Indian Army) की एक यूनिट है। इसे विशेष अभियानों के लिए तैयार किया जाता है। यह पैराशूट रेजिमेंट का एक हिस्सा है। मैरून रंग का बेरेट, शोल्डर टाइटल और बलिदान बैज पैरा एसएफ यूनिफॉर्म को आसानी से अलग पहचान देता है।
- पैरा कमांडो को आप जमीन का शेर कह सकते हैं।
- इसका गठन साल 1966 में हुआ था।
- ये भारतीय थल सेना का सबसे पुराना विशेष बल है।
- ये सर्जिकल स्ट्राइक, गुप्त अभियान, गहरी घुसपैठ में माहिर होते हैं।
- इन्हें पैराशूट से सीमा पार जाकर दुश्मन पर हमला करने की ट्रेनिंग भी मिलती है।
- साल 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक में इन्होंने LOC पार आतंकी ठिकानों को तबाह किया था।
पैरा कमांडो भारतीय सेना की इलीट रेजिमेंट है। सैनिकों को उच्च मानसिक मजबूती के साथ-साथ शारीरिक शक्ति की आवश्यकता होती है। पैरा कमांडो बनने के लिए भारतीय सेना से शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों को स्पेशलिस्ट ट्रेनिंग (Para Commando Selection Process) से गुजरना पड़ता है। प्रोबेशन पीरियड को पूरा करने के बाद सैनिक अपनी योग्यता के आधार पर स्पेशलिटी का चयन कर सकते हैं।
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कोबरा कमांडो । Cobra Commando
कोबरा कमांडो जंगलों में सांप की तरह चुपके से वार करते हैं। घाटियों के अंधेरों में सांप से फुर्तीले होते हैं। इनसे पूछने पर ये आसानी से बता देंगे की जंगल की हर पत्ती क्या कहती है। देश की आजादी से पहले ही 27 जुलाई 1939 को केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स की स्थापना की गई था। तब इसे क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस के रूप में जाना जाता था। हालांकि, आजादी के बाद 28 दिसंबर 1949 को संसद के एक अधिनियम के जरिए इसका नाम केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल दिया गया। साल 2008 में केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स ने कोबरा बटालियन का गठन किया था। नक्सलवाद जैसी गंभीर समस्या के लिए इसका इस्तेमाल होता है।
- कोबरा कमांडो जंगल के योद्धा होते हैं।
- इसका गठन साल 2009 में हुआ था।
- यह CRPF की विशेष इकाई है।
- कोबरा कमांडो नक्सल विरोधी अभियान, जंगल युद्ध में विशेषज्ञ होते हैं।
- इनके पास गुरिल्ला युद्ध, लंबे समय तक जंगल में टिकने की क्षमता होती है।
- 2021 में सुकमा ऑपरेशन में इन्होंने 15 नक्सलियों को मार गिराया था।
कैसे बनते हैं कोबरा कमांडो?
इसके जवाब दो से सात दिनों तक चलने वाले ऑपरेशन में पूरी तरह से सक्षम होते हैं। इसके लिए आपको मेंटली और फिजिकली फिट होना चाहिए और अंदर कोबरा कमांडो बनने का जज्बा हो। आइये जानें कोबरा कमांडो बनने की शुरुआत कैसे होती है? (Cobra Commando Selection Process)
- सबसे पहले UPSC की CAPF एग्जाम क्रैक करना होता है।
- एग्जाम में रैंक ऐसी हो कि आपको CRPF फोर्स मिले।
- CRPF की बेसिक ट्रेनिंग कंप्लीट करने के बाद जवान कोबरा कमांडो बनने के लिए अप्लाई कर सकते हैं।
बेहद कठिन होती है ट्रेनिंग
CRPF के जवान को कोबरा कमांडो बनने के लिए आंतरिक टेस्ट देना होता है। अगर इस परीक्षा को पास कर लिया तो 90 दिनों की बेसिक ट्रेनिंग (Cobra Commando Training) दी जाती है। हालांकि, अभी जवान कोबरा नहीं बना होता। इसके लिए जरूरी है कि वो 90 दिन में सभी बाधाओं का पार करे तब उसे उसे अगले पड़ाव के लिए भेजा जाता है। नहीं सामान्य रूप से फोर्स में सेवा देता रहता है।
- बेसिक ट्रेनिंग के बाद 90 दिनों की ट्रेनिंग होती है।
- यह ट्रेनिंग इतनी टफ होती है कि ज्यादातर लोग फेल हो जाते हैं।
- बीमार होने पर भी बाहर कर दिया जाता है।
- अंतिम सात दिनों की ट्रेनिंग बहुत ज्यादा मुश्किल होती है।
- बहुत से जवान इन सात दिनों में ही बाहर हो जाते हैं।
- फिजिकल ट्रेनिंग कोबरा स्कूल ऑफ जंगल वारफेयर एंड स्टैटिक्स में होती है।
- मैप रीडिंग, जीपीएस, इंटेलिजेंस और हेलीकॉप्टर से कूदना सिखाया जाता है।
- कोंबो फ्लाइंग यानी जमीन के रंग और पत्तियों की तरह ढलना सिखाया जाता है।
घने जंगलों में नक्सली और आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशनों को अंजाम देने के लिए इस विशिष्ट फोर्स को खास तरह की ट्रेनिंग मिली होती है। सबसे पहले उन्हें यह सिखाया जाता है कि जंगल में कैसे सरवाइव कैसे करना है। अगर ऑपरेशन के दौरान कोई रुकावट आए तो उससे लड़ने के लिए उन्हें सक्षम बनाया जाता है। इस बटालियन को इंस्पेक्टर जनरल रैंक का ऑफिसर हेड करता है।
