सुप्रीम कोर्ट में ‘रोहिंग्याओं को जबरन समंदर में फेंके जाने के दावे’ वाली याचिका पर सुनवाई की गई। दो रोहिंग्याओं द्वारा दायर की गई इस याचिका पर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन.के. सिंह की पीठ ने सुनवाई की है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर चिंता जताई कि क्या उसे उस याचिका पर विचार करना चाहिए जिसमें यह दावा किया गया है कि भारत सरकार जबरन रोहिंग्या शरणार्थियों को देश से बाहर निकाल रही है और उन्हें अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा में छोड़ रही है। अंत में कोर्ट ने बिना किसी ठोस सबूत के इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया है।
‘बार ऐंड बेंच’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सूर्यकांत ने इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से कहा, “हर बार आप कोई नई कहानी लेकर आते हैं। अब ये इतनी सुंदर तरीके से गढ़ी गई कहानी कहां से आ रही है?…वीडियो और फोटो कौन खींच रहा था? वह वापस कैसे आया? आपके पास ठोस प्रमाण क्या हैं?” उन्होंने नाराज़गी जताते हुए कहा कि जब देश इतने मुश्किल समय से गुजर रहा है, तब आप इस तरह की कल्पनाओं वाली याचिकाएं लेकर आ जाते हैं।
इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें पेश कीं लेकिन अदालत उनके तर्कों से संतुष्ट नहीं हुई। गोंसाल्वेस ने बताया कि याचिकाकर्ताओं को कथित घटना की जानकारी फोन कॉल के माध्यम से मिली है। उन्होंने कहा कि रोहिंग्याओं को अंडमान ले जाकर लाइफ जैकेट पहनाकर समुद्र में छोड़ दिया गया और इस संबंध में एक कॉल म्यांमार से आया था। उन्होंने कहा, “याचिकाकर्ता दिल्ली में हैं और उन्हें फोन पर जानकारी दी गई है। हमारे पास उस कॉल का अनुवाद भी है। विदेशी मीडिया रिपोर्टों में भी इस घटना का ज़िक्र है और उन्हें विश्वसनीय बताया गया है।” इसके आधार पर उन्होंने कोर्ट से मामले की जांच के निर्देश देने की मांग की।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और याचिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा, “हमें दिखाइए कि इन कॉल्स की पुष्टि किसने की है और किसे इस घटना की प्रत्यक्ष जानकारी है? जब तक कोई व्यक्ति स्वयं मौके पर मौजूद होकर यह सब नहीं देखता, तब तक इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। रिपोर्टों को रिकॉर्ड पर लाइए, हम उन्हें देखेंगे। लेकिन जो लोग बाहर बैठे हैं, वे हमारे देश की संप्रभुता और अधिकार को चुनौती नहीं दे सकते।” कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि बिना ठोस और प्रत्यक्ष प्रमाणों के वह इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह तभी कोई कदम उठाएगा, जब याचिकाकर्ता अपने दावों के पक्ष में पुख्ता और प्रमाणिक साक्ष्य प्रस्तुत करें। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “यह मामला पहले किसी अन्य देश में भी सामने आया था लेकिन हमें नहीं मालूम वहां क्या सबूत दिए गए थे। यदि आपके पास मजबूत तथ्यात्मक आधार है, तो हम भी मानवाधिकार से जुड़े मामलों में हस्तक्षेप कर सकते हैं। पर हम कह रहे हैं, पहले सबूतों को रिकॉर्ड पर लाइए। आप हर दिन सोशल मीडिया की सामग्री उठाकर कोर्ट में याचिका नहीं ला सकते।” कोर्ट अब 31 मई को इस मामले की अगली सुनवाई करेगा।