क्रिसिल की नई रिपोर्ट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक अहम संकेत लेकर आई है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) चालू वित्त वर्ष 2025-26 में एक और बार रेपो दर में कटौती कर सकता है, जिसके बाद नीति दरों में स्थिरता आ सकती है। यह अनुमान ऐसे समय में सामने आया है जब महंगाई के मोर्चे पर स्थिरता देखने को मिल रही है, जिससे केंद्रीय बैंक को विकास पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की गुंजाइश मिलती है, खासकर वैश्विक अस्थिरताओं के बीच। क्रिसिल ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मजबूत घरेलू मांग और नीतिगत स्थिरता विकास को समर्थन देगी, हालांकि अमेरिकी टैरिफ में बढ़ोतरी जैसे बाहरी जोखिम निर्यात और निवेश की धारणा को प्रभावित कर सकते हैं।
आरबीआई ने 7 जून को अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर इसे 6 प्रतिशत कर दिया, जो इस कैलेंडर वर्ष की दूसरी कटौती है। फरवरी 2025 से अब तक कुल 100 बेसिस प्वाइंट की कटौती की जा चुकी है। इसके साथ ही वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आरबीआई ने कैश रिज़र्व रेशियो (CRR) में भी 100 बेसिस प्वाइंट की कमी की है, जिससे बैंकिंग प्रणाली में तरलता बढ़ेगी और कर्ज वितरण को बढ़ावा मिलेगा। इन सभी नीतिगत कदमों का उद्देश्य साफ है कर्ज को सस्ता बनाकर खपत और निवेश को रफ्तार देना। ऐसे में सवाल यह है कि क्या अब नीतिगत नरमी की नई लहर आने वाली है, और क्या इससे भारत अपनी विकास गति को और तेज़ कर पाएगा?
मध्यम वर्ग को मिलेगा सीधा फायदा
क्रिसिल की रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि वर्तमान मौद्रिक नीति रुख से मध्यम वर्गीय परिवारों को बड़ा लाभ हो सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, ब्याज दरों में कटौती का असर अब साफ़ दिखने लगा है होम लोन की दरें 30 बेसिस पॉइंट, ऑटो लोन की दरें 20 बेसिस पॉइंट और डिपॉजिट रेट 15 बेसिस पॉइंट तक नीचे आई हैं। इसके चलते आम परिवारों की मासिक किश्तें यानी EMI कम हो रही हैं, जिससे घर, गाड़ी जैसे बड़े खर्च अब पहले से अधिक सुलभ हो रहे हैं।
इसके अलावा, हाल ही में वेतनभोगी मध्यम वर्ग के लिए घोषित इनकम टैक्स राहत और खाद्य महंगाई में आई नरमी ने भी घरेलू अर्थव्यवस्था को सहारा दिया है। यह नीतिगत माहौल अब परिवारों के लिए बचत और खर्च दोनों के लिहाज़ से बेहतर हो रहा है, जिससे निजी खपत, जो भारत की जीडीपी का एक मजबूत स्तंभ है, को बनाए रखने में मदद मिलेगी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि “नीतिगत दरों में कटौती का असर अब तेज़ी से आम लोगों तक पहुंच रहा है। मध्यम वर्ग को इसका सीधा लाभ कम ब्याज दरों के रूप में और परोक्ष रूप से बेहतर रोजगार सृजन और उपभोग वृद्धि के रूप में मिलने की उम्मीद है।”
अब ब्याज दर में कटौती क्यों है अहम
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अपनाया गया विकासोन्मुखी रुख ऐसे समय में सामने आया है जब महंगाई नियंत्रण में आ चुकी है। क्रिसिल का अनुमान है कि आने वाले समय में महंगाई दर केंद्रीय बैंक के 4% के लक्ष्य के आसपास बनी रहेगी। इसके पीछे अनुकूल मानसून, स्थिर कच्चे तेल की कीमतें और मज़बूत विदेशी मुद्रा भंडार जैसे कारक प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।
रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया है कि भले ही वैश्विक स्तर पर व्यापार शुल्क आधारित तनाव जैसी चुनौतियाँ बनी रहें, लेकिन भारत का सीमित चालू खाता घाटा, अल्पकालिक ऋण की कम हिस्सेदारी और पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार ऐसे कारक हैं जो अर्थव्यवस्था को बाहरी झटकों से सुरक्षा प्रदान करेंगे।
आगे की रणनीति: सावधानीभरा विराम
जहां एक और ब्याज दर में एक और कटौती की संभावना FY26 में जताई गई है, वहीं क्रिसिल का मानना है कि इसके बाद आरबीआई एक अधिक आंकड़ा-आधारित और सतर्क रुख अपनाएगा। हाल ही में केंद्रीय बैंक द्वारा ‘न्यूट्रल’ स्टांस की घोषणा यह संकेत देती है कि भविष्य के निर्णय पूरी तरह से महंगाई की प्रवृत्तियों, वैश्विक हालात और घरेलू आर्थिक संकेतकों पर निर्भर होंगे।
कुल मिलाकर, क्रिसिल का दृष्टिकोण यह दर्शाता है कि नीतिगत समर्थन और समग्र आर्थिक स्थिरता मिलकर भारत को अपनी विकास गति बनाए रखने में मदद कर सकते हैं। खासकर तब, जब मध्यम वर्ग को राहत मिलने से खपत में सुधार आए, जो अर्थव्यवस्था की मज़बूत रीढ़ साबित हो सकता है।