एनएसजी कमांडो । NSG Commando
एनएसजी कमांडो सीमा के भीतर आतंक और किसी भी बड़े खतरे का खात्मा करते हैं। काले कपड़ों में इसके जवान हर मोर्चे पर दुश्मन के काल बन जाते हैं। बम की सुई पर किसके हाथों में है। इनके आंख और कान इसकी गवाही देते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड यानी NSG को देश में सुरक्षा के लिए सबसे ज्यादा भरोसेमंद माना जाता है। ये पलक झपकते दुश्मन की कमर तोड़ देते हैं। साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सरकार ने देश और खासतौर पर कश्मीर से आतंकियों का सफाया करने के लिए इसका गठन किया गया था। इन्हें VIP सुरक्षा में भी लगाया जाता है।
- एनएसजी कमांडो मल्टी परपस खिलाड़ी है।
- NSG के लड़कों को ब्लैक कैट कमांडो भी कहा जाता है।
- इसका गठन 1984 में हुआ था।
- नेशनल सिक्योरिटी गार्ड में विभिन्न बलों और सेना से जवान चुने जाते हैं।
- ये आतंकवाद-रोधी अभियान, बंधक संकट, हाईजैकिंग के खिलाफ काम कर सकते हैं।
- ये उच्च स्तरीय मार्शल आर्ट और शार्प शूटिंग में महारथी होते हैं।
- 2008 मुंबई हमला के दौरान इन्होंने ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो चलाकर आतंकियों को खत्म किया था।
राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड की ट्रेनिंग
NSG कमांडो अपनी बहादुरी और कठिन ट्रेनिंग के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी ट्रेनिंग (NSG Commando Training) का मकसद अधिक से अधिक योग्य जवानों का चयन करना होता है। इसके लिए कई चरणों में जवानों का चयन किया जाता है। ये अपनी-अपनी फोर्स के सर्वश्रेष्ट सैनिक होते हैं। इन्हें मानेसर एनएसजी के ट्रेनिंग सेन्टर में 90 दिन में ट्रेंड किया जाता है। हालांकि, NSG कमांडो बनने के लिए यहां के हर पड़ाव को पार करना होता है। आंकड़े बताते हैं कि 15-20 फीसदी जवान यहां से बाहर हो जाते हैं। (NSG Commando Selection Process)
- फिजिकल ट्रेनिंग: दौड़ना, कसरत करना, मार्शल आर्ट्स जैसी एक्टिविटी
- कई तरह के हथियार चलाना सीखना
- लंबी दूरी तक चलना, दौड़ना और भारी वजन उठाना और खराब मौसम में भी फिजिकल एक्टिविटी
- मेंटल ट्रेनिंग: तनावपूर्ण स्थितियों में शांत रहना
- निर्णय लेने की क्षमता विकसित करना
- टीम वर्क करना और मानसिक रूप से मजबूत बनाना आदि
- स्पेशलिस्ट ट्रेनिंग: बम निरोधक दस्ते का प्रशिक्षण
- हवाई हमलों से निपटने का प्रशिक्षण
- उग्रवादियों से लड़ने का प्रशिक्षण
- रात और जंगल की लड़ने और रहने की हर तरह की ट्रेनिंग दी जाती है।
एनएसजी का गठन भारत की विभिन्न फोर्सेज से विशिष्ट जवानों को छांटकर किया जाता है। इसमें 53 फीसदी सेना के जवान होते हैं। बाकी के 47 प्रतिशत पैरामिलिट्री फोर्सेज (CRPF, ITBP, RFA और BSF) से होते हैं। इनकी अधिकतम कार्य सेवा 5 साल तक होती है। हालांकि, ये पूरे 5 साल महज 15-20 फीसदी ही रह पाते हैं। सेवा के बाद उनके मूल फोर्स में भेज दिया जाता है। मुंबई आतंकी हमला, पठानकोट एयरबेस हमला, अक्षरधाम मंदिर जैसे आतंकी हमलों में कमांडो ने खुद की जान पर खेलकर सैकड़ों लोगों की जान बचाई है।
मार्कोस कमांडो । Marcos Commando
मार्कोस समंदर के शहंशाह हैं जो पानी में दुश्मन को डुबो देते हैं। समंदर के सन्नाटे में गरजती इनकी हुंकार पानी में आग लगाने के लिए काफी है। मार्कोस बता सकते हैं कि समंदर की तह में क्या लिखा है? मार्कोस या मरीन कमांडो फोर्स भारत के सबसे खतरनाक और घातक कमांडो होते हैं। यह इंडियन नेवी की स्पेशल ऑपरेशंस फोर्स यूनिट है, लेकिन इनकी ट्रेनिंग इस तरह से दी जाती है कि यह आसानी से जमीनी स्तर से लेकर आसमान तक दुश्मनों का खात्मा कर सकते हैं। भारतीय नौसेना की यह स्पेशल यूनिट फरवरी 1987 में बनाई गई थी। इन्हें दुनिया के सभी आधुनिक हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है।
- मार्कोस कमांडो को समंदर का शहंशाह कहा जा सकता है।
- इसका गठन साल 1987 में हुआ था।
- ये भारतीय नौसेना का समुद्री विशेष बल है।
- ये समुद्री में किसी हलचल और जहाजी अभियान में कुशल होते हैं।
- पानी के नीचे और सतह के साथ मरीन युद्ध में निपुण होते हैं।
- साल 2016 में अरब सागर में हाईजैक जहाज से 23 बंधकों को मुक्त कराया था।
कौन होते हैं मार्कोस कमांडो?
