नक्सलवाद पार्ट-5: ग्रीन होता रेड कॉरिडोर! समावेशी विकास से कैसे लगी नक्सलवाद पर लगाम?

नक्सलवाद पार्ट-5: पिछले 11 साल में नक्सलियों पर कड़ी नकेल कसी गई है। हालांकि, ये हथियारों से एक्शन के साथ समावेशी विकास के कारण संभव हुआ है। आइये जानें इसके पडाओ?

Naxalism Part-5

Naxalism Part-5

नक्सलवाद पार्ट-5: आजादी के दशकों बाद बुनियादी सुविधाएं जैसे सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य सेवाएं नक्सल इलाकों में नहीं पहुंची। कंपनियों को खनिज ब्लॉक देने के लिए आदिवासियों की भूमि छीनी गई। इन इलाकों से उठी राजनीतिक आवाजें अक्सर दबा दी गईं। वहीं सरकारी सह पर पुलिसिया दमन ने निर्दोष आदिवासियों को नक्सली बता दिया। इससे स्थानीय लोगों का गुस्सा फूटा। नक्सलियों ने इस गुस्से को हथियार बना लिया। सरकारी विफलता, सामाजिक असमानता के कारण उन्हें स्थानीय समर्थन मिलने लगा। इसी का परिणाम था कि खौफनाक रेड कॉरिडोर हम सबके सामने आया। हालांकि, साल 2014 के बाद से हुए कार्रवाई और चलाई गई योजनाओं के कारण अब ये सिकुड़ गया है।

नक्सलवाद पार्ट-4 में हमने रेड कॉरिडोर के पनपने के कारणों पर चर्चा की थी। अब हम आपको बताएंगे कि कैसे 2014 के बाद सरकार ने नक्सलियों पर प्रहार करते हुए आदिवासियों में लोकतंत्र का प्रति आस्था जगाई। जिसके परिणाम स्वरूप रेड कॉरिडोर सिकुड़ गया है।

समावेशी विकास पर ध्यान

आदिवासी देश के विकास में रोड़ा नहीं बल्कि भारत के विकास का मजबूत हाथ हैं। नक्सलवाद को खत्म करने के लिए नक्सलियों पर प्रहार एक मात्र साधन नहीं है। इसके लिए जरूरी है कि इन इलाकों में विकास पहुंचाया जाए और आदिवासियों को भरोसे में लिया जाए। सरकार उनकी जरूरत, अधिकारों और सुविधाओं पर ध्यान दे। उसी को समझते हुए NDA के दौर में नक्सलियों पर हथियार का कार्रवाई करते हुए समावेशी विकास पर ध्यान दिया। नतीजा ये हुआ की कभी 200 जिलों तक फैला नक्सलवाद अब गिनती के जिलों में रह गया है।

कुछ ऐसे बना समावेशी प्लान

मिशन मार्च 2026 पर हुआ काम

केंद्र सरकार 2014 के बाद से ही देश के लिए नक्सलवाद को बड़ा खतरा मान रही थी। इस कारण वो लगातार नक्सल प्रभावित राज्य सरकार के साथ मिलकर कई योजनाओं के साथ ही नक्सलियों के खात्मे के लिए काम करती रही। साल 2019 में जब देश में दूसरी बार मोदी प्रधानमंत्री बने तो इसमें और तेजी आई। इस कार्यकाल में गृह मंत्रालय अमित शाह के हाथों गया। एक ओर केंद्र सरकार और राज्य सरकार विकास के लिए काम कर रहीं थी। वहीं दूसरी ओर अमित शाह ने नक्सलवाद को खत्म करने का संकल्प ले लिया। उन्होंने मार्च 2026 तक देश को लाल आतंक से आजाद कराने का वादा किया था और इस ओर तेजी से काम करने लगे।

