भारत अब आतंक के कारोबार को जड़ से उखाड़ने की दिशा में आखिरी चोट की ओर बढ़ रहा है। ऑपरेशन सिन्दूर के तहत आतंकी ठिकानों पर सीधी कार्रवाई के बाद अब बारी है उन हाथों की, जो परदे के पीछे से इन दहशतगर्दों को ज़िंदा रखते हैं और वो है पाकिस्तान की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था। IMF से मिली थोड़ी बहुत सांस राहत के बावजूद, पाकिस्तान जल्द ही एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घिरने वाला है। भारत ने फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के दरवाज़े पर दस्तक दे दी है, ताकि पाकिस्तान को दोबारा ग्रे लिस्ट में धकेला जा सके।
सरकारी सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भारत जून 2024 में FATF की बैठक से पहले संबंधित देशों से संपर्क कर समर्थन जुटाएगा। भारत का सीधा आरोप है कि पाकिस्तान आज भी प्रतिबंधित आतंकी संगठनों को फंडिंग और समर्थन देने से बाज नहीं आ रहा, और यही उसका असली चेहरा है जिसे दुनिया के सामने लाना ज़रूरी है।
FATF की अगली बैठक में सबूत पेश कर सकता है भारत
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, भारत अब आतंक के खिलाफ अपनी लड़ाई को केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रखना चाहता, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी पाकिस्तान की असलियत उजागर करने के लिए पूरी तरह तैयार है। हाल के पहलगाम आतंकी हमले और सीमा पार से ड्रोन के ज़रिए हथियारों की सप्लाई जैसे मामलों को भारत ठोस सबूत के तौर पर FATF के सामने रखने जा रहा है। भारत का साफ कहना है कि पाकिस्तान की सरज़मीं पर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन आज भी खुलेआम सक्रिय हैं, और वहां की सरकार इन्हें रोकने में या तो असमर्थ है या अनिच्छुक। FATF जो मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग पर नज़र रखने वाली वैश्विक संस्था है उसकी आगामी बैठक में भारत इन सबूतों के साथ पाकिस्तान को फिर से ग्रे लिस्ट में डलवाने की मजबूत कोशिश करेगा।
FATF ग्रे लिस्ट में आने के बाद क्या होगा
पाकिस्तान को एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय आर्थिक दबाव झेलना पड़ सकता है, क्योंकि भारत ने उसे FATF की ग्रे लिस्ट में डालने की तैयारी तेज कर दी है। FATF यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स एक वैश्विक संस्था है, जो मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग पर नज़र रखती है। 1989 में पेरिस में स्थापित यह संस्था दुनिया भर के उन देशों की निगरानी करती है जो इन अपराधों पर लगाम लगाने में नाकाम रहते हैं। हर साल यह संस्था तीन अहम बैठकें करती है फरवरी, जून और अक्टूबर में जहां सदस्य देश तय करते हैं कि किन देशों को ‘बढ़ी हुई निगरानी’ यानी ग्रे लिस्ट या ब्लैक लिस्ट में डाला जाना चाहिए।
अगर कोई देश ग्रे लिस्ट में शामिल होता है तो इसका असर सिर्फ उसकी छवि पर नहीं, बल्कि उसकी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अध्ययन के अनुसार, किसी देश के ग्रे लिस्ट में आने के बाद उसमें होने वाला विदेशी निवेश काफी हद तक कम हो जाता है। औसतन उसकी अर्थव्यवस्था को निवेश के रूप में GDP का करीब 7.6 प्रतिशत का नुकसान होता है। इसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करीब 3 फीसदी घटता है, पोर्टफोलियो निवेश में लगभग 2.9 फीसदी की गिरावट आती है और अन्य निवेशों में करीब 3.6 फीसदी की कमी दर्ज होती है। इसका मतलब यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई भी देश उस पर भरोसा करने से कतराने लगता है।
भारत इस बार FATF की जून 2024 में होने वाली बैठक से पहले अन्य सदस्य देशों से समर्थन जुटाने में लगा हुआ है। अभी FATF में 40 सदस्य देश हैं और इनमें से कई देशों ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की खुलकर निंदा की है। यह भारत के लिए एक कूटनीतिक अवसर है। हालांकि पाकिस्तान FATF का पूर्ण सदस्य नहीं है, लेकिन वह एशिया पैसिफिक ग्रुप ऑन मनी लॉन्ड्रिंग (APG) का हिस्सा है, जो FATF से जुड़ी एक क्षेत्रीय इकाई है। भारत दोनों संस्थाओं का सदस्य है और यही उसे वह आधार देता है जिससे वह पाकिस्तान को दोबारा वैश्विक मंच पर घेर सके।