पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद तालिबान ने इस हमले की निंदा करते हुए इसे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बताया था। अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल कहर बाल्खी द्वारा जारी एक बयान में कहा गया था, “अफगानिस्तान का विदेश मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हाल ही में पर्यटकों पर हुए हमले की कड़ी निंदा करता है और शोक संतप्त परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करता है। इस प्रकार की घटनाएँ क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के प्रयासों को नुकसान पहुंचाती हैं।”
तालिबानी शासन द्वारा भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालातों पर भी चिंता व्यक्त की गई थी। अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया था, “अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात के विदेश मंत्रालय ने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर चिंता व्यक्त की है और माना है कि इस तनाव का और बढ़ना क्षेत्र के हित में नहीं है। इस्लामिक अमीरात का यह भी कहना है कि सुरक्षा और स्थिरता पूरे क्षेत्र के सभी देशों के लिए सामूहिक हित में है। साथ ही, दोनों पक्षों से संयम बरतने और अपने विवादों का समाधान बातचीत और कूटनीति के माध्यम से करने की अपील की गई है।“
क्या हैं इस बातचीत के मायने?
जयशंकर की तालिबान के साथ इस बातचीत के कई मायने निकाले जा रहे हैं। इसे ना केवल दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्तों को बढ़ाने बल्कि व्यापार से लेकर पाकिस्तान को घेरने की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है। इससे पहले भारत और तालिबान के बीच राजनीतिक संपर्क 1999-2000 में हुआ था, जब दिसंबर 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी-814 के अपहरण के बाद तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह तालिबान के विदेश मंत्री वकील अहमद मुत्तवकिल के साथ बातचीत की थी।
भारत-तालिबान के लिए कूटनीतिक मायने
जयशंकर की यह बातचीत 2021 के बाद से भारत और अफगानिस्तान के बीच सबसे उच्च स्तर की सीधी बातचीत है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि भारत तालिबान से बातचीत नहीं कर रहा है। विदेश सचिव विक्रम मिसरी के अलावा विदेश मंत्रालय के अधिकारी भी तालिबान के विदेश मंत्रालय से बातचीत कर चुके हैं। भले ही भारत ने अब तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है लेकिन इस बातचीत से कम-से-कम इतना तो पता चलता है कि भारत जमीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए व्यवहारिक कूटनीति अपना रहा है। भारत का अफगानिस्तान में हमेशा से यह प्रयास रहा है कि वहां स्थायित्व बना रहे और आतंकवाद को बढ़ावा न मिले। भारत द्वारा दी गई मानवीय सहायता और पुनर्निर्माण में योगदान जैसी चीज़ें इस नीति का हिस्सा रही हैं। जयशंकर की यह बातचीत रिश्तों को औपचारिक मान्यता की ओर न सही लेकिन व्यावहारिक सहयोग और संपर्क बढ़ाने की दिशा में एक अहम कदम हो सकती है।
हाल ही में, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा से मुलाकात की है। शरा को अबू मोहम्मद अल-जुलानी के नाम से भी जाना जाता है और कुछ समय पहले तक अमेरिका अल-शरा को आंतकी मानता था और उन पर करोड़ों का इनाम भी था। लेकिन भू-राजनीति में जिस तरह समीकरण बदल रहे हैं उसमें भारत में नई तरह से सोचने को मजबूर हुआ है।
क्षेत्रीय प्रभाव और मानवीय प्रभाव के लिए ज़रूरी
भारत-पाकिस्तान के संघर्ष ने क्षेत्र में नए तरह के समीकरण पैदा कर दिए हैं। पाकिस्तान के साथ संघर्ष से जूझ रहे भारत को चीन के साथ भी दो-दो हाथ करने पड़ रहे हैं। वहीं, बांग्लादेश में भी संघर्ष के हालात बने हुए हैं और म्यांमार पहले ही गृह युद्ध से जूझ रह हैं। ऐसे में भारत को क्षेत्र में अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए अफगानिस्तान को अपने पक्ष में करना ज़रूरी है और भारत की इस पहल क्षेत्रीय प्रभाव की दिशा में एक अहम कदम साबित हो सकती है। इसके अलावा अफगानिस्तान में भारत ने वर्षों तक स्कूल, सड़कें, अस्पताल और संसद भवन जैसे महत्वपूर्ण निर्माण कार्य किए हैं। तालिबान के आने के बाद भारत की वहां की उपस्थिति सीमित हो गई थी। अब यह संवाद भारत को एक रास्ता देता है जिससे वह अफगान जनता से जुड़ा रह सके, मानवीय सहायता जारी रख सके और अपने ऐतिहासिक संबंधों को बनाए रख सके।
चीन-पाकिस्तान के संतुलन की रणनीति
यह बातचीत पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से घेरने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है। तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद पाकिस्तान को उम्मीद थी कि अफगानिस्तान पूरी तरह उसके प्रभाव में रहेगा लेकिन भारत द्वारा तालिबान से सीधा संवाद स्थापित करने के बाद पाकिस्तान को इससे सीधी चुनौती मिलेगी। तालिबान और भारत के रिश्ते अगर पटरी पर आ जाते हैं तो पाकिस्तान का ‘इकलौता सहयोगी’ होने का दावा भी कमजोर पड़ जाएगा। मौजूदा समय में चीन और पाकिस्तान अफगानिस्तान में मिलकर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। चीन काफी वक्त से अफगानिस्तान में निवेश कर रहा है और उसके संतुलन के लिए ज़रूरी है कि भारत, तालिबान से खुलकर बातचीत करे।