1987 में मार्कोस कमांडो की स्पेशल यूनिट (Marcos Commando Selection Process) इसलिए बनाई गई थी, क्योंकि उस वक्त आतंकवादी हमले और समुद्री लुटेरों का आतंक काफी तेजी से बढ़ने लगा था। उस पर काबू पाने और सबक सिखाने के लिए एक स्पेशल फोर्स की जरूरत थी। मार्कोस की ट्रेनिंग अमेरिकी नेवी सील्स की तरह कराई जाती है। फिलहाल, हमारे पास इसके करीब 1200 कमांडो हैं। इनका चयन बहुत ही कठिन ट्रेनिंग के बाद किया जाता है।
कैसे होती है ट्रेनिंग?
मार्कोस को भारत के सबसे खतरनाक कमांडो में गिना जाता है। इसकी ट्रेनिंग (Marcos Commando Training) भी बहुत ही खतरनाक होती है। हर किसी के लिए इसको क्वालीफाई कर पाना संभव नहीं होता है। मार्कोस के लिए चुने गए सैनिकों की ट्रेनिंग तीन साल की होता है। इसमें हजारों सैनिकों में से कुछ ही सैनिकों को ट्रेनिंग के लिए आगे भेजा जाता है। ट्रेनिंग के दौरान सैनिकों को 24 घंटे में से मात्र 4-5 घंटे तक ही सोने दिया जाता है। तड़के सुबह से शुरू हुई ट्रेनिंग देर शाम या रात तक भी चलती रहती है।
- मार्कोस की ट्रेनिंग सिर्फ समुद्र के साथ अलग-अलग जगह पर प्रशिक्षित किया जाता है।
- राजस्थान, तवांग, सोनमर्ग और मिजोरम भेजा जाता है।
- पीठ पर 20-25 किलो का वजन रखकर उन्हें दौड़ाया जाता है।
- भारी वजन लेकर कीचड़ के अंदर 800 मीटर की दौड़ होती है।
- सैनिकों को 8-10 हजार मीटर की ऊंचाई से पैराशूट से कूदना होता है।
- सैनिकों को आगे की ट्रेनिंग अमेरिका में नेवी सील के साथ ट्रेनिंग दी जाती है।
मार्कोस 1987 से अब तक कई ऑपरेशन में अपनी भूमिका निभा चुके हैं। पहली बार मार्कोस की तैनाती 1990 के दशक में वुलर झील में की गई थी। साल 1987 में हुए पवन ऑपरेशन, साल 1988 में कैक्टस ऑपरेशन , 1991 में ताशा ऑपरेशन, साल 1992 में जबरदस्त ऑपरेशन ,1999 में कारगिल वार , 2008 में ब्लैक टॉरनेडो ऑपरेशन और 2015 में हुए राहत ऑपरेशन में इनका प्रदर्शन देखने लायक है।
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भारत की रक्षा व्यवस्था में विशेष बलों की भूमिका किसी मजबूत किले की तरह है। हमारी अदृश्य पराक्रम के प्रहरी ये सभी विशेष बल भारत की सुरक्षा-व्यवस्था की रीढ़ हैं। मौका और माहौल कैसा भी हो आसमान, जमीन, जंगल, शहर, से लेकर समुद्र तक हमारे ये वीर सतर्क हैं। पहलगाम जैसे आतंकी हमलों के समय इनका महत्व और खास हो जाता है। पांच पांडवों की तरह काम करने वाले गरुड़, पैरा, कोबरा, एनएसजी व मार्कोस कमांडो मात्र सैनिक नहीं है। ये अपराजेय संकल्प की मूर्ति हैं। क्योंकि, इनकी शपथ ही है जहां नजर न पहुंचे, वहां भी तिरंगा सुरक्षित रहे। इनका शौर्य देश की सुरक्षा की नींव को और मजबूत करता है।