भारत की सियासत इतनी बेलगाम हो गई है कि यहां वोट बैंक के लिए नेता कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। भीतरी मामलों की बात हो तो चलो ठीक है लेकिन कुछ सियासी दल तो देश की बात करने में हिचकिचाते हैं। जब देश अपने कूटनीतिक तरकश से आतंकवाद पर तीर छोड़ रहा है तो कुछ लोग अपनी खिचड़ी अलग ही पका रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत सरकार ने फैसला किया कि वो पाकिस्तान और उससे पाले आतंकवाद को दुनिया में बेनकाब करेगी। इसके लिए सांसदों के दलों को दुनियाभर में भेजा जाएगा। ऐसा भी नहीं कि इसमें बीजेपी के सदस्य या सिर्फ हिंदू सांसद ही होंगे। हालांकि, इसके बाद भी कुछ सियासी दलों को इससे दिक्कत हो रही है। पहले कांग्रेस ने शशि थरूर के नाम पर तमंचा रख दिया। अब पश्चिम बंगाल ममता बनर्जी और उनके बल्लेबाज सांसद यूसुफ पठान सुर्खियां बटोर रहे हैं।
केंद्र सरकार ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर बेनकाब करने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेज रही है। ऐसे में बंगाल की दीदी ममता बनर्जी और उनके सिपहसालार युसूफ पठान ने किनारा कर लिया है। सुना है, पठान साहब को तो सीधे बुलावा आया था पर उन्होंने भी ना कर दिया। अब सवाल ये है कि आखिर माजरा क्या है? क्या ये सिर्फ दिल्ली दूर है या फिर दाल में कुछ काला है?
ममता बनर्जी ने बनाई दूरी
ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने रविवार को केंद्र सरकार को सूचना ही है। इसमें उन्होंने कहा कि पहलगाम आतंकवादी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद आतंकवाद के खिलाफ भारत का संदेश ले जाने वाले सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों में उनका दल भाग नहीं लेगा। जानकारी के अनुसार, पार्टी ने प्रतिनिधिमंडल में शामिल सांसद यूसुफ पठान को आधिकारिक यात्रा का हिस्सा न बनने का निर्देश दिया है। हालांकि, पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक कारण नहीं बताया गया।
‘मैं उपलब्ध नहीं हूं’
जानकारी के अनुसार, सरकार ने नाम तय करने से पहले किसी भी दल की राय नहीं मांगी है। उन्होंने सीधे सदस्यों से संपर्क किया था। इसी आधार पर यूसुफ पठान से भी पाकिस्तान की पोल खोलने के लिए संपर्क किया गया था। हालांकि, उन्होंने साफ कह दिया कि वो डेलिगेशन के साथ विदेश जाने के लिए उपलब्ध नहीं हो पाएंगे। माना ये भी जा रहा है कि ममता बनर्जी ने पार्टी की राय न लेने पर टीएमसी ने युसूफ से सरकार को मना करने के लिए कहा होगा।
अभिषेक बनर्जी अलग बन रहे नेता
ममता बनर्जी के रुख पर ही उनके उत्तराधिकारी अभिषेक बनर्जी भी चल रहे हैं। हर मुद्दे पर उनकी भी आदत केंद्र को विरोध करने की हो गई है। चाहे वो विषय आतंकवाद के विरोध का ही क्यों न हो। प्रतिनिधिमंडल बनाने के मामले पर उन्होंने कहा कि राष्ट्रहित में आतंकवाद के खिलाफ केंद्र सरकार जो भी फैसला लेगी टीएमसी कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ी रहेगी। उन्होंने कहा कि डेलिगेशन भेजे जाने से कोई समस्या नहीं है। हालांकि, डेलिगेशन में हमारी पार्टी से कौन जाएगा यह पूरी तरह से हमारी पार्टी का फैसला होना चाहिए।
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पहले भी विवादों में रहे हैं पठान
पश्चिम बंगाल के बहरामपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद यूसुफ पठान पहले भी विवादों में रहे हैं। मुर्शिदाबाद हिंसा के समय उनकी चाय की चुस्की वाली फोटो काफी वायरल हुई थी। तनाव के बीच यूसुफ पठान ने इंस्टाग्राम पर चाय की चुस्की लेते हुए फोटो पोस्ट किया था। इसी सियासी दल और सोशल मीडिया आगबबूला गया था। लोग उनकी पोस्ट को हिंदुओं पर हमले के बीच संवेदनहीनता का सबूत बता रहे थे। शहजाद पूनावाला ने तो कह दिया था कि बंगाल जल रहा है ममता हिंसा को हवा दे रही हैं और पठान चाय की चुस्की में मस्त हैं! वामपंथियों ने भी इस पोस्ट पर ममता बनर्जी को निशाने में लिया था।
7 प्रतिनिधिमंडल करेगा दौरा
सात प्रतिनिधिमंडलों में देश के दिग्गज नेता शामिल हैं। सत्तारूढ़ दल भाजपा के रविशंकर प्रसाद और बैजयंत पांडा, शिवसेना के श्रीकांत शिंदे और JDU के संजय झा शामिल हैं। वहीं विपक्षी दलों से कांग्रेस के शशि थरूर, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) की कनिमोझी, NCP (SP) की सुप्रिया सुले को मिशन का नेतृत्व करने के लिए चुना गया है। वहीं इनके साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद, सलमान खुर्शीद, एमजे अकबर, मनीष तिवारी, असदुद्दीन ओवैसी जैसे 55 अनुभवी चेहरे विदेशों का दौरा करेंगे। ये भी वैश्विक मंच पर भारत की नीति को बुलंद करेंगे और पाकिस्तान की हरकतों को बेपर्दा करेंगे।
ममता बनर्जी का ये किरदार पुराना
ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस कोई पहले बार नहीं है जब इतने गंभीर सवाल उठ रहे हैं। उनपर पहले भी कई बार एंटी हिंदू होने के आरोप लगते रहे हैं। मुर्शिदाबाद हिंसा में हिंदुओं पर हमले हुए हो या कोलकाता रेप-मर्डर केस में उनकी चुप्पी से तुष्टिकरण की बू आती रही है। वक्फ बोर्ड की जोरदार पैरवी और मदरसों को दी गई सुविधाओं ने उनकी मुस्लिम वोट बैंक के लिए रची गई स्क्रिप्ट को हमेशा उजागर किया है। दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजा जैसे हिंदू त्योहारों पर पाबंदियां, CAA और NRC के खुले विरोध के कारण विरोधियों ने उन पर राष्ट्रविरोधी होने का ठप्पा भी लगा दिया है। कई मौकों पर स्क्रिप्ट भले बदल जाए पर ममता का ये किरदार पुराना ही है।
क्या राष्ट्रहित से ऊपर है सियासी रणनीति?
देश आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक मंच पर एकजुटता का परचम लहराने को तैयार है। इस बीच टीएमसी के इस फैसले ने सियासी हलकों में खलबली मचा दी है। यह सियासत का मुकाम नहीं, जहां इत्तेफाक की बात हो। इसलिए कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी केंद्र से सियासी अदावत के कारण इससे पीछे हट रही हैं। टीएमसी ने अपना राग अलापना शुरू कर दिया है। ‘देश पहले या दल? के सवाल पर वो पार्टी ने सांसद यूसुफ पठान को भी पीछे खींच लाई हैं। ऐसे में पठान का इनकार और ममता की दूरी सवालों के घेरे में है। सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रहित से ऊपर भी कोई सियासी रणनीति हो सकती है?