नक्सलवाद खत्म करने की योजनाएं

समाधान एक्शन प्लान

वामपंथी उग्रवाद यानी नक्सलवाद के खिलाफ बहुआयामी रणनीति पर काम किया गया। सुरक्षा, विकास और अधिकार-आधारित सशक्तिकरण पर सरकार ने फोकस किया। इससे नक्सलवाद से प्रभावित इलाकों का परिदृश्य बदल गया है। राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक प्रतिबद्धता और लोगों की भागीदारी इसके खात्मे के लिए काम आई। इससे अब देश वामपंथी उग्रवाद मुक्ति की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है।

आदिवासी विकास की योजनाएं

मिट्टी में मिलाए गए नक्सली

वर्ष 2024 में नक्सल विरोधी अभियान में प्राप्त सफलता को लगातार आगे बढ़ाया गया। इसी कारण वर्ष 2025 में भी सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी मिली है। 4 महीने में 200 से ज्यादा हार्डकोर नक्सलियों को न्यूट्रलाइज़्ड कर दिए गए हैं। वहीं नाइट लैंडिंग हेलीपैड, फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशन आदि का निर्माण किया गया है जिस कारण सुरक्षा बलों के लिए काम करना आसान हुआ है।

सिकुड़ गया नक्सलियों का आतंक

साल 2007 में देश के करीब 200 जिले नक्सलवाद से प्रभावित थे। इनकी संख्या साल 2017 में घटकर 90 के आसपास आ गए। अब अप्रैल 2024 में ये संख्या घटकर 38 पर आ गई है। पहले 18 हजार वर्ग किलोमीटर का नक्सल प्रभावित इलाका देश में था। अब ये 4200 किलोमीटर तक सिमट गया है। अधिक प्रभावित जिलों की संख्या 12 से घटकर 6 हो गई है। इसमें छत्तीसगढ़ बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा का नाम है। वहीं झारखंड का एक पश्चिमी सिंहभूम और महाराष्ट्र का एक गढ़चिरौली शामिल है। वहीं पिछले 10 साल में 8,000 से अधिक नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है। इस कारण नक्सल घटनाओं में भी कमी आई है।

समानांतर सरकार की कमर तोड़ी

करीब 60 साल में नक्सलियों ने आदिवासी इलाकों में पैठ बना ली थी। घने जंगल और पहाड़ी इलाके इन्हें सेना और पुलिस से बचा रहे थे। दूसरी ओर इलाकों की सामाजिक संरचना ने उन्हें विस्तार का बल दिया। अनुसूचित जनजातियां और आदिवासी अशिक्षा और गरीबी से जूझ रहे थे। इसका लाभ लेते हुए नक्सलियों ने ‘जनताना सरकार’ की तर्ज पर समानांतर शासन शुरू कर दिया था। वो लगातार जबरन वसूली, खनिज और लकड़ी की तस्करी करते थे। हालांकि, पिछले 11 साल में सरकार ने इस पूरे तंत्र को तोड़ने का काम किया है। इलाकों में विकास का रास्ता आसान किया गया है। इससे आदिवासियों में लोकतंत्र के प्रति आस्था जागी है।

नक्सलवाद पर सीरीज और अन्य नक्सली खबरों के लिए यहां क्किल करें।

एक्शन के साथ समावेशी विकास से अंत

रेड कॉरिडोर भौगोलिक बेल्ट बस नहीं है। ये आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक उपेक्षा का जीवंत दस्तावेज है। यह साबित करता है कि देश के आजाद होने के बाद भी लोकतंत्र और विकास देश के अंतिम छोर तक नहीं पहुंची। इस कारण हताश परेशान लोगों को देश के खिलाफ बरगलाना आसान हो गया। नतीजा ये हुआ की जंगलों में बंदूकें गूंजने लगीं। अब वर्षों तक अथक प्रयास और कोशिश के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इसे सिकुड़ने पर मजबूर कर दिया है। इससे साफ होता है कि नक्सलियों के खात्मे के लिए केवल हथियारों की कार्रवाई नहीं बल्कि ग्राम स्वराज, शिक्षा और समावेशी विकास की जरूरत है।

Exit mobile version