बंगाल की फिजाओं में एक बार फिर वो सवाल गूंज रहा है जो अक्सर सियासत के शोर में दबा दिया जाता है क्या बंगाल मतदाता सूची की नींव इतनी कमजोर हो चुकी है कि कोई भी बाहरी, फर्जी कागज़ों के दम पर यहां का नागरिक बन जाए? पश्चिम बंगाल में दर्ज मतदाता सूची में बड़ी संख्या में विदेशी नागरिकों, खासकर बांग्लादेशियों के नाम शामिल पाए गए हैं, जिन्होंने फर्जी दस्तावेजों के जरिए खुद को भारतीय दिखाया। पुलिस का कहना है कि इनकी पहचान की जा रही है और इन पर नजर रखी जा रही है। इस पूरे खेल के पीछे जिस शख्स का नाम सामने आया है, वह है आज़ाद मलिक एक पाकिस्तानी नागरिक जिसे हाल ही में कोलकाता से प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया।
जांच से पता चला है कि उसने पहले खुद के लिए बांग्लादेश की नागरिकता का इंतज़ाम किया और फिर फर्जी दस्तावेजों की मदद से भारतीय पहचान भी हासिल कर ली। यही नहीं, उसने और भी कई विदेशी नागरिकों के लिए वोटर आईडी, आधार कार्ड और यहां तक कि भारतीय पासपोर्ट तक बनवा दिए। यह मामला केवल एक फर्जीवाड़ा नहीं, बल्कि उस खतरनाक साज़िश की परतें खोलता है जो भारत की नागरिकता प्रणाली और चुनावी प्रक्रिया को भीतर से खोखला करने पर तुली है। सवाल उठना लाजिमी है ये सब इतने लंबे समय तक कैसे चलता रहा, और किनकी शह पर?
जांच में क्या आया सामने
जांच में सामने आया है कि पाकिस्तानी नागरिक आज़ाद मलिक न सिर्फ अवैध रूप से भारत में दाख़िल हुआ, बल्कि पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना ज़िले की दमदम-उत्तर विधानसभा सीट पर खुद को वोटर के तौर पर दर्ज भी करा चुका था। यही सीट दमदम लोकसभा क्षेत्र के सात विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। चौंकाने वाली बात यह है कि मलिक ने 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव और फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में बाकायदा वोट भी डाला। यानी न सिर्फ कागज़ी पहचान, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लेकर खुद को ‘वैध भारतीय’ भी साबित करने की कोशिश की।
लेकिन बात यहीं तक सीमित नहीं है। सूत्रों का कहना है कि आज़ाद मलिक अकेला नहीं था ऐसे कई विदेशी नागरिक हैं जिन्होंने फर्जी दस्तावेजों के सहारे भारतीय मतदाता बनकर चुनावों में हिस्सा लिया, सिर्फ इसलिए ताकि खुद को भारत का नागरिक साबित कर सकें। जांच एजेंसियों की नजर अब उन नेटवर्क्स पर भी है, जो अस्पतालों, ग्राम पंचायतों और नगरपालिका कार्यालयों के ज़रिए अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए फर्जी जन्म प्रमाणपत्र तैयार करवा रहे हैं। साथ ही, राज्य के खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग के भीतर सक्रिय उन एजेंटों की भी पहचान की जा रही है जो इन्हीं घुसपैठियों के लिए नकली राशन कार्ड बनवाने का काम कर रहे हैं।
जांच में यह भी स्पष्ट हुआ है कि यही फर्जी जन्म प्रमाणपत्र और राशन कार्ड उस कड़ी की जड़ हैं, जिनसे आधार कार्ड, वोटर आईडी, पैन कार्ड और अंततः फर्जी पासपोर्ट तक बनवाए जा रहे हैं। यह एक सुनियोजित और चरणबद्ध साजिश है पहले भारत में घुसपैठ, फिर स्थानीय एजेंटों से संपर्क, पैसे देकर सुरक्षित आश्रय, और इसके बाद नकली दस्तावेजों के ज़रिए एक नई पहचान हासिल करना। यह पूरा रैकेट न सिर्फ भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद को भी खोखला कर रहा है। अब सबसे बड़ा सवाल ये है यह खेल इतने लंबे वक्त तक किसकी जानकारी में चलता रहा, और कौन हैं वो ताकतें जो इस साजिश पर अब भी चुप्पी साधे बैठी हैं?