भारत-पाकिस्तान के तनाव के बीच सुप्रीम कोर्ट से एक हैरान करने वाली खबर सामने आई है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई है। इस याचिका में कहा गया है कि सरकार ने 43 रोहिंग्या को ज़बरदस्ती म्यांमार भेज दिया है। याचिकाकर्ता का दावा है कि इन 43 लोगों में छोटे बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और ऐसे लोग भी शामिल थे जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि इन लोगों को भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा (यानि इंटरनेशनल वॉटर) में छोड़ दिया। मोहम्मद इस्माइल और नूर उल अमीन की तरफ से दायर की गई इस याचिका में सत्या मित्रा याचिकाकर्ता के वकील हैं।
‘लाइव लॉ’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में इन दो रोहिंग्या शरणार्थियों द्वारा दायर एक नई जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि उनके समुदाय के लोगों को दिल्ली पुलिस ने बायोमेट्रिक डेटा एकत्र करने के बहाने हिरासत में लिया। इसके बाद उन्हें वैन और बसों में बैठाकर अलग-अलग पुलिस थानों में ले जाया गया, जहां उन्हें लगभग 24 घंटे तक रखा गया। इसके बाद सभी को दिल्ली के इंद्रलोक डिटेंशन सेंटर में भेज दिया गया। कुछ समय बाद, उन्हें पोर्ट ब्लेयर ले जाया गया, जहां आरोप है कि उन्हें नौसेना के जहाज़ों में जबरन हाथ बांधकर और आंखों पर पट्टी बांधकर रखा गया।
याचिकाकर्ता ने कहा है, “बाद में उन्हें जबरन नौसेना के जहाजों पर चढ़ा दिया गया, उनके हाथ बांध दिए गए और उनकी आँखों पर पट्टी बांध दी गई। वे पूरी यात्रा के दौरान उसी स्थिति में रहे। 15 साल की उम्र के बच्चे, 16 साल की उम्र की नाबालिग लड़कियां, 66 साल तक के बुज़ुर्ग और कैंसर और अन्य बीमारियों से पीड़ित लोग उन लोगों में शामिल हैं, जिन्हें उनके जीवन या सुरक्षा की परवाह किए बिना समुद्र में छोड़ दिया गया।” याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि यह निर्वासन असंवैधानिक घोषित किया जाए। उन्होंने केंद्र सरकार को निर्देश देने की अपील की है कि निर्वासित रोहिंग्याओं को वापस दिल्ली लाया जाए। साथ ही, मांग की गई है कि UNHCR कार्डधारक रोहिंग्याओं को गिरफ्तार न किया जाए, उनके साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार हो, हर व्यक्ति को 50 लाख रुपये मुआवजा मिले और निवास परमिट जारी करने की प्रक्रिया फिर से शुरू की जाए।
रोहिंग्याओं से जुड़े एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ सुनवाई कर रही है और 8 मई को इस मामले के दौरान कोर्ट को बताया गया कि पुलिस ने संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग यानि UNHCR कार्ड वाले कुछ शरणार्थियों को पुलिस अधिकारियों ने 7 मई की देर रात को गिरफ्तार किया और कोर्ट में मामला लंबित होने के बावजूद उन्हें निर्वासित कर दिया गया है।
वहीं, ‘डेक्कन हेराल्ड’ की एक खबर में बताया गया है कि 7 मई से अब तक असम और दिल्ली से कम से कम 142 रोहिंग्या लोगों को बांग्लादेश और म्यांमार भेजा गया है। ‘डेक्कन हेराल्ड’ ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि असम के मटिया डिटेंशन सेंटर में बंद 102 रोहिंग्या शरणार्थियों को बसों के जरिए त्रिपुरा ले जाया गया और वहां से उन्हें बांग्लादेश की सीमा पर भेज दिया गया। इसी तरह, दिल्ली में पकड़े गए कम से कम 40 रोहिंग्याओं को 7 मई को अंडमान ले जाया गया और वहां से समुद्र के रास्ते म्यांमार की ओर भेज दिया गया। दरअसल, ये रोहिंग्या म्यांमार के रखाइन प्रांत से जातीय हिंसा के कारण भागे थे और बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार में शरण लिए हुए थे। लेकिन म्यांमार में जारी संघर्ष और बांग्लादेश में खराब हालात के कारण कई रोहिंग्याओं ने अवैध रूप से भारत में प्रवेश कर लिया।
2017 में केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि भारत शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित 1951 के संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन और उस पर 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। केंद्र सरकार ने बताया था कि 40,000 से अधिक अवैध रोहिंग्या अप्रवासी भारत में रह रहे हैं, जिनमें से अधिकतर जम्मू और कश्मीर, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान राज्यों में रह रहे हैं। आज के समय में यह संख्या बढ़कर लाखों में पहुंच गई होगी। इस बात की अक्सर खबरें आती हैं कि भारत में रहने वाले रोहिंग्या किस तरह क्राइम में शामिल होते हैं। जिन UNHCR कार्ड्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिए जा रहे हैं भारत उस कन्वेंशन पर हस्ताक्षरकर्ता तक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने अवैध रोहिंग्याओं पर क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने बीते 8 मई को को दिल्ली से अवैध रोहिंग्या मुस्लिम प्रवासियों के निर्वासन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इसके लिए वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस और वकील प्रशांत भूषण ने याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि रोहिंग्या म्यांमार में नरसंहार का सामना कर रहे हैं और तर्क दिया कि शरणार्थी के रूप में उन्हें भारत में रहने का अधिकार है। इस पर कोर्ट ने कहा कि भारत में कहीं भी रहने का अधिकार केवल उसके नागरिकों को ही है और गैर-भारतीयों के साथ विदेशी अधिनियम के अनुसार व्यवहार किया जाएगा।
रोहिंग्या के हमदर्द कौन हैं?
रोहिंग्याओं के लिए याचिका दायर करने वाले लोगों में प्रशांत भूषण शामिल हैं। प्रशांत भूषण वही हैं जिन्होंने CAA का विरोध किया था। CAA यानि जिससे देश के पड़ोस में पीड़ित हिंदुओं शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलती। लेकिन प्रशांत की नज़र में CAA एक भेदभावपूर्ण और मनमाना था और भारत की स्थापना के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। लगातार प्रशांत ने CAA को लेकर इस तरह के बयान दिए और उसका विरोध कर रहे लोगों के समर्थन में खड़े रहे हैं। हिंदुओं शरणार्थी विरोध क्यों रोहिंग्याओं को समर्थन में खड़े हैं ये अपने आप में ही कई तरह के सवाल खड़े करता है।
एक और वकील हैं कॉलिन गोंजाल्विस, वे भी CAA के विरोध में कोर्ट में केस लड़ रहे थे लेकिन वही रोहिंग्याओं के समर्थन में नज़र आते हैं। लीगल राइट्स ऑब्जर्वेटरी ने खुलासा किया था कि कॉलिन गोंजाल्विस के एनजीओ ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क (HRLN) को चार यूरोपीय चर्चों से 50 करोड़ रुपये मिले थे, जिसका उद्देश्य अदालतों में सीएए विरोधी दंगाइयों और कार्यकर्ताओं का कानूनी रूप से बचाव करना था। The Commune की एक रिपोर्ट कहती है कि कोलिन गोंजाल्विस 2002 के गुजरात दंगों के बाद प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ़ अपनी साजिश के लिए मशहूर हुए थे और वे गोंजाल्विस भारत भर में सीएए विरोधी दंगों के पीछे के साजिशकर्ताओं में से एक के रूप में उभरे